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Masik Krishna Janmashtami 2024: मासिक कृष्ण जन्माष्टमी पर करें इस चालीसा का पाठ, चमक जाएगी आपकी किस्मत

धार्मिक मान्यता के अनुसार मासिक कृष्ण जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण की सच्चे मन से पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि का वास बना रहता है। साथ ही व्रत करने से जीवन में आने सभी दुख और संकट से मुक्ति मिलती है। अगर आप भी भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न करना चाहते हैं तो इस दिन पूजा के दौरान कृष्ण चालीसा का पाठ करें। इससे जातक की किस्मत चमक सकती है।

By Kaushik Sharma Edited By: Kaushik Sharma Updated: Tue, 23 Jul 2024 05:44 PM (IST)
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Masik Krishna Janmashtami 2024: कृष्ण पक्ष में मनाई जाती है मासिक कृष्ण जन्माष्टमी

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Kab Hai Masik Krishna Janmashtami 2024: सनातन शास्त्रों की मानें तो भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण का अवतरण हुआ था। इसलिए हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर मासिक कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार बेहद उत्साह के साथ मनाया जाता है। पंचांग के अनुसार, सावन के महीने में मासिक कृष्ण जन्माष्टमी 27 जुलाई को है। इस तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण की विधिपर्वक पूजा की जाती है।

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मासिक कृष्ण जन्माष्टमी 2024 डेट और शुभ मुहूर्त (Masik Krishna Janmashtami 2024 Date and Shubh Muhurat)

पंचांग के मुताबिक, सावन महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 27 जुलाई 2024 को रात 09 बजकर 19 मिनट से होगी और इसके अगले दिन यानी 28 जुलाई 2024 को रात 07 बजकर 27 मिनट पर तिथि का समापन होगा। ऐसे में 27 जुलाई को मासिक कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाएगी।

कृष्ण चालीसा (Krishna Chalisa)

॥ दोहा ॥

बंशी शोभित कर मधुर,नील जलद तन श्याम।

अरुण अधर जनु बिम्बा फल,पिताम्बर शुभ साज॥

जय मनमोहन मदन छवि,कृष्णचन्द्र महाराज।

करहु कृपा हे रवि तनय,राखहु जन की लाज॥

॥ चौपाई ॥

जय यदुनन्दन जय जगवन्दन।

जय वसुदेव देवकी नन्दन॥

जय यशुदा सुत नन्द दुलारे।

जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥

जय नट-नागर नाग नथैया।

कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया॥

पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो।

आओ दीनन कष्ट निवारो॥

वंशी मधुर अधर धरी तेरी।

होवे पूर्ण मनोरथ मेरो॥

आओ हरि पुनि माखन चाखो।

आज लाज भारत की राखो॥

गोल कपोल, चिबुक अरुणारे।

मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥

रंजित राजिव नयन विशाला।

मोर मुकुट वैजयंती माला॥

कुण्डल श्रवण पीतपट आछे।

कटि किंकणी काछन काछे॥

नील जलज सुन्दर तनु सोहे।

छवि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥

मस्तक तिलक, अलक घुंघराले।

आओ कृष्ण बाँसुरी वाले॥

करि पय पान, पुतनहि तारयो।

अका बका कागासुर मारयो॥

मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला।

भै शीतल, लखितहिं नन्दलाला॥

सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई।

मसूर धार वारि वर्षाई॥

लगत-लगत ब्रज चहन बहायो।

गोवर्धन नखधारि बचायो॥

लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई।

मुख महं चौदह भुवन दिखाई॥

दुष्ट कंस अति उधम मचायो।

कोटि कमल जब फूल मंगायो॥

नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें।

चरणचिन्ह दै निर्भय किन्हें॥

करि गोपिन संग रास विलासा।

सबकी पूरण करी अभिलाषा॥

केतिक महा असुर संहारयो।

कंसहि केस पकड़ि दै मारयो॥

मात-पिता की बन्दि छुड़ाई।

उग्रसेन कहं राज दिलाई॥

महि से मृतक छहों सुत लायो।

मातु देवकी शोक मिटायो॥

भौमासुर मुर दैत्य संहारी।

लाये षट दश सहसकुमारी॥

दै भिन्हीं तृण चीर सहारा।

जरासिंधु राक्षस कहं मारा॥

असुर बकासुर आदिक मारयो।

भक्तन के तब कष्ट निवारियो॥

दीन सुदामा के दुःख टारयो।

तंदुल तीन मूंठ मुख डारयो॥

प्रेम के साग विदुर घर मांगे।

दुर्योधन के मेवा त्यागे॥

लखि प्रेम की महिमा भारी।

ऐसे श्याम दीन हितकारी॥

भारत के पारथ रथ हांके।

लिए चक्र कर नहिं बल ताके॥

निज गीता के ज्ञान सुनाये।

भक्तन ह्रदय सुधा वर्षाये॥

मीरा थी ऐसी मतवाली।

विष पी गई बजाकर ताली॥

राना भेजा सांप पिटारी।

शालिग्राम बने बनवारी॥

निज माया तुम विधिहिं दिखायो।

उर ते संशय सकल मिटायो॥

तब शत निन्दा करी तत्काला।

जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥

जबहिं द्रौपदी टेर लगाई।

दीनानाथ लाज अब जाई॥

तुरतहिं वसन बने नन्दलाला।

बढ़े चीर भै अरि मुँह काला॥

अस नाथ के नाथ कन्हैया।

डूबत भंवर बचावत नैया॥

सुन्दरदास आस उर धारी।

दयादृष्टि कीजै बनवारी॥

नाथ सकल मम कुमति निवारो।

क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥

खोलो पट अब दर्शन दीजै।

बोलो कृष्ण कन्हैया की जै॥

॥ दोहा ॥

यह चालीसा कृष्ण का,पाठ करै उर धारि।

अष्ट सिद्धि नवनिधि फल,लहै पदारथ चारि॥

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