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Shri krishna Ashtakam: किसी विशेष काम में पाना चाहते हैं सफलता, तो बुधवार के दिन जरूर करें ये स्तुति

Shri krishna Ashtakam धार्मिक मान्यता है कि जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से जातक के सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। वहीं श्रीजी की कृपा से घर में सुख और समृद्धि आती है। इसके लिए साधक बुधवार के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की विशेष पूजा उपासना करते हैं।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Wed, 03 May 2023 12:26 PM (IST)
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Shri krishna Ashtakam: किसी विशेष काम में पाना चाहते हैं सफलता, तो बुधवार के दिन जरूर करें ये स्तुति
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Shri krishna Ashtakam: बुधवार का दिन भगवान श्रीकृष्ण और गणेशजी को समर्पित होता है। इस दिन श्रीकृष्ण जी संग राधा रानी की पूजा उपासना की जाती है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि जगत के पालनहार भगवान श्रीहरि विष्णु त्रेता युग में भगवान राम और द्वापर युग में श्रीकृष्ण के रूप में अवतरित हुए थे। धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से जातक के सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। वहीं, श्रीजी की कृपा से घर में सुख और समृद्धि आती है। इसके लिए साधक बुधवार के दिन भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा उपासना करते हैं। अगर आप भी किसी विशेष काम में सिद्धि या सफलता पाना चाहते हैं, तो बुधवार के दिन ये स्तुति जरूर करें। आइए जानते हैं-

श्री कृष्णाष्टकम्

भजे व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं,

स्वभक्तचित्तरञ्जनं सदैव नन्दनन्दनम् ।

सुपिच्छगुच्छमस्तकं सुनादवेणुहस्तकं,

अनंगरंगसागरं नमामि कृष्णनागरम् ॥ १ ॥

मनोजगर्वमोचनं विशाललोललोचनं,

विधूतगोपशोचनं नमामि पद्मलोचनम् ।

करारविन्दभूधरं स्मितावलोकसुन्दरं,

महेन्द्रमानदारणं नमामि कृष्णवारणम् ॥ २ ॥

कदम्बसूनकुण्डलं सुचारुगण्डमण्डलं,

व्रजाङ्गनैकवल्लभं नमामि कृष्ण दुर्लभम् ।

यशोदया समोदया सगोपया सनन्दया,

युतं सुखैकदायकं नमामि गोपनायकम् ॥ ३ ॥

सदैव पादपङ्कजं मदीयमानसे निजं

दधानमुत्तमालकं नमामि नन्दबालकम् ।

समस्तदोषशोषणं समस्तलोकपोषणं,

समस्तगोपमानसं नमामि नन्दलालसम् ॥ ४ ॥

भुवोभरावतारकं भवाब्धिकर्णधारकं,

यशोमतीकिशोरकं नमामि चित्तचोरकम् ।

दृगन्तकान्तभङ्गिनं सदासदालसङ्गिनं,

दिने दिने नवं नवं नमामि नन्दसंभवम् ॥ ५ ॥

गुणाकरं सुखाकरं कृपाकरं कृपापरं,

सुरद्विषन्निकन्दनं नमामि गोपनन्दनम् ।

नवीनगोपनागरं नवीनकेलिलंपटं,

नमामि मेघसुन्दरं तटित्प्रभालसत्पटम् ॥ ६ ॥

समस्तगोपनन्दनं हृदंबुजैकमोदनं,

नमामि कुञ्जमध्यगं प्रसन्नभानुशोभनम् ।

निकामकामदायकं दृगन्तचारुसायकं,

रसालवेणुगायकं नमामि कुञ्जनायकम् ॥ ७ ॥

विदग्धगोपिकामनोमनोज्ञतल्पशायिनं,

नमामि कुञ्जकानने प्रवृद्धवह्निपायिनम् ।

यदा तदा यथा तथा तथैव कृष्णसत्कथा,

मया सदैव गीयतां तथा कृपा विधीयताम् ॥ ८ ॥

प्रमाणिकाष्टकद्वयं जपत्यधीत्य यः पुमान् ।

भवेत्स नन्दनन्दने भवे भवे सुभक्तिमान् ॥ ९ ॥

कृष्ण चालीसा

बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम।

अरुणअधरजनु बिम्बफल, नयनकमलअभिराम॥

पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज।

जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज॥

जय यदुनंदन जय जगवंदन।

जय वसुदेव देवकी नन्दन॥

जय यशुदा सुत नन्द दुलारे।

जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥

जय नट-नागर, नाग नथइया॥

कृष्ण कन्हइया धेनु चरइया॥

पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो।

आओ दीनन कष्ट निवारो॥

वंशी मधुर अधर धरि टेरौ।

होवे पूर्ण विनय यह मेरौ॥

आओ हरि पुनि माखन चाखो।

आज लाज भारत की राखो॥

गोल कपोल, चिबुक अरुणारे।

मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥

राजित राजिव नयन विशाला।

मोर मुकुट वैजन्तीमाला॥

कुंडल श्रवण, पीत पट आछे।

कटि किंकिणी काछनी काछे॥

नील जलज सुन्दर तनु सोहे।

छबि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥

मस्तक तिलक, अलक घुंघराले।

आओ कृष्ण बांसुरी वाले॥

करि पय पान, पूतनहि तार्‌यो।

अका बका कागासुर मार्‌यो॥

मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला।

भै शीतल लखतहिं नंदलाला॥

सुरपति जब ब्रज चढ़्‌यो रिसाई।

मूसर धार वारि वर्षाई॥

लगत लगत व्रज चहन बहायो।

गोवर्धन नख धारि बचायो॥

लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई।

मुख मंह चौदह भुवन दिखाई॥

दुष्ट कंस अति उधम मचायो॥

कोटि कमल जब फूल मंगायो॥

नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें।

चरण चिह्न दै निर्भय कीन्हें॥

करि गोपिन संग रास विलासा।

सबकी पूरण करी अभिलाषा॥

केतिक महा असुर संहार्‌यो।

कंसहि केस पकड़ि दै मार्‌यो॥

मात-पिता की बन्दि छुड़ाई।

उग्रसेन कहं राज दिलाई॥

महि से मृतक छहों सुत लायो।

मातु देवकी शोक मिटायो॥

भौमासुर मुर दैत्य संहारी।

लाये षट दश सहसकुमारी

दै भीमहिं तृण चीर सहारा।

जरासिंधु राक्षस कहं मारा॥

असुर बकासुर आदिक मार्‌यो।

भक्तन के तब कष्ट निवार्‌यो॥

दीन सुदामा के दुख टार्‌यो।

तंदुल तीन मूंठ मुख डार्‌यो॥

प्रेम के साग विदुर घर मांगे।

दुर्योधन के मेवा त्यागे॥

लखी प्रेम की महिमा भारी।

ऐसे श्याम दीन हितकारी॥

भारत के पारथ रथ हांके।

लिये चक्र कर नहिं बल थाके॥

निज गीता के ज्ञान सुनाए।

भक्तन हृदय सुधा वर्षाए॥

मीरा थी ऐसी मतवाली।

विष पी गई बजाकर ताली॥

राना भेजा सांप पिटारी।

शालीग्राम बने बनवारी॥

निज माया तुम विधिहिं दिखायो

उर ते संशय सकल मिटायो॥

तब शत निन्दा करि तत्काला।

जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥

जबहिं द्रौपदी टेर लगाई।

दीनानाथ लाज अब जाई॥

तुरतहि वसन बने नंदलाला

बढ़े चीर भै अरि मुंह काला॥

अस अनाथ के नाथ कन्हइया।

डूबत भंवर बचावइ नइया॥

'सुन्दरदास' आस उर धारी।

दया दृष्टि कीजै बनवारी॥

नाथ सकल मम कुमति निवारो।

क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥

खोलो पट अब दर्शन दीजै।

बोलो कृष्ण कन्हइया की जै॥

दोहा

यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करै उर धारि।

अष्ट सिद्धि नवनिधि फल, लहै पदारथ चारि॥

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