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Hanuman Ashtak Path: हर समस्या से मुक्ति पाने के लिए जरूर करें हनुमान अष्टक का पाठ

Hanuman Ashtak Path मान्यता है कि धरती पर केवल 7 मनीषियों को ही अमरत्व का वरदान प्राप्त है। उनमें से एक बजरंगबली भी हैं। हालांकि यह केवल धारणाएं हैं इनकी पुष्टि के लिए कोई भी साक्ष्य मौजूद नहीं हैं।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Updated: Tue, 03 Nov 2020 10:50 AM (IST)
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Hanuman Ashtak Path: हर समस्या से मुक्ति पाने के लिए जरूर करें हनुमान अष्टक का पाठ
Hanuman Ashtak Path: मान्यता है कि धरती पर केवल 7 मनीषियों को ही अमरत्व का वरदान प्राप्त है। उनमें से एक बजरंगबली भी हैं। हालांकि, यह केवल धारणाएं हैं इनकी पुष्टि के लिए कोई भी साक्ष्य मौजूद नहीं हैं। हनुमान जी ने भगवान राम की सहायता के लिए अवतार लिया था। इनके पराक्रम की असंख्य गाथाएं मौजूद हैं। हनुमान जी को बजरंगबली के रूप में जाना जाता है क्योंकि इनका शरीर एक वज्र की तरह था। इन्हें पवन-पुत्र हनुमान भी कहा जाता है क्योंकि वायु और पवन ने हनुमान को पालने में अक अहम भूमिक अदा की थी।

आज मंगलवार है और आज का दिन हनुमान जी को समर्पित है। कहा जाता है कि अगर आज के दिन हनुमान जी की सच्चे मन से पूजा-अर्चना की जाए तो उनकी कृपा दृष्टि हमने अपने भक्तों पर बनी रहती है। हनुमान जी की पूजा करते समय हनुमान चालीसा और आरती तो की ही जाती है। लेकिन अगर इस दौरान हनुमान अष्टक पाठ भी किया जाए तो बेहतर होता है। इससे हनुमान जी प्रसन्न हो जाते हैं। आइए पढ़ते हैं हनुमान अष्टक पाठ।

हनुमान अष्टक पाठ:

बाल समय रवि भक्षी लियो तब, तीनहुं लोक भयो अंधियारों।

ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो।

देवन आनि करी बिनती तब, छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो।

को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।

बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो।

चौंकि महामुनि साप दियो तब, चाहिए कौन बिचार बिचारो।

कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के सोक निवारो।

को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।

अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो।

जीवत ना बचिहौ हम सो जु, बिना सुधि लाये इहां पगु धारो।

हेरी थके तट सिन्धु सबे तब, लाए सिया-सुधि प्राण उबारो।

को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।

रावण त्रास दई सिय को सब, राक्षसी सों कही सोक निवारो।

ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाए महा रजनीचर मरो।

चाहत सीय असोक सों आगि सु, दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो।

को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।

बान लाग्यो उर लछिमन के तब, प्राण तजे सूत रावन मारो।

लै गृह बैद्य सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो।

आनि सजीवन हाथ दिए तब, लछिमन के तुम प्रान उबारो।

को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।

रावन जुध अजान कियो तब, नाग कि फांस सबै सिर डारो।

श्रीरघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो।

आनि खगेस तबै हनुमान जु, बंधन काटि सुत्रास निवारो।

को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।

बंधू समेत जबै अहिरावन, लै रघुनाथ पताल सिधारो।

देबिन्हीं पूजि भलि विधि सों बलि, देउ सबै मिलि मंत्र विचारो।

जाये सहाए भयो तब ही, अहिरावन सैन्य समेत संहारो।

को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।

काज किए बड़ देवन के तुम, बीर महाप्रभु देखि बिचारो।

कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसे नहिं जात है टारो।

बेगि हरो हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होए हमारो।

को नहीं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो।

।। दोहा। ।

लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।

वज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर।।