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Kalashtami 2024: कालाष्टमी पर पूजा के दौरान करें इस स्तोत्र का पाठ, दुख और संकट होंगे दूर

यदि आप अपने जीवन में व्याप्त सभी तरह के दुखों से निजात और जीवन सुखमय चाहते हैं तो कालाष्टमी के दिन सुबह स्नान करने के बाद काल भैरव की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करें। साथ ही काल तांडव स्तोत्र का पाठ करें। मान्यता है कि ऐसा करने से जातक को काल भैरव की कृपा प्राप्त होती है। चलिए पढ़ते हैं काल भैरव तांडव स्तोत्र।

By Kaushik Sharma Edited By: Kaushik Sharma Published: Wed, 26 Jun 2024 02:10 PM (IST)Updated: Wed, 26 Jun 2024 02:10 PM (IST)
Kalashtami 2024: कालाष्टमी भगवान काल भैरव को समर्पित है

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Kalashtami 2024 Date: कालाष्टमी का त्योहार हर महीने मनाया जाता है। यह पर्व बेहद शुभ माना जाता है। कालाष्टमी भगवान काल भैरव को समर्पित है, जो भगवान शिव का उग्र स्वरूप हैं। आषाढ़ माह की कालाष्टमी 28 जून को है। धार्मिक मान्यता है कि कालाष्टमी पर सच्चे मन से काल भैरव की पूजा और व्रत करने से प्रभु जातक की सदैव रक्षा करते हैं। साथ ही भय और बाधाओं से छुटकारा मिलता है। 

कालाष्टमी 2024 डेट और शुभ मुहूर्त (Kalashtami 2024 Date and Shubh Muhurat)

पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 28 जून को शाम 04 बजकर 27 मिनट पर शुरू होगी और 29 जून को दोपहर 02 बजकर 19 मिनट पर समाप्त होगी। अतः 28 जून को कालाष्टमी मनाई जाएगी। साधक 28 जून को व्रत रख काल भैरव देव की पूजा-उपासना कर सकते हैं।

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काल भैरव तांडव स्तोत्र (Kaal Bhairav Tandava Stotram)

ॐ चण्डं प्रतिचण्डं करधृतदण्डं कृतरिपुखण्डं सौख्यकरम्।

लोकं सुखयन्तं विलसितवन्तं प्रकटितदन्तं नृत्यकरम् ।।

डमरुध्वनिशंखं तरलवतंसं मधुरहसन्तं लोकभरम् ।

भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं भैरववेषं कष्टहरम् ।।

चर्चित सिन्दूरं रणभूविदूरं दुष्टविदूरं श्रीनिकरम् ।

किँकिणिगणरावं त्रिभुवनपावं खर्प्परसावं पुण्यभरम् ।।

करुणामयवेशं सकलसुरेशं मुक्तशुकेशं पापहरम् ।

भज भज भूतेशं प्रकट महेशं श्री भैरववेषं कष्टहरम् ।।

कलिमल संहारं मदनविहारं फणिपतिहारं शीध्रकरम् ।

कलुषंशमयन्तं परिभृतसन्तं मत्तदृगृन्तं शुद्धतरम् ।।

गतिनिन्दितहेशं नरतनदेशं स्वच्छकशं सन्मुण्डकरम् ।

भज भज भूतेशं प्रकट महेशं श्रीभैरववेशं कष्टहरम् ।।

कठिन स्तनकुंभं सुकृत सुलभं कालीडिँभं खड्गधरम् ।

वृतभूतपिशाचं स्फुटमृदुवाचं स्निग्धसुकाचं भक्तभरम् ।।

तनुभाजितशेषं विलमसुदेशं कष्टसुरेशं प्रीतिनरम् ।

भज भज भूतेशं प्रकट महेशं श्रीभैरववेशं कष्टहरम् ।।

ललिताननचंद्रं सुमनवितन्द्रं बोधितमन्द्रं श्रेष्ठवरम् ।

सुखिताखिललोकं परिगतशोकं शुद्धविलोकं पुष्टिकरम् ।।

वरदाभयहारं तरलिततारं क्ष्युद्रविदारं तुष्टिकरम् ।

भज भज भूतेशं प्रकट महेशं श्रीभैरववेषं कष्टहरम् ।।

सकलायुधभारं विजनविहारं सुश्रविशारं भृष्टमलम् ।

शरणागतपालं मृगमदभालं संजितकालं स्वेष्टबलम् ।।

पदनूपूरसिंजं त्रिनयनकंजं गुणिजनरंजन कुष्टहरम् ।

भज भज भूतेशं प्रकट महेशं श्री भैरव वेषं कष्टहरम् ।।

मदयिँतुसरावं प्रकटितभावं विश्वसुभावं ज्ञानपदम् ।

रक्तांशुकजोषं परिकृततोषं नाशितदोषं सन्मंतिदमम् ।।

कुटिलभ्रकुटीकं ज्वरधननीकं विसरंधीकं प्रेमभरम् ।

भज भज भूतेशं प्रकट महेशं श्रीभैरववेषं कष्टहरम् ।।

परिर्निजतकामं विलसितवामं योगिजनाभं योगेशम् ।

बहुमधपनाथं गीतसुगाथं कष्टसुनाथं वीरेशम् ।।

कलयं तमशेषं भृतजनदेशं नृत्य सुरेशं वीरेशम् ।

भज भज भूतेशं प्रकट महेशं श्रीभैरववेषं कष्टहरम् ।।

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।


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