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Pradosh Vrat 2024: प्रदोष व्रत की पूजा में करें इस स्तोत्र का पाठ, घर में होगा खुशियों का आगमन

प्रदोष व्रत के दिन सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति के लिए भगवन शिव और मां पार्वती की पूजा प्रदोष काल में करने का विधान है। मान्यता है कि इस व्रत के पुण्य-प्रताप से जातक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। यदि आप भी महादेव को प्रसन्न करना चाहते हैं तो प्रदोष व्रत की पूजा के दौरान काल भैरव तांडव स्तोत्र का पाठ जरूर करें।

By Kaushik Sharma Edited By: Kaushik Sharma Updated: Tue, 02 Jul 2024 01:57 PM (IST)
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Pradosh Vrat 2024: प्रदोष व्रत बेहद महत्वपूर्ण माना गया है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Kaal Bhairav Tandav Stotram: सनातन धर्म में सभी तिथि किसी न किसी देवी-देवताओं को समर्पित है। ठीक इसी प्रकार कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना करने का विधान है। साथ ही सभी मुरादें पूरी करने के लिए व्रत भी किया जाता है। इस बार यह व्रत 3 जुलाई 2024 दिन बुधवार को रखा जाएगा। धार्मिक मान्यता है कि प्रदोष व्रत के दौरान श्रद्धा अनुसार अन्न, धन और वस्त्र का दान करने से जातक का जीवन खुशहाल रहता है और घर में खुशियों का आगमन होता है। इस दिन पूजा के दौरान काल भैरव तांडव स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। इससे जीवन में व्याप्त समस्त प्रकार के दुख और संताप से मुक्ति मिलती है। साथ ही घर में खुशियों का आगमन होता है।

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काल भैरव तांडव स्तोत्र

ॐ चण्डं प्रतिचण्डं करधृतदण्डं कृतरिपुखण्डं सौख्यकरम् ।

लोकं सुखयन्तं विलसितवन्तं प्रकटितदन्तं नृत्यकरम् ।।

डमरुध्वनिशंखं तरलवतंसं मधुरहसन्तं लोकभरम् ।

भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं भैरववेषं कष्टहरम् ।।

चर्चित सिन्दूरं रणभूविदूरं दुष्टविदूरं श्रीनिकरम् ।

किँकिणिगणरावं त्रिभुवनपावं खर्प्परसावं पुण्यभरम् ।।

करुणामयवेशं सकलसुरेशं मुक्तशुकेशं पापहरम् ।

भज भज भूतेशं प्रकट महेशं श्री भैरववेषं कष्टहरम् ।।

कलिमल संहारं मदनविहारं फणिपतिहारं शीध्रकरम् ।

कलुषंशमयन्तं परिभृतसन्तं मत्तदृगृन्तं शुद्धतरम् ।।

गतिनिन्दितहेशं नरतनदेशं स्वच्छकशं सन्मुण्डकरम् ।

भज भज भूतेशं प्रकट महेशं श्रीभैरववेशं कष्टहरम् ।।

कठिन स्तनकुंभं सुकृत सुलभं कालीडिँभं खड्गधरम् ।

वृतभूतपिशाचं स्फुटमृदुवाचं स्निग्धसुकाचं भक्तभरम् ।।

तनुभाजितशेषं विलमसुदेशं कष्टसुरेशं प्रीतिनरम् ।

भज भज भूतेशं प्रकट महेशं श्रीभैरववेशं कष्टहरम् ।।

ललिताननचंद्रं सुमनवितन्द्रं बोधितमन्द्रं श्रेष्ठवरम् ।

सुखिताखिललोकं परिगतशोकं शुद्धविलोकं पुष्टिकरम् ।।

वरदाभयहारं तरलिततारं क्ष्युद्रविदारं तुष्टिकरम् ।

भज भज भूतेशं प्रकट महेशं श्रीभैरववेषं कष्टहरम् ।।

सकलायुधभारं विजनविहारं सुश्रविशारं भृष्टमलम् ।

शरणागतपालं मृगमदभालं संजितकालं स्वेष्टबलम् ।।

पदनूपूरसिंजं त्रिनयनकंजं गुणिजनरंजन कुष्टहरम् ।

भज भज भूतेशं प्रकट महेशं श्री भैरव वेषं कष्टहरम् ।।

मदयिँतुसरावं प्रकटितभावं विश्वसुभावं ज्ञानपदम् ।

रक्तांशुकजोषं परिकृततोषं नाशितदोषं सन्मंतिदमम् ।।

कुटिलभ्रकुटीकं ज्वरधननीकं विसरंधीकं प्रेमभरम् ।

भज भज भूतेशं प्रकट महेशं श्रीभैरववेषं कष्टहरम् ।।

परिर्निजतकामं विलसितवामं योगिजनाभं योगेशम् ।

बहुमधपनाथं गीतसुगाथं कष्टसुनाथं वीरेशम् ।।

कलयं तमशेषं भृतजनदेशं नृत्य सुरेशं वीरेशम् ।

भज भज भूतेशं प्रकट महेशं श्रीभैरववेषं कष्टहरम् ।।

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।