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Rama Ekadashi 2023 Katha: शास्त्रों में विशेष महत्व रखती है रमा एकादशी, पढ़िए व्रत कथा

Rama Ekadashi 2023 vrat हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। इस तिथि पर भगवान विष्णु जी पूजा-अर्चना की जाती है। कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी का व्रत किया जाएगा। ऐसे में यदि आप रमा एकादशी का व्रत कर रहे हैं तो रमा एकादशी व्रत कथा का पाठ जरूर करें क्योंकि इसके बिना यह व्रत अधूरा माना जाता है।

By Suman SainiEdited By: Suman SainiUpdated: Wed, 08 Nov 2023 02:20 PM (IST)
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Rama Ekadashi 2023 Katha पढ़िए रमा एकादशी की व्रत कथा।

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Rama Ekadashi 2023 Katha: एकादशी तिथि के दिन कई साधकों द्वारा भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना और व्रत किया जाता है। इस साल रमा एकादशी का व्रत 09 नवंबर 2023, गुरुवार के दिन किया जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की साथ में पूजा करने से साधक को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। ऐसे में आइए पढ़ते हैं रमा एकादशी की व्रत कथा।

रमा एकादशी व्रत कथा (Rama Ekadashi Vrat Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार एक मुचुकुंद नाम का राजा रहता है जो विष्णु जी का परम भक्त होने के साथ-साथ बहुत ही सत्यवादी भी था। उसके राज्य में किसी चीज की कमी नहीं थी। उस राजा की एक कन्या भी थी जिसका नाम चंद्रभागा था। उसने अपनी कन्या का विवाह एक राजा के पुत्र शोभन से कर दिया। राजा मुचुकुंद के साथ-साथ उसके राज्य में सभी लोग एकादशी व्रत करते और कठिन नियमों का पालन करते थे। यहीं नहीं, उस नगर के जीव-जंतु भी एकादशी के व्रत का पालन करते थे।

शोभन ने भी किया एकादशी का व्रत

एक बार चन्द्रभागा सोचती है कि मेरे पति तो बड़े ही कमजोर हृदय के हैं, वे एकादशी का व्रत कैसे करेंगे। इस पर वह अपने पति शोभन को बताती है कि उसके राज्य में मनुष्य से लेकर पशु-पक्षी तक एकादशी का व्रत करते हैं। ऐसे में यदि वह व्रत नहीं करेंगे तो उन्हें राज्य से बाहर जाना पड़ेगा। चंद्रभागा की यह बात सुनकर राजा भी इस व्रत को रखने को तैयार हो जाता है, लेकिन व्रत का पारण करने से पहले ही उसकी मृत्यु हो जाती है। इसके बाद चंद्रभागा अपने पिता के यहां रहकर ही पूजा-पाठ में लीन हो जाती है।

एकादशी व्रत के प्रभाव से मिला दूसरा जन्म

एकादशी व्रत के प्रभाव से शोभन को अगले जन्म में देवपुर नगरी का राजा बन गया, जहां उसे किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। एक बार राजा मुचुकुंद के नगर के एक ब्राह्मण ने शोभन को देखा और उसे पहचान लिया। ब्राह्मण ने वापस नगर को लौटकर चंद्रभागा को पूरी बात बताई। यह सुनकर चंद्रभागा अति प्रसन्न हो जाती है और दोबारा शोभन के पास जाती है। चंद्रभागा 8 साल की उम्र से एकादशी व्रत का कर रही थी जिसका समस्त पुण्य शोभन को सौंप देती है, इस कारण देवपुर नगरी में सुख-संपदा की वृद्धि हो जाती है। इसके बाद चंद्रभागा और शोभन एक साथ खुशी-खुशी रहने लगते हैं।

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