Narak Chaturdashi 2022: नरक चतुर्दशी के दिन जरूर करें यमसूक्तम् का पाठ
Narak Chaturdashi 2022 नरक चतुर्दशी के दिन भगवान श्री कृष्ण के साथ यमराज की भी पूजा की जाती है। इस दिन यमराज की पूजा करने से भक्तों को अकाल मृत्यु का भय दूर हो जाता है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
By Shantanoo MishraEdited By: Updated: Sun, 23 Oct 2022 01:41 PM (IST)
नई दिल्ली, डिजिटल डेस्क | Narak Chaturdashi 2022: कार्तिक मास में नरक चतुर्दशी पर्व को अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रहे दैत्य नरकासुर का वध किया था। बता दें कि नरक चतुर्दशी के दिन भगवान श्री कृष्ण और माता काली के साथ-साथ यमराज की पूजा का भी विधान है। आज यानि 23 अक्टूबर 2022 के दिन नरक चतुर्दशी (Narak Chaturdashi 2022 Date) पर्व मनाया जा रहा है। मान्यता है कि आज के यमराज की पूजा करने से मृत्यु के उपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है और अकाल मृत्यु का भय दूर हो जाता है। यमराज को प्रसन्न करने के लिए नरक चतुर्दशी पर्व सबसे उपयुक्त माना जाता है। इस दिन संध्या पूजा के बाद व्यक्ति को यमसूक्तम् का पाठ जरूर करना चाहिए।
।। अथ यमसूक्तम् ।।
ॐ तदेवाग्निस्तदादित्यस्तद्वायु स्तदुचंद्रमाः।।तदेव शुक्रं तद्ब्रह्मताऽआपः स प्रजापतिः ।।
सर्वेनिमेषाः जज्ञिरे विद्युतः पुरुषादधि ।।नैनमूर्द्धन्नतिर्यञ्चन्नमद्धये परिजग्रभत् ।।
न तस्य प्रतिमाऽअस्ति यस्य नाम महद्यशः ।।हिरण्यगर्भऽइत्येषमामाहिसीदित्येषा यस्मान्न जातऽइत्येषः ।।एषो हदेवः प्रदिशोनु सर्वाः पूर्वोह जातः सऽउगर्भेऽअंतः ।।
सऽएवजातः स जनिष्यमाणः प्रत्यङ् जनास्तिष्ठति सर्वतो मुखः ।।यस्माज्जातन्नपुरा किञ्चनैवयऽआवभूव भुवनानि विश्वा।।प्रजापतिः प्रजयास रराणस्त्रीणि ज्योति सि सचते षोडशी ।।येनद्यौ रुग्रापृथिवी च दृढायेन स्वस्तभितं येन नाकः ।।येऽअंतरिक्षे रजसो विमानः कस्मैदेवाय हविषा विधेम ।।यंक्रन्दसीऽअवसा तस्तभानेऽअब्भ्यै क्षेताम्मनसा रेजमानो ।।यत्राधिसूरऽउदितो विभाति कस्मै देवाय हविषा विधेम आपोह यद्बृहतीर्यश्चि दापः ।।
वेनस्तत्पश्यन्निहितं गुहासद्यत्र विश्वम्भवत्येक नीडम् ।।तस्मिन्निदसञ्च विचैति सर्वसऽओतः प्रोतश्च विभूः प्रजासु ।।प्रतद्वो चेदमृतन्नु विद्वान्गंधर्वो धामविभृतं गुहासत् ।।त्रीणिपदानि निहिता गुहास्य यस्तानिवेद सपितुः पितासत् ।।स नो बंधुर्जनिता सविधाता धामानि वेद भुवनानि विश्वा।।यत्रदेवाऽअमृतमानशानास्तृतीये धामन्नद्धयैरयन्त ।।परीत्यभूतानि परीत्यलोकान्परीत्यसर्वा: प्रदिशो दिशश्च ।।
उपस्त्थाय प्रथम जामृतस्यात्मनात्मानमभि संविवेश ।।परिद्यावा पृथिवी सद्यऽइत्वा परिलोकान्परिदिशः परिस्वः ।।ऋतस्य तन्तुम् विततम् विचृत्य तदपश्यत्तदभवत्तदासीत् ।।सदसस्पतिमद्भूतम्प्रियमिन्द्रस्य काम्यम् ।।सनिम्मेधामयासिषस्वाहा ।।याम्मेधान्देवगणाः पितरश्चोपासते ।।तयामामद्य मेधयाग्ने मेधाविनं कुरुस्वाहा ।।मेधाम्मे वरुणो ददातु मेधामग्निः प्रजापतिः।।
मेधामिन्द्रश्च वायुश्च मेधान्धाता ददातुमे स्वाहा ।।इदम्मे ब्रह्मच क्षत्रञ्चोभे श्रियमश्रुताम् ।।मयिदेवा दधत श्रिममुत्तमान्तस्यै ते स्वाहा।।इति यमसूक्तम् समाप्त।।