Narmada Jayanti 2021 Katha: कैसे हुआ मां नर्मदा का जन्म? पढ़ें उनसे जुड़ी यह पौराणिक कथाएं
Narmada Jayanti 2021 Katha माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को नर्मदा जयंती मनाई जाती है। आज माघ शुक्ल सप्तमी है और पूरे देश में नर्मदा जयंती मनाई जा रही है। जागरण अध्यात्म में आज हम आपको मां नर्मदा के जन्म की कथा बता रहे हैं।
By Kartikey TiwariEdited By: Updated: Fri, 19 Feb 2021 08:34 AM (IST)
Narmada Jayanti 2021 Katha: हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को नर्मदा जयंती मनाई जाती है। आज माघ शुक्ल सप्तमी है और पूरे देश में नर्मदा जयंती मनाई जा रही है। जिस प्रकार से मां गंगा को हिन्दू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है, वैसे ही मां नर्मदा को भी प्राप्त है। गंगा के समान ही नर्मदा नदी में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है, पाप नष्ट होते हैं। जागरण अध्यात्म में आज हम आपको मां नर्मदा के जन्म की कथा बता रहे हैं। आइए पढ़ते हैं इसके बारे में।
मां नर्मदा की जन्म कथापौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार भगवान शिव तपस्या में लीन थे, तब उनके पसीने से नर्मदा का जन्म हुआ। उस समय भगवान शिव मैखल पर्वत पर थे। उन्होंने उस कन्या का नाम नर्मदा रखा। जिसका अर्थ होता है सुख प्रदान करने वाली। भगवान शिव ने उस कन्या को आशीष दिया कि जो कोई तुम्हारा दर्शन करेगा, उसका कल्याण होगा। वह मैखल पर्वत पर उत्पन्न हुई थीं, इसलिए वह मैखल राज की पुत्री भी कहलाती हैं।
एक अन्य कथा के अनुसार, मैखल पर्वत पर भगवान शिव से दिव्य कन्या नर्मदा प्रकट हुई थीं। देवताओं ने उनका नाम नर्मदा रखा। उन्होंने हजारों वर्ष तक भगवान शिव की तपस्या की, जिससे भोलेनाथ प्रसन्न हुए। फिर उन्होंने नर्मदा को पापनाशिनी का आशीष दिया। साथ ही उनको यह भी वरदान मिला कि उनके तट पर सभी देवी देवताओं का वास होगा और नदी के सभी पत्थर शिवलिंग स्वरूप में पूजे जाएंगे।एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, जब नर्मदा जी बड़ी हुईं तो उनके पिता मैखलराज ने उनका विवाह राजकुमार सोनभद्र से तय कर दिया। एक बाद उनको राजकुमार से मिलने की इच्छा हुई तो उन्होंने एक दासी को उनसे मिलने के लिए भेजा। वह दासी राजसी आभूषणों से अलंकृत थी, जिसे राजकुमार सोनभद्र नर्मदा समझ लिए। दोनों का विवाह हो गया। काफी समय बीतने के बाद भी दासी के वापस न लौटने पर नर्मदा जी स्वयं राजकुमार सोनभद्र से मिलने पहुंचीं। उन्होंने राजकुमार सोनभद्र को दासी के साथ पाया। तब वे काफी दुखी हुईं और कभी विवाह न करने का निर्णय लिया। कहा जाता है कि उसके बाद से ही मां नर्मदा पश्चिम की ओर चल दीं। उसके बाद से वे कभी वापस नहीं लौटीं, इसलिए मां नर्मदा आज भी पश्चिम दिशा में बहती हैं।
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