ऐसे करें महेश नवमी को पूजा, प्रसन्न होंगे भगवान शिव
प्रतिवर्ष, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को 'महेश नवमी' का उत्सव मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 3 जून को पड़ रहा है।
By abhishek.tiwariEdited By: Updated: Fri, 02 Jun 2017 12:04 PM (IST)
महादेव को समर्पित है यह पर्व
परंपरागत मान्यता के अनुसार माहेश्वरी समाज की वंशोत्पत्ति युधिष्ठिर संवत 9 के ज्येष्ठ शुक्ल नवमी को हुई थी, तबसे माहेश्वरी समाज प्रतिवर्ष की ज्येष्ठ शुक्ल नवमी को "महेश नवमी" के नाम से माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिन के रूप से बहुत धूम धाम से मनाता है। यह पर्व मुख्य रूप से भगवान महेश (महादेव) और माता पार्वती की आराधना को समर्पित है।
क्या है इसकी कथापुराणों की मानें तो इस दिन भगवान महेश और आदिशक्ति माता पार्वती ने ऋषियों के शाप के कारन पत्थर बने हुए 72 क्षत्रिय उमराओं को शापमुक्त किया था। और पुनर्जीवन देते हुए कहा की, "आज से तुम्हारे वंशपर (धर्मपर) हमारी छाप रहेगी, तुम “माहेश्वरी’’ कहलाओगे। भगवान महेश और माता पार्वती की कृपा से 72 क्षत्रिय उमरावों को पुनर्जीवन मिला और माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति हुई इसलिए भगवान महेश और माता पार्वती को माहेश्वरी समाज के संस्थापक मानकर माहेश्वरी समाज में यह उत्सव 'माहेश्वरी वंशोत्पत्ति दिन' के रुपमें बहुत ही भव्य रूप में और बड़ी ही धूम-धाम से मनाया जाता है। इस उत्सव की तैयारी पहले से ही शुरु हो जाती है। इस दिन धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यक्रम किए जाते हैं, शोभायात्रा निकाली जाती हैं, भगवान महेशजी की महाआरती होती है। यह पर्व भगवान महेश और पार्वती के प्रति पूर्ण भक्ति और आस्था प्रगट करता है।
शिवलिंग की पूजा का विशेष महत्वइस दिन भगवान महेश का लिंग रूप में विशेष पूजन करने से व्यापार में उन्नति होती है। शिवलिंग पर भस्म से त्रिपुंड लगाया जाता है जो त्याग व वैराग्य का सूचक है। इसके अलावा त्रिशूल का विशिष्ट पूजन किया जाता है। शिव पूजन में डमरू बजाए जाते हैं। शिव का डमरू जनमानस की जागृति का प्रतीक है। महेश नवमी पर भगवान महेश की विशेषकर कमल के पुष्पों से पूजा कि जाती है।