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Brihaspati Dev Ki Aarti: गुरुवार के दिन पूजा के समय करें बृहस्पति देव की आरती, आय और सौभाग्य में होगी वृद्धि

Brihaspati Dev Ji Ki Aarti ज्योतिषियों की मानें तो गुरुवार के दिन देवगुरु बृहस्पति की पूजा करने से साधक को सभी प्रकार के सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही करियर और कारोबार को नया आयाम मिलता है। अगर किसी जातक की कुंडली में गुरु कमजोर होता है तो उन्हें देवगुरु बृहस्पति की पूजा और गुरुवार का व्रत करने की सलाह दी जाती है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Thu, 24 Aug 2023 07:00 AM (IST)
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Brihaspati Dev Ji Ki Aarti: गुरुवार के दिन पूजा के समय करें बृहस्पति देव की आरती

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Brihaspati Dev Ji Ki Aarti: गुरुवार का दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा-उपासना की जाती है। साथ ही विशेष कार्यों में सिद्धि प्राप्ति हेतु गुरुवार का व्रत रखा जाता है। इस दिन देवगुरु बृहस्पति की भी आराधना की जाती है। ज्योतिषियों की मानें तो गुरुवार के दिन देवगुरु बृहस्पति की पूजा करने से साधक को सभी प्रकार के सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही करियर और कारोबार को नया आयाम मिलता है। अगर किसी जातक की कुंडली में गुरु कमजोर होता है, तो उन्हें देवगुरु बृहस्पति की पूजा और गुरुवार का व्रत करने की सलाह दी जाती है। गुरुवार का व्रत करने से विवाहित महिलाओं को सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वहीं, अविवहित जातकों (लड़कियों) की शीघ्र शादी के योग बनने लगते हैं। अगर आप भी देवगुरु बृहस्पति की कृपा पाना चाहते हैं, तो गुरुवार के दिन पूजा के समय देवगुरु बृहस्पति जी की आरती जरूर करें। आइए, देवगुरु बृहस्पति की आरती करें-

बृहस्पति देव की आरती

जय बृहस्पति देवा,

ऊँ जय बृहस्पति देवा ।

छिन छिन भोग लगा‌ऊँ,

कदली फल मेवा ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा,

जय बृहस्पति देवा ॥

तुम पूरण परमात्मा,

तुम अन्तर्यामी ।

जगतपिता जगदीश्वर,

तुम सबके स्वामी ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा,

जय बृहस्पति देवा ॥

चरणामृत निज निर्मल,

सब पातक हर्ता ।

सकल मनोरथ दायक,

कृपा करो भर्ता ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा,

जय वृहस्पति देवा ॥

तन, मन, धन अर्पण कर,

जो जन शरण पड़े ।

प्रभु प्रकट तब होकर,

आकर द्घार खड़े ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा,

जय वृहस्पति देवा ॥

दीनदयाल दयानिधि,

भक्तन हितकारी ।

पाप दोष सब हर्ता,

भव बंधन हारी ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा,

जय वृहस्पति देवा ॥

सकल मनोरथ दायक,

सब संशय हारो ।

विषय विकार मिटा‌ओ,

संतन सुखकारी ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा,

जय बृहस्पति देवा ॥

जो को‌ई आरती तेरी,

प्रेम सहित गावे ।

जेठानन्द आनन्दकर,

सो निश्चय पावे ॥

ऊँ जय बृहस्पति देवा,

जय बृहस्पति देवा ॥

सब बोलो विष्णु भगवान की जय ।

बोलो बृहस्पति देव भगवान की जय ॥

डिसक्लेमर-'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी। '