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krishna ji ki aarti: आज पूजा के समय करें कुंज बिहारी जी की आरती, प्राप्त होगा भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद

Krishna Ji ki Aarti Kunj Bihari Ki भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण धरा पर अवतरित हुए थे। अतः हर वर्ष भाद्रपद माह में कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है। इस दिन साधक बाल गोपाल के निमित्त व्रत रख श्रद्धा भाव से भगवान मधुसूदन की पूजा-उपासना करते हैं। भाद्रपद माह में देवों के देव महादेव के पुत्र भगवान गणेश का भी जनमोत्स्व मनाया जाता है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Wed, 06 Sep 2023 07:30 AM (IST)
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krishna ji ki aarti: आज पूजा के समय करें कुंज बिहारी जी की आरती, प्राप्त होगा भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। krishna ji ki aarti Lyrics: सनातन पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण धरा पर अवतरित हुए थे। अतः हर वर्ष भाद्रपद माह में कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है। इस प्रकार आज जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण का जनमोत्स्व है। इस दिन साधक बाल गोपाल के निमित्त व्रत रख श्रद्धा भाव से भगवान मधुसूदन की पूजा-उपासना करते हैं। भाद्रपद माह में देवों के देव महादेव के पुत्र भगवान गणेश का भी जनमोत्स्व मनाया जाता है। इस वर्ष 19 सितंबर को गणेश चतुर्थी है। धार्मिक मत है कि भगवान श्रीकृष्ण के शरणागत रहने वाले साधक को जीवन में सभी प्रकार के सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही अंत काल में भवसागर से मुक्ति मिलती है। अगर आप भी भगवान मधुसूदन की विशेष कृपा पाना चाहते हैं, तो आज कुंज बिहारी जी की आरती जरूर करें। आइए, कृष्ण कन्हैया जी की आरती करें-

आरती कुंज बिहारी जी की

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

गले में बैजंती माला,

बजावै मुरली मधुर बाला ।

श्रवण में कुण्डल झलकाला,

नंद के आनंद नंदलाला ।

गगन सम अंग कांति काली,

राधिका चमक रही आली ।

लतन में ठाढ़े बनमाली

भ्रमर सी अलक,

कस्तूरी तिलक,

चंद्र सी झलक,

ललित छवि श्यामा प्यारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

॥ आरती कुंजबिहारी की...॥

कनकमय मोर मुकुट बिलसै,

देवता दरसन को तरसैं ।

गगन सों सुमन रासि बरसै ।

बजे मुरचंग,

मधुर मिरदंग,

ग्वालिन संग,

अतुल रति गोप कुमारी की,

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

॥ आरती कुंजबिहारी की...॥

जहां ते प्रकट भई गंगा,

सकल मन हारिणि श्री गंगा ।

स्मरन ते होत मोह भंगा

बसी शिव सीस,

जटा के बीच,

हरै अघ कीच,

चरन छवि श्रीबनवारी की,

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

॥ आरती कुंजबिहारी की...॥

चमकती उज्ज्वल तट रेनू,

बज रही वृंदावन बेनू ।

चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू

हंसत मृदु मंद,

चांदनी चंद,

कटत भव फंद,

टेर सुन दीन दुखारी की,

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

॥ आरती कुंजबिहारी की...॥

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की

आरती कुंजबिहारी की,

श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'