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Sheetala Ashtami Vrat Katha: शीतलाष्टमी पर क्या है व्रत का विधान? पढ़ें शीतला माता की व्रत कथा

Sheetala Ashtami Vrat Katha शीतलाष्टमी का व्रत इस माह 02 जुलाई दिन शुक्रवार को पड़ रहा है। शीतला माता की पूजा में एक दिन पहले बने बासी खाने का भोग लगाया जाता है इसलिए शीतलाष्टमी को बसौड़ा भी कहते हैं। आइए जानते हैं शीतला माता की व्रत कथा..

By Jeetesh KumarEdited By: Updated: Fri, 02 Jul 2021 07:31 AM (IST)
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शीतलाष्टमी पर क्या है व्रत का विधान? पढ़ें शीतला माता की व्रत कथा

Sheetala Ashtami Vrat Katha: शीतला माता, जिन्हें स्वच्छता एवं आरोग्य की देवी माना जाता है। मान्यता है कि शीतला मां की विधि-विधान से पूजन करने से आपके घर में रोग-दोष, बीमारी, महामारी का प्रकोप नहीं पड़ता। शीतला माता को चेचक रोग से मुक्ति की देवी के रूप में भी जाना जाता है। शीतलाष्टमी का व्रत इस माह 02 जुलाई, दिन शुक्रवार को पड़ रहा है। शीतला माता की पूजा में एक दिन पहले बने बासी खाने का भोग लगाया जाता है, इसलिए शीतलाष्टमी को बसौड़ा भी कहते हैं। शीतलाष्टमी के दिन व्रत रख कर मां का पूजन-अर्चन करने के बाद व्रत कथा सुनने का विधान है। आइए जानते हैं शीतला माता की व्रत कथा..

शीतला माता की व्रत कथा

शीतला माता की व्रत कथा के अनुसार, एक गांव में एक ब्राह्मण परिवार में बुजुर्ग दंपत्ति के दो बेटे और दो बहुएं थीं। दोनों बहुओं को एक –एक संतान थी। घर में सभी मिल कर प्रेम से रहते थे, तभी शीतलाष्टमी का पर्व आया। दोनों बहुओं ने व्रत के विधान के अनुसार, एक दिन पहले ही बासौड़ा मतलब बासी भोजन मां के भोग के लिए तैयार कर लिया। लेकिन दोनों की संतानें छोटी थीं, उनको लगा कि कहीं बासी खाना उनके बच्चों को नुकसान न कर जाए, इसलिए उन्होंने अपने बच्चों को ताजा खाना बना के खिला दिया। शीतला मां का पूजन करने बाद जब वो घर लौटीं, तो बच्चों को मरा हुआ देख रोने लगी। उनकी सास ने उन्हें शीतला मां को नाराज करने का फल बताया और कहा जाओ जब तक अपने बच्चे जीवित न कर लेना घर वापस नहीं आना।

शीतला मां की परीक्षा और आशीर्वाद

दोनों बहुएं अपने मरे हुए बच्चों को लेकर भटकने लगीं ,तभी उन्हें खेजड़ी के पेड़ के नीचे ओरी और शीतला दो बहनें मिलीं। दोनों बहने गंदगी और जूं के कारण बहुत परेशान थीं। बहुओं से उन बहनों की परेशानी देखी नहीं गई, उन्होंने अपना दुख भूल कर दोनों बहनों के सिर से जूएं निकालें। जूएं निकालने के बाद शीतला और ओरी ने प्रसन्न हो कर दोनों बहुओं के पुत्रवती होने की कामना की। इस पर दोनों बहुएं अपना दुख बता कर रोने लगीं। शीतला माता अपने स्वरूप में प्रकट हुईं। दोनों बहुओं को शीतलाष्टमी के दिन ताजा खाना खाने की भूल का एहसास दिलाया और इसे सेहत के लिए हानिकारक बताया। शीतला मां ने दोनों बहुओं को अपनी गलती आगे से न दोहराने की चेतावनी देते हुए दोनों के बच्चों को जीवित कर दिया। शीतला मां के साक्षात दर्शन और अपने बच्चों को पुनः जीवित पाकर दोनों बहुएं बड़ी प्रसन्नता के साथ घर लौटी और आजीवन विधि-विधान से शीतला मां की पूजा और व्रत करने लगीं। शीतला माता की कृपा से हम सब भी अपने जीवन में सेहत और आरोग्य प्राप्त करें। बोलो शीतला माता की जय...

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