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Govatsa Dwadashi Puja Vidhi: पुत्रवती महिलाएं इस तरह करें गोवत्स द्वादशी की पूजा और व्रत

Govatsa Dwadashi Puja Vidhi गोवत्स द्वादशी के दिन स्त्रियां गाय और बछड़ों का पूजन करती हैं। यह त्योहार भाद्रपद कृष्ण द्वादशी के दिन आता है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Updated: Sun, 16 Aug 2020 07:08 AM (IST)
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Govatsa Dwadashi Puja Vidhi: पुत्रवती महिलाएं इस तरह करें गोवत्स द्वादशी की पूजा और व्रत

Govatsa Dwadashi Puja Vidhi: गोवत्स द्वादशी के दिन स्त्रियां गाय और बछड़ों का पूजन करती हैं। यह त्योहार भाद्रपद कृष्ण द्वादशी के दिन आता है। यह पर्व पुत्र की मंगलकामना के लिए किया जाता है। इसे वही स्त्रियां करती हैं जिनका पुत्र होता है। इसका महत्व बहुत ज्यादा है। कहा जाता है कि केवल गौमाता के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति को बड़े-बड़े यज्ञ, दान आदि कर्मों से भी ज्यादा लाभ प्राप्त हो जाता है। अगर आप इस व्रत को विधि-पूर्वक करना चाहती हैं तो हम आपको गोवत्स द्वादशी या बछ वारस का व्रत कैसे किया जाता है इसकी जानकारी दे रहे हैं। ज्योतिषाचार्य पं. गणेश मिश्र से जानते हैं कि इस व्रत को कैसे किया जाता है।

इस तरह करें गोवत्स द्वादशी का व्रत:

1. इस पर्व पर गीली मिट्टी से गाय, बछड़ा, बाघ तथा बाघिन की मूर्तियां बनाकर नीचे दिए गए चित्र के अनुसार पटे पर रखी जाती है।

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2. अगर आपके यहां गाय और बछड़ा नही है तो आप किसी दूसरे की गाय और बछड़े की पूजा कर सकते हैं। यदि गांव में भी गाय न हो तो मिट्टी के गाय बनाकर उनकी पूजा कर सकते हैं।

3. उन पर दही, भीगा हुआ बाजरा, आटा, घी आदि चढ़ाएं।

4. इनका रोली से तिलक करें और चावल-दूध चढ़ाएं।

5. इसके बाद मोठ, बाजरा पर रुपया रखकर बयान अपनी सास को दे दें।

6. इस दिन बाजरे की ठंडी रोटी खाई जाती है।

7. इस दिन गाय का दूध या इससे बनी दही न खाएं। साथ ही गेहूं व चावल भी न खाएं।

8. अपने कुंवारे लड़के की कमीज पर सांतियां बनाकर तथा उसे पहनाकर कुएं को पूजा जाता है।

9. इससे आपके बच्चे की जीवन की रक्षा होती है। साथ ही वो बुरी नजर से भी बचा रहता है।

10. जो महिलाएं व्रत करती हैं वो सुबह स्नान आदि कर निवृत्त हो जाएं।

11. इसके बाद गाय को उसके बछडे़ समेत स्नान करएं और नए वस्त्र ओढ़ाएं।

12. दोनों को फूलों की माला पहनाएं। फिर गाय-बछड़े के माथे पर चंदन का तिलक लगाएं।

13. फिर तांबे का एक पात्र लें। इसमें अक्षत, तिल, जल, सुगंध तथा फूलों को रख लें। इसके बाद मंत्र का उच्चारण करें।

मंत्र- क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते।

सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:॥

14. फिर गौमाता के पैरों में लगी मिट्टी को अपने माथे पर तिलक की तरह लगाएं।

15. बछ बारस की कथा जरूर सुनें।

16. दिनभर व्रत करें और गौमाता की आरती कर भोजन ग्रहण करें।