Solah Somvar Vrat: जानें, क्यों किया जाता है सोलह सोमवार व्रत और क्या है इसकी व्रत कथा
Solah Somvar Vrat ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति की यथाशीघ्र शादी हो जाती है। इस व्रत को शुरू करने के लिए सावन का महीना सबसे उत्तम माना जाता है।
नई दिल्ली, लाइफस्टाइल डेस्क। Solah Somvar Vrat: सोमवार का दिन देवों के देव महादेव को समर्पित है। इस दिन भगवान भोलेनाथ की पूजा-उपासना की जाती है। इन्हें शिव, भोलेनाथ, महादेव आदि नामों से जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान विष्णु सावन महीने में क्षीर सागर में सुप्तावस्था में चले जाते हैं, उस समय समस्त संसार के पालनहार शिव जी होते हैं। इसलिए सावन महीने में शिव जी की विशेष पूजा-उपासना की जाती है। इस महीने से सोलह सोमवार व्रत भी किया जाता है। अगर आपको सोलह सोमवारी की कथा के बारे में नहीं पता है तो आइए जानते हैं-
सोलह सोमवार व्रत कथा
सोलह सोमवार के व्रत को लेकर कई कथाएं हैं, लेकिन एक कथा सबसे प्रसिद्ध और सिद्ध है। शिव पुराण के अनुसार, एक बार जब कामदेव की दृढ़ता के चलते भगवान जी की तपस्या भंग हुई, तो उस समय भगवान शिव जी ने उन्हें अपनी तीसरी दृष्टि से भस्म कर दिया था। जब कामदेव ने शिव जी की तपस्या को भंग करने की चेष्ठा की थी, उस समय माता पार्वती भी वहां उपस्थित थीं। तब माता पार्वती का ऐसा एहसास हुआ कि शायद भगवान भोलेनाथ जाने-अनजाने में उन्हें भी अपमानित किया है। उस समय उन्होंने प्रतिज्ञा ली की कि वह शिव जी की कठिन तपस्या कर उनको पति रूप में वरण करेंगी।
कामदेव का पुनर्जन्म हुआ
इसके बाद माता पार्वती ने कठिन तपस्या की। इस क्रम में शिव जी ने उनकी कई बार परीक्षाएं भी लीं, लेकिन महादेव, माता पार्वती के अटूट श्रद्धा और संकल्प को डिगा न सके। इस अवधि में माता पार्वती ने सोलह सोमवारी का व्रत भी किया था। इसके बाद शिव जी ने माता पार्वती को वरदान दिया। इस वरदान से न केवल माता पार्वती की शादी शिव जी से हुई, बल्कि कामदेव का भी पुनर्जन्म हुआ। कालांतर काल से सोलह सोमवार का व्रत मनाया जाता है। इस कथा को महान कवि कालिदास ने भी अपनी पुस्तक में वर्णन किया है।
सोलह सोमवार व्रत का महत्व
इस व्रत का अति विशेष महत्व है। इसे कुंवारी लड़कियां अधिक करती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति की यथाशीघ्र शादी हो जाती है। इस व्रत को शुरू करने के लिए सावन का महीना सबसे उत्तम माना जाता है। इसके अलावा आप मार्गश्रीष यानी अगहन महीने में भी इसे शुरू कर सकते हैं। कुछ पंडित चैत्र और अगहन में इस व्रत को करने की सलाह देते हैं।