Navgrah Stotra: पाना चाहते हैं जीवन में सुख, शांति और धन, तो शनिवार के दिन जरूर करें नवग्रह स्त्रोत का पाठ
Navgrah Stotra ज्योतिषियों की मानें तो साढ़ेसाती और शनि की ढैया में व्यक्ति को मानसिक आर्थिक और शारीरिक पीड़ा होती है। इस दौरान व्यक्ति हर समय मुसीबत से घिरा रहता है। परिवार में कलह की स्थिति बनी रहती है। कुल मिलाकर कहें तो व्यक्ति का बुरा हाल रहता है।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Fri, 28 Apr 2023 09:48 AM (IST)
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Navgrah Stotra: शनिवार का दिन न्याय के देवता शनिदेव को समर्पित होता है। इस दिन शनिदेव की विशेष पूजा उपासना की जाती है। शनिदेव अच्छे कर्म करने वाले को अच्छा फल देते हैं। वहीं, बुरे कर्म करने वाले को दंड देते हैं। ज्योतिषियों की मानें तो साढ़ेसाती और शनि की ढैया में व्यक्ति को मानसिक, आर्थिक और शारीरिक पीड़ा होती है। इस दौरान व्यक्ति हर समय मुसीबत से घिरा रहता है। परिवार में कलह की स्थिति बनी रहती है। कुल मिलाकर कहें तो व्यक्ति का बुरा हाल रहता है। इसके अलावा, नवग्रह अशांत रहने पर भी व्यक्ति अपने जीवन में विषम परिस्थिति से गुजरता है। अगर आप भी जीवन में सुख, शांति और धन पाना चाहते हैं, तो शनिवार को नवग्रह स्त्रोत का पाठ जरूर करें। ऐसा माना जाता है कि लगातार 40 दिनों तक नवग्रह स्त्रोत का पाठ करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। आइए पढ़ें नवग्रह और शनि स्त्रोत का पाठ-
श्री नवग्रह स्तोत्र पाठजपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महद्युतिं।
तमोरिसर्व पापघ्नं प्रणतोस्मि दिवाकरं।। (रवि)दधिशंख तुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवं।
नमामि शशिनं सोंमं शंभोर्मुकुट भूषणं।। (चंद्र)धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांतीं समप्रभं।कुमारं शक्तिहस्तंच मंगलं प्रणमाम्यहं।। (मंगल)प्रियंगुकलिका शामं रूपेणा प्रतिमं बुधं।सौम्यं सौम्य गुणपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहं।। (बुध)
देवानांच ऋषिणांच गुरुंकांचन सन्निभं।बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिं।। (गुरु)हिमकुंद मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरूं।सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहं।। (शुक्र)नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजं।छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्वरं।। (शनि)अर्धकायं महावीर्यं चंद्रादित्य विमर्दनं।सिंहिका गर्भसंभूतं तं राहूं प्रणमाम्यहं।। (राहू)
पलाशपुष्प संकाशं तारका ग्रह मस्तकं।रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहं।। (केतु)शनि स्तोत्रनम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च।नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:।1नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते। 2नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते। 3
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम:।नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने। 4नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च। 5अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते। 6तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च।नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:। 7ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्। 8देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:।त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:। 9प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे।एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल:।10डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'