गणेश पुराण के अनुसार भगवान गणेश का चूहा पूर्व जन्म में एक गंधर्व था
गणेश पुराण के अनुसार भगवान गणेश का चूहा पूर्व जन्म में एक गंधर्व था जिसका नाम क्रोंच था। एक बार देवराज इंद्र की सभा में गलती से क्रोंच का पैर मुनि वामदेव के ऊपर पड़ गया। मुनि वामदेव को लगा कि क्रोंच ने उनके साथ शरारत की है। इसलिए गुस्से
By Preeti jhaEdited By: Updated: Wed, 23 Sep 2015 10:56 PM (IST)
गणेश पुराण के अनुसार भगवान गणेश का चूहा पूर्व जन्म में एक गंधर्व था जिसका नाम क्रोंच था। एक बार देवराज इंद्र की सभा में गलती से क्रोंच का पैर मुनि वामदेव के ऊपर पड़ गया। मुनि वामदेव को लगा कि क्रोंच ने उनके साथ शरारत की है। इसलिए गुस्से में आकर उन्होंने उसे चूहा बनने का शाप दे दिया। उस शाप के कारण क्रोंच एक चूहा बन चुका था। लेकिन वह विशालकाय था। वह इतना विशाल था कि अपने रास्ते में आने वाली सभी चीज़ों को नष्ट कर देता था। ऐसे ही एक बार वह किसी तरह महर्षि पराशर के आश्रम में पहुँच गया।
वहाँ पहुँच कर उसने अपनी आदत के अनुसार मिट्टी के सारे पात्र तोड़ दिये। इतना ही नहीं वह वहाँ उत्पात मचाने लगा। उसने आश्रम की वाटिका उजाड़ डाली और सारे वस्त्रों और ग्रंथों को कुतर दिया। उस समय महर्षि के आश्रम में भगवान गणेश भी आये हुए थे। महर्षि पराशर ने यह बात गणेश जी को बताई। भगवान गणेश ने तब उस मूषक को सबक सिखाने की सोची। उन्होंने मूषक को पकड़ने के लिये अपना पाश फेंका। पाश मूषक का पीछा करता हुआ पाताल लोक तक पहुँचा। वह पाश मूषक के गले में अटक गया। पाश की पकड़ से मूषक बेहोश हो गया था।मूषक पाश में घिसटता हुआ भगवान गणेश के सम्मुख उपस्थित हुआ। जैसे ही उसे होश आया उसने अपने आप को भगवान गणेश के सम्मुख पाया।बिना देरी किये मूषक ने गणेश जी की आराधना शुरू कर दी और अपने प्राणों की भीख मांगने लगा। गणेश जी मूषक की आराधना से प्रसन्न हो गए और उससे कहा कि , ‘तुमने लोगों को बहुत कष्ट दिया है। मैंने दुष्टों के नाश एवं साधु पुरुषों के कल्याण के लिए ही अवतार लिया है, लेकिन शरणागत की रक्षा भी मेरा परम धर्म है, इसलिए जो वरदान चाहो माँग लो।’ यह सुनकर वह उत्पाती मूषक अहँकार से भर उठा और भगवान गणेश से बोला, ‘मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए, लेकिन यदि आप चाहें तो मुझसे वर की याचना कर सकते हैं।’ मूषक की गर्व भरी वाणी सुनकर गणेश जी मन ही मन मुस्कुराये और कहा, ‘यदि तेरा वचन सत्य है तो तू मेरा वाहन बन जा।
मूषक ने बिना देरी किये ‘तथास्तु’ कह दिया।गणेश जी मुस्कुराते हुए तुरंत उस पर सवार हो गए।अब भारी-भरकम गजानन के भार से दब कर मूषक के प्राण संकट में आ गये। तब उसने गजानन से प्रार्थना की कि वे अपना भार उसके वहन करने योग्य बना लें। इस तरह मूषक का गर्व चूर कर गणेश जी ने उसे अपना वाहन बना लिया। यही कारण है कि आज भी लोग अपने घरों में चूहों के उत्पात मचाने पर भगवान गणेश को याद करते हैं।