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Sawan 2023: सावन महीने में रोजाना पूजा के समय करें ये स्तुति, सभी संकटों से मिलेगी मुक्ति

Sawan 2023 धर्म शास्त्रों में निहित है कि भगवान शिव महज जलाभिषेक से प्रसन्न हो जाते हैं। उनकी कृपा से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। त्रेतायुग में लंका नरेश रावण ने भगवान शिव की कठिन भक्ति की थी। तत्पश्चात रावण को भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त हुआ था। उनकी कृपा से रावण को मायावी शक्ति प्राप्त हुई थी।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 03 Jul 2023 10:47 AM (IST)
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Sawan 2023: सावन महीने में रोजाना पूजा के समय करें ये स्तुति, सभी संकटों से मिलेगी मुक्ति
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Sawan Somwar 2023: सावन महीने में देवों के देव महादेव और माता पार्वती की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इस महीने में हर सोमवार को उत्सव जैसा माहौल रहता है। बड़ी संख्या में शिव भक्त निकटमत शिव मंदिर जाकर गंगाजल, दूध या जल से देवों के देव महादेव का अभिषेक करते हैं। शास्त्रों में निहित है कि भगवान शिव महज जलाभिषेक से प्रसन्न हो जाते हैं। उनकी कृपा से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। त्रेतायुग में लंका नरेश रावण ने भगवान शिव की कठिन भक्ति की थी। तत्पश्चात, रावण को भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त हुआ था। उनकी कृपा से रावण को मायावी शक्ति प्राप्त हुई थी। अगर आप भी भगवान शिव का आशीर्वाद पाना चाहते हैं, तो सावन महीने में प्रतिदिन पूजा के समय ये स्तुति करें। शिव स्तुति का पाठ करने से सभी संकटों से मुक्ति मिलती है। आइए, शिव स्तुति का पाठ करें-

शिव स्तुति

स्फुटं स्फटिकसप्रभं स्फुटितहारकश्रीजटं

शशाङ्कदलशेखरं कपिलफुल्लनेत्रत्रयम्।

तरक्षुवरकृत्तिमद्भुजगभूषणं भूतिमत्,

कदा नु शितिकण्ठ ते वपुरवेक्षते वीक्षणम्॥

त्रिलोचन! विलोचने वसति ते ललामायिते,

स्मरो नियमघस्मरो नियमिनामभूद्भस्मसात्।

स्वभक्तिलतया वशीकृतवती सतीयं सती,

स्वभक्तवशगो भवानपि वशी प्रसीद प्रभो ॥

महेशमहितोऽसि तत्पुरुष पूरुषाग्र्यो भवा-,

नघोररिपुघोर ते नवम वामदेवाञ्जलिः॥

नमः सपदि जायते त्वमिति पञ्चरूपोचित-,

प्रपञ्चचयपञ्चवृन्मम मनस्तमस्ताडय ॥

रसाघनरसाऽनलाऽनिलवियद्विवस्वद्विधु-,

प्रयष्टृषु निविष्टमित्यज भजामि मूर्त्यष्टकम्।

प्रशान्तमुदभीषणं भुवनमोहनं चेत्यहो,

वपूंषि गुणपूंषि तेऽहरहरात्मनोहं भिदे ॥

विमुक्तिपरमाध्वनां तव षडद्धनामास्पदं,

पदं निगमवेदिता जगति वामदेवादयः।

कथंचिदुपशिक्षिता भगवतैव संविद्रते,

वयन्तु विरलान्तराः कथमुमेश तन्मन्महे॥

कठोरितकुठारया ललितशूलया वाहया,

रणड्डमरुणा स्फुरद्धरिणया सखट्वांगया।

चलाभिरचलाभिरप्यगणिताभिरुन्नृत्यत-,

श्चतुर्दश जगन्ति ते जयजयेत्ययन् विस्मयम्॥

पुरा त्रिपुरान्धनं विविधदैत्यविध्वंसनं,

पराक्रमपरंपरा अपि परा न ते विस्मयः।

अमर्षि बलहर्षितक्षुभितवृत्तनेत्रोज्ज्वल-,

ज्ज्वलज्ज्वलनहेलया शलभितं हि लोकत्रयम् ॥

सहस्रनयनो गुहः सह सहस्ररश्मिर्विधुः,

बृहस्पतिरुताप्पतिः ससुरसिद्धविद्याधराः।

भवत्पदपरायणाः श्रियमिमां ययुः प्रार्थितां,

भवान् सुरतरुर्भृशं शिव शिवां शिवावल्लभ! ॥

तवप्रियतमादतिप्रियतमं सदैवान्तरं,

पयस्युपहितं घृतं स्वयमिव श्रियो वल्लभम्।

विबुध्य लघुबुद्धयः स्वपरपक्षलक्ष्यायितं,

पठन्ति हि लुठन्ति ते शठहृदः शुचाशुण्ठिताः ॥

निवासनिलयश्चिता तव शिरस्ततिर्मालिका,

कपालमपि ते करे त्वमशिवोस्यहोऽसद्धियाम्।

तथापि भवतापदं शिवशिवेत्यदो जल्पता-,

मकिञ्चन न किञ्चन वृजिनमस्ति भस्मीभवेत्॥

त्वमेव किल कामधुक्सकलकाममापूरयन्,

सदा त्रिनयनो भवान् वहति चात्रिनेत्रोद्भवम्।

विषं विषधरान्दधन् पिबसि तेन चानन्दवान्,

विरुद्धचरितोचिता जगदीश ते भिक्षुता ॥

नमश्शिवशिवाशिवाशिवशिवार्थकर्तः शिवां,

नमो हरहराहराहरहरान्तरीं मे दृशं।

नमो भव! भवाभवप्रभव भूतये भवान्,

नमो मृड नमो नमो नम उमेश तुभ्यं नमः ॥

सतां श्रवणपद्धतिं सरतु सन्नतोक्तेत्यसौ,

शिवस्य करुणाङ्कुरान् प्रतिकृतान् सदा सोचिता।

इति प्रथितमानसो व्यधित नाम नारायणः,

शिवस्तुतिमिमां शिवां लिकुचिसूरिसूनुः सुधीः ॥

डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'