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Shani Jayanti 2024: शनि देव को इस तरह करें प्रसन्न, जीवन रहेगा खुशहाल, सुख-समृद्धि में होगी वृद्धि

इस वर्ष शनि जयंती 06 जून दिन गुरुवार को पड़ रही है। इस दिन सुबह स्नान करने के बाद सच्चे मन से शनि देव की पूजा और व्रत करने का विधान है। मान्यता के अनुसार शनि देव की पूजा करने से तमाम समस्याओं से छुटकारा मिलता है और जीवन में खुशियों का आगमन होता है। इस दिन शनि चालीसा का पाठ जरूर करना चाहिए।

By Kaushik Sharma Edited By: Kaushik Sharma Updated: Sat, 01 Jun 2024 02:44 PM (IST)
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Shani Jayanti 2024: शनि देव को इस तरह करें प्रसन्न, जीवन रहेगा खुशहाल, सुख-समृद्धि में होगी वृद्धि

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Shani Chalisa Lyrics: हर साल शनि जयंती के पर्व को बेहद उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष शनि जयंती 06 जून, दिन गुरुवार को पड़ रही है। इस दिन सुबह स्नान करने के बाद सच्चे मन से शनि देव की पूजा और व्रत करने का विधान है। धार्मिक मान्यता है कि इस शुभ अवसर पर शनि देव की उपासना करने से शनि दोष से मुक्ति मिलती है और जीवन में व्याप्त दुख और संकट से निजात मिलती है। अगर आप भी शनि देव का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं, तो शनि जयंती की पूजा के दौरान शनि चालीसा का पाठ जरूर करें। इससे जीवन सुखमय होगा और सुख-समृद्धि में वृद्धि होगी।

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शनि चालीसा (Shani Chalisa)

दोहा

श्री शनिश्चर देवजी,सुनहु श्रवण मम् टेर।

कोटि विघ्ननाशक प्रभो,करो न मम् हित बेर॥

सोरठा

तव स्तुति हे नाथ,जोरि जुगल कर करत हौं।

करिये मोहि सनाथ,विघ्नहरन हे रवि सुव्रन।

चौपाई

शनिदेव मैं सुमिरौं तोही।

विद्या बुद्धि ज्ञान दो मोही॥

तुम्हरो नाम अनेक बखानौं।

क्षुद्रबुद्धि मैं जो कुछ जानौं॥

अन्तक, कोण, रौद्रय मनाऊँ।

कृष्ण बभ्रु शनि सबहिं सुनाऊँ॥

पिंगल मन्दसौरि सुख दाता।

हित अनहित सब जग के ज्ञाता॥

नित जपै जो नाम तुम्हारा।

करहु व्याधि दुःख से निस्तारा॥

राशि विषमवस असुरन सुरनर।

पन्नग शेष सहित विद्याधर॥

राजा रंक रहहिं जो नीको।

पशु पक्षी वनचर सबही को॥

कानन किला शिविर सेनाकर।

नाश करत सब ग्राम्य नगर भर॥

डालत विघ्न सबहि के सुख में।

व्याकुल होहिं पड़े सब दुःख में॥

नाथ विनय तुमसे यह मेरी।

करिये मोपर दया घनेरी॥

मम हित विषम राशि महँवासा।

करिय न नाथ यही मम आसा॥

जो गुड़ उड़द दे बार शनीचर।

तिल जव लोह अन्न धन बस्तर॥

दान दिये से होंय सुखारी।

सोइ शनि सुन यह विनय हमारी॥

नाथ दया तुम मोपर कीजै।

कोटिक विघ्न क्षणिक महँ छीजै॥

वंदत नाथ जुगल कर जोरी।

सुनहु दया कर विनती मोरी॥

कबहुँक तीरथ राज प्रयागा।

सरयू तोर सहित अनुरागा॥

कबहुँ सरस्वती शुद्ध नार महँ।

या कहुँ गिरी खोह कंदर महँ॥

ध्यान धरत हैं जो जोगी जनि।

ताहि ध्यान महँ सूक्ष्म होहि शनि॥

है अगम्य क्या करूँ बड़ाई।

करत प्रणाम चरण शिर नाई॥

जो विदेश से बार शनीचर।

मुड़कर आवेगा निज घर पर॥

रहैं सुखी शनि देव दुहाई।

रक्षा रवि सुत रखैं बनाई॥

जो विदेश जावैं शनिवारा।

गृह आवैं नहिं सहै दुखारा॥

संकट देय शनीचर ताही।

जेते दुखी होई मन माही॥

सोई रवि नन्दन कर जोरी।

वन्दन करत मूढ़ मति थोरी॥

ब्रह्मा जगत बनावन हारा।

विष्णु सबहिं नित देत अहारा॥

हैं त्रिशूलधारी त्रिपुरारी।

विभू देव मूरति एक वारी॥

इकहोइ धारण करत शनि नित।

वंदत सोई शनि को दमनचित॥

जो नर पाठ करै मन चित से।

सो नर छूटै व्यथा अमित से॥

हौं सुपुत्र धन सन्तति बाढ़े।

कलि काल कर जोड़े ठाढ़े॥

पशु कुटुम्ब बांधन आदि से।

भरो भवन रहिहैं नित सबसे॥

नाना भाँति भोग सुख सारा।

अन्त समय तजकर संसारा॥

पावै मुक्ति अमर पद भाई।

जो नित शनि सम ध्यान लगाई॥

पढ़ै प्रात जो नाम शनि दस।

रहैं शनिश्चर नित उसके बस॥

पीड़ा शनि की कबहुँ न होई।

नित उठ ध्यान धरै जो कोई॥

जो यह पाठ करैं चालीसा।

होय सुख साखी जगदीशा॥

चालिस दिन नित पढ़ै सबेरे।

पातक नाशै शनी घनेरे॥

रवि नन्दन की अस प्रभुताई।

जगत मोहतम नाशै भाई॥

याको पाठ करै जो कोई।

सुख सम्पति की कमी न होई॥

निशिदिन ध्यान धरै मनमाहीं।

आधिव्याधि ढिंग आवै नाहीं॥

दोहा

पाठ शनिश्चर देव को,कीहौं 'विमल' तैयार।

करत पाठ चालीस दिन,हो भवसागर पार॥

जो स्तुति दशरथ जी कियो,सम्मुख शनि निहार।

सरस सुभाषा में वही,ललिता लिखें सुधार॥

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।