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Rama Ekadashi 2022 Katha: रमा एकादशी की पूजा के साथ पढ़ें ये व्रत कथा, श्रीहरी विष्णु करेंगे हर इच्छा पूर्ण

Rama Ekadashi Vrat Katha हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी का व्रत रखा जाता है। भगवान विष्णु को समर्पित इस व्रत में विधिवत पूजा करने के साथ-साथ इस व्रत कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए।

By Shivani SinghEdited By: Updated: Fri, 21 Oct 2022 07:37 AM (IST)
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Rama Ekadashi 2022 Katha: रमा एकादशी पर जरूर पढ़ें ये व्रत कथा

नई दिल्ली, Rama Ekadashi Vrat Katha: कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रमा एकादशी का व्रत रखा जाता है। दिवाली में पहले रखा जाने वाला ये एकादशी व्रत काफी खास होता है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। रमा एकादशी के दिन विधिवत पूजा करने के साथ व्रत रखते हैं। इसके साथ ही व्रत के दौरान इस व्रत कथा को पढ़ना या फिर सुनना चाहिए। माना जाता है कि इस कथा का पाठ करने से सभी कष्टों और पापों से छुटकारा मिल जाता है। आइए जानते हैं संपूर्ण रमा एकादशी की व्रत कथा।

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रमा एकादशी व्रत कथा

एक समय की बात है कि मुचकुंद नाम का एक सत्यवादी तथा विष्णु भक्त राजा था। राजा ने अपनी प्यारी सी बेटी चंद्रभागा का विवाह राजा चंद्रसेन के पुत्र सोभन से किया था। राजा मुचुकुंद एकादशी का व्रत विधिवत तरीके से करता है। इतना ही नहीं उसकी प्रजा भी एकादशी के नियमों का अच्छी तरह से पालन करती थी। एक बार कार्तिक मास के दौरान सोभन ससुराल आया। उस दिन रमा एकादशी का व्रत था। राजा ने घोषणा कर दी कि सभी लोग रमा एकादशी का व्रत नियम पूर्वक करें। राजा की पुत्री चंद्रभागा को लगा कि ऐसे में उसके पति को अधिक पीड़ा होगी क्योंकि वह कमजोर हृदय का है। जब सोभन ने राजा का आदेश सुना तो पत्नी के पास आया और इस व्रत से बचने का उपाय पूछा। उसने कहा कि यह व्रत करने से वह मर जाएगा। इस पर चंद्रभागा ने कहा कि इस राज्य में रमा एकादशी के दिन कोई भोजन नहीं करता है। यदि आप व्रत नहीं कर सकते हैं तो दूसरी जगह चले जाएं। इस पर सोभन ने कहा कि वह मर जाएगा लेकिन दूसरी जगह नहीं जाएगा, वह व्रत करेगा। उसने रमा एकादशी व्रत किया, लेकिन भूख से उसका बुरा हाल हो गया था। रमा एकादशी की रात्रि के समय जागर भी ण था, वह रात सोभन के लिए असहनीय थी। अगले दिन सूर्योदय से पूर्व ही भूखे सोभन की मौत हो गई।

ऐसे में  राजा मुचकुंद ने अपने दामाद सोभन का शव को जल प्रवाह करा दिया था और अपनी बेटी को सती न होने का आदेश दिया। उसने बेटी से भगवान विष्णु पर आस्था रखने को कहा। पिता की आज्ञा मानकर बेटी ने व्रत को पूरा किया। उधर रमा एकादशी व्रत के प्रभाव से सोभन जीवित हो गया और उसे विष्णु कृपा से मंदराचल पर्वत पर देवपुर नामक उत्तम नगर मिला। राजा सोभन के राज्य में स्वर्ण, मणियों, आभूषण की कोई कमी न थी। एक दिन राजा मुचकुंद के नगर का एक ब्राह्मण तीर्थ यात्रा करते हुए सोभन के नगर में पहुंचा। जहां उसने राजा सोभन से मुलाकात की। राजा ने अपनी पत्नी चंद्रभागा तथा ससुर मुचकुंद के बारे में पूछा। ब्राह्मण ने कहा कि वे सभी कुशल हैं। आप बताएं, रमा एकादशी का व्रत करने के कारण आपकी मृत्यु हो गई थी। अपने बारे में बताएं। फिर आपको इतना सुंदर नगर कैसे प्राप्त हुआ? तब सोभन ने कहा कि यह सब रमा एकादशी व्रत का फल है, लेकिन यह अस्थिर है क्योंकि वह व्रत विवशता में किया था। जिस कारण अस्थिर नगर मिला, लेकिन चंद्रभागा इसे स्थिर कर सकती है।

उस ब्राह्मण ने सारी बातें चंद्रभागा से कही। तब चंद्रभागा ने कहा कि यह स्वप्न तो नहीं है। ब्राह्मण ने कहा कि नहीं, वह प्रत्यक्ष तौर पर देखकर आया है। उसने चंद्रभागा से कहा कि तुम कुछ ऐसा उपाय करो, जिससे वह नगर स्थिर हो जाए। तब चंद्रभागा ने उसे देव नगर में जाने को कहा। उसने कहा कि वह अपने पति को देखेंगी और अपने व्रत के प्रभाव से उस नगर को स्थिर कर देगी। तब ब्राह्मण उसे मंदराचल पर्वत पर वामदेव के पास ले गया। वामदेव ने उसकी कथा सुनकर उसे मंत्रों से अभिषेक किया। फिर चंद्रभागा ने व्रत के प्रभाव से दिव्य देह धारण किया और सोभन के पास गई। सोभन ने उसे सिंहासन पर अपने पास बैठाया।

फिर चंद्रभागा ने पति को अपने पुण्य के बारे में सुनाया। उसने कहा कि वह अपने मायके में 8 वर्ष की आयु से ही नियम से एकादशी व्रत कर रही हैं। उस व्रत के प्रभाव से यह नगर स्थिर हो जाएगा तथा यह प्रलय के अंत तक स्थिर रहेगा। दिव्य देह धारण किए चंद्रभागा अपने पति सोभन के साथ उस नगर में सुख पूर्वक रहने लगी।

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