Putrada Ekadashi 2024: पुत्रदा एकादशी पर करें कार्तवीर्य द्वादशनाम स्तोत्र का पाठ, आर्थिक तंगी से मिलेगी निजात
पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi 2024) हर वर्ष सावन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु संग धन की देवी मां लक्ष्मी की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। शास्त्रों में वर्णित है कि भगवान विष्णु के अंशावतार कार्तवीर्य अर्जुन हैं। इनकी पूजा-उपासना करने से साधक को सभी संकटों से मुक्ति मिलती है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Putrada Ekadashi 2024: वैदिक पंचांग के अनुसार, 16 अगस्त को सावन माह के शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी है। इस दिन लक्ष्मी नारायण जी की पूजा की जाती है। साथ ही एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस व्रत को करने से निसंतान दंपतियों को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। साथ ही मनचाही मुराद भी पूरी होती है। इस शुभ अवसर पर साधक स्नान-ध्यान से निवृत होने के बाद विधि-विधान से जगत के नाथ भगवान विष्णु एवं मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं। इस समय कच्चे दूध में केसर मिलाकर भगवान विष्णु का अभिषेक करते हैं। साथ ही भगवान विष्णु को पीले रंग के फल, फूल, अखंडित चावल और गुड़ से मिश्रित खीर अर्पित करते हैं। इस व्रत को करने से साधक को सभी प्रकार की परेशानियों से मुक्ति मिलती है। अगर आप भी धन संबंधी परेशानी से निजात पाना चाहते हैं, तो पुत्रदा एकादशी पर पूजा के समय कार्तवीर्य द्वादशनाम स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।
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कार्तवीर्यार्जुनो नाम राजा बाहुसहस्रवान् ।
तस्य स्मरणमात्रेण गतं नष्टं च लभ्यते ॥
कार्तवीर्यः खलद्वेषी कृतवीर्यसुतो बली ।
सहस्रबाहुः शत्रुघ्नो रक्तवासा धनुर्धरः ॥
रक्तगन्धो रक्तमाल्यो राजा स्मर्तुरभीष्टदः ।
द्वादशैतानि नामानि कार्तवीर्यस्य यः पठेत् ॥
सम्पदस्तत्र जायन्ते जनस्तत्र वशं गतः ।
आनयत्याशु दूरस्थं क्षेमलाभयुतं प्रियम् ॥
सहस्रबाहुसशरं महितं सचापं रक्ताम्बरं रक्तकिरीटकुण्डलम् ।
चोरादि-दुष्टभय-नाशं इष्टदं तं ध्यायेत् महाबल-विजृम्भित-कार्तवीर्यम् ॥
यस्य स्मरणमात्रेण सर्वदुःखक्षयो भवेत् ।
यन्नामानि महावीर्यश्चार्जुनः कृतवीर्यवान्᳚ ॥
हैहयाधिपतेः स्तोत्रं सहस्रावृत्तिकारितम् ।
वाञ्चितार्थप्रदं नृणां स्वराज्यं सुकृतं यदि ॥
अर्जुनः कृतवीर्यस्य सप्तद्वीपेश्वरोऽभवत् ।
दत्तात्रेयाद्धरेरंशात् प्राप्तयोगमहागुणः ॥
न नूनं कार्तवीर्यस्य गतिं यास्यन्ति पार्तिवाः ।
यज्ञदानतपोयोगश्रुतवीर्यजयादिभिः ॥
पञ्चाशीतिसहस्राणि ह्यव्याहतबलःसमाः ।
अनष्टवित्तस्मरणो बुभुजेऽक्षय्यषड्वसु ॥
तस्य पुत्रसहस्रेषु पञ्चैवोर्वरिता मृधे ।
जयध्वजः शूरशेनो वॄषभो मधुरूर्जितः ॥
कार्तवीर्यः सहस्राक्षः कृतवीर्यसुतः बली ।
सहस्रबाहुः शत्रुघ्नः रक्तवासा धनुर्धरः ॥
अनष्टद्रव्यता तस्य नष्टस्य पुनरागमः ।।
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