Sarva Pitru Amavasya के दिन इस स्तोत्र का करें पाठ, पितृ दोष से मिलेगा छुटकारा
सनातन धर्म में पितृ पक्ष में पड़ने वाली अमावस्या को महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन उन लोगों का श्राद्ध किया है जिनका श्राद्ध पितृ पक्ष में किसी कारण से नहीं कर पाए है। पंचांग के अनुसार सर्वपितृ अमावस्या 02 अक्टूबर (Sarva Pitru Amavasya 2024 Date) को है। इस दिन पितरों की पूजा करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में अमावस्या तिथि पितरों को समर्पित है। इस दिन पितरों और भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने का विधान है। साथ ही विशेष चीजों का दान किया जाता है। पितृ पक्ष का समापन सर्वपितृ अमावस्या के दिन होता है। इस दिन पितरों का श्राद्ध और तर्पण आदि कार्य किए जाते हैं। सर्वपितृ अमावस्या (Sarva Pitru Amavasya 2024) की पूजा के दौरान पितृ स्तोत्र और पितृ कवच का पाठ जरूर करना चाहिए। मान्यता है कि इसका पाठ करने से पितृ दोष से छुटकारा मिलता है। साथ ही पितृ प्रसन्न होते हैं।
सर्वपितृ अमावस्या 2024 डेट
पंचांग के अनुसार, आश्विन माह की अमावस्या तिथि की शुरुआत 01 अक्टूबर को रात्रि 09 बजकर 39 मिनट पर होगी। वहीं, इसका समापन 03 अक्टूबर को रात्रि 12 बजकर 18 मिनट पर होगा। ऐसे में सर्वपितृ अमावस्या 02 अक्टूबर को मनाई जाएगी।
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।।पितृ स्तोत्र ।।
अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम् ।।इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ।सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् । ।मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा ।तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि ।।नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा ।
द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि: ।।देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान् ।अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि: ।।प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च ।योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि: ।।नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ।।सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ।।अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् ।अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत: ।।ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय: ।जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण: ।।तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस: ।नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज ।।