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Hartalika Teej पर जरूर करें श्री गौरीशाष्टकम का पाठ, वैवाहिक जीवन खुशियों से रहेगा भरा

भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर हरतालिका तीज (Hartalika Teej 2024) का त्योहार मनाया जाता है। पंचांग के अनुसार इस वर्ष हरतालिका तीज का व्रत 06 सितंबर को किया जाएगा। इस दिन सुहागिन महिलाएं सोलह श्रृंगार कर भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं। साथ ही वैवाहिक जीवन को खुशहाल बनाए रखने के लिए महादेव से कामना करती हैं।

By Kaushik Sharma Edited By: Kaushik Sharma Updated: Tue, 03 Sep 2024 02:50 PM (IST)
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सुहागिन महिलाओं के लिए खास है Hartalika Teej (Pic credit- freepik)

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हरतालिका तीज का कुंवारी लड़कियां और सुहागिन महिलाएं बेसब्री से इंतजार करती हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस व्रत को करने से साधक को वैवाहिक जीवन से जुड़ी सभी परेशानियों दूर करने में मदद मिलती है और पति-पत्नी के रिश्ते में खुशियों का आगमन होता है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और खुशहाल शादीशुदा जिंदगी के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। ऐसे में आप हरतालिका तीज (Hartalika Teej 2024) की पूजा के दौरान सच्चे मन से श्री गौरीशाष्टकम का पाठ करें। इसका पाठ करने से अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

हरतालिका तीज शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 05 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 21 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, इस तिथि का समापन 06 सितंबर को दोपहर 03 बजकर 21 मिनट पर होगा। ऐसे में 06 सितंबर को हरतालिका तीज व्रत किया जाएगा। पूजा करने का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है-

सुबह 06 बजकर 02 से सुबह 08 बजकर 33 मिनट तक है।

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श्री गौरीशाष्टकम

भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज मन्दमते।

जलभवदुस्तरजलधिसुतरणंध्येयं चित्ते शिवहरचरणम्।

अन्योपायं न हि न हि सत्यंगेयं शङ्कर शङ्कर नित्यम्।

भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज मन्दमते॥1॥

दारापत्यं क्षेत्रं वित्तंदेहं गेहं सर्वमनित्यम्।

इति परिभावय सर्वमसारंगर्भविकृत्या स्वप्नविचारम्।

भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज मन्दमते॥2॥

मलवैचित्ये पुनरावृत्ति:पुनरपि जननीजठरोत्पत्ति:।

पुनरप्याशाकुलितं जठरं किंनहि मुञ्चसि कथयेश्चित्तम्।

भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज मन्दमते॥3॥

मायाकल्पितमैन्द्रं जालं नहि तत्सत्यं दृष्टिविकारम्।

ज्ञाते तत्त्वे सर्वमसारं माकुरु मा कुरु विषयविचारम्।

भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज मन्दमते॥4॥

रज्जौ सर्पभ्रमणा-रोपस्तद्वद्ब्रह्मणि जगदारोप:।

मिथ्यामायामोहविकारंमनसि विचारय बारम्बारम्।

भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज मन्दमते॥5॥

अध्वरकोटीगङ्गागमनं कुरुतेयोगं चेन्द्रियदमनम्।

ज्ञानविहीन: सर्वमतेन नभवति मुक्तो जन्मशतेन।

भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज मन्दमते॥6॥

सोऽहं हंसो ब्रह्मैवाहंशुद्धानन्दस्तत्त्वपरोऽहम्।

अद्वैतोऽहं सङ्गविहीनेचेन्द्रिय आत्मनि निखिले लीने।

भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज मन्दमते॥7॥

शङ्करकिंङ्कर मा कुरु चिन्तांचिंतामणिना विरचितमेतत्।

य: सद्भक्त्या पठति हि नित्यंब्रह्मणि लीनो भवति हि सत्यम्।

भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज मन्दमते॥8॥

॥ इति श्रीचिन्तामणिविरचितं गौरीशाष्टकं सम्पूर्णम् ॥

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