Maa Saraswati Ki Aarti: आज पूजा के समय करें मां शारदे की आरती, सुख और सौभाग्य में होगी वृद्धि
Maa Saraswati Ki Aarti मां सरस्वती को भगवती चंद्रघंटा वाणिश्वरी बुद्धिदात्री सिद्धिदात्री भुवनेश्वरी गायत्री और ब्राह्मणी समेत कई अन्य प्रमुख नामों से जाना जाता है। मां की सवारी हंस है। मां सरस्वती के एक हाथ में वेद और दूजे हाथ में वीणा है। शास्त्रों में निहित है कि विद्या की देवी मां सरस्वती जहां रहती हैं। उस स्थान पर धन की देवी मां लक्ष्मी अवश्य विराजती हैं।
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Maa Saraswati Ki Aarti: सनातन धर्म में मां सरस्वती को विद्या की देवी कहा जाता है। वसंत पंचमी पर मां सरस्वती की विशेष पूजा उपासना की जाती है। मां सरस्वती को भगवती, चंद्रघंटा, वाणिश्वरी, बुद्धिदात्री, सिद्धिदात्री, भुवनेश्वरी, गायत्री और ब्राह्मणी समेत कई अन्य प्रमुख नामों से जाना जाता है। मां की सवारी हंस है। मां सरस्वती के एक हाथ में वेद और दूजे हाथ में वीणा है। शास्त्रों में निहित है कि विद्या की देवी मां सरस्वती जहां रहती हैं। उस स्थान पर धन की देवी मां लक्ष्मी अवश्य विराजती हैं। धार्मिक मान्यता है कि मां सरस्वती की पूजा करने से साधक को बुद्धि, विद्या, सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही करियर और कारोबार में मन मुताबिक सफलता मिलती है। अगर आप भी मां सरस्वती की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो आज पूजा के समय मां सरस्वती की आरती जरूर करें।
सरस्वती माता की आरती
सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता ॥
जय जय सरस्वती माता...
चन्द्रवदनि पद्मासिनि, द्युति मंगलकारी ।
सोहे शुभ हंस सवारी, अतुल तेजधारी ॥
जय जय सरस्वती माता...
बाएं कर में वीणा, दाएं कर माला ।
शीश मुकुट मणि सोहे, गल मोतियन माला ॥
जय जय सरस्वती माता...
देवी शरण जो आए, उनका उद्धार किया ।
पैठी मंथरा दासी, रावण संहार किया ॥
जय जय सरस्वती माता...
विद्या ज्ञान प्रदायिनि, ज्ञान प्रकाश भरो ।
मोह अज्ञान और तिमिर का, जग से नाश करो ॥
जय जय सरस्वती माता...
धूप दीप फल मेवा, माँ स्वीकार करो ।
ज्ञानचक्षु दे माता, जग निस्तार करो ॥
जय जय सरस्वती माता...
माँ सरस्वती की आरती, जो कोई जन गावे ।
हितकारी सुखकारी, ज्ञान भक्ति पावे ॥
जय जय सरस्वती माता...
जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता ।
सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता ॥
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सरस्वती माता की आरती-2
ओइम् जय वीणे वाली, मैया जय वीणे वाली
ऋद्धि-सिद्धि की रहती, हाथ तेरे ताली
ऋषि मुनियों की बुद्धि को, शुद्ध तू ही करती
स्वर्ण की भाँति शुद्ध, तू ही माँ करती॥
ज्ञान पिता को देती, गगन शब्द से तू
विश्व को उत्पन्न करती, आदि शक्ति से तू॥
हंस-वाहिनी दीज, भिक्षा दर्शन की
मेरे मन में केवल, इच्छा तेरे दर्शन की॥
ज्योति जगा कर नित्य, यह आरती जो गावे
भवसागर के दुख में, गोता न कभी खावे॥
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