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Masik Shivratri के दिन पूजा के समय जरूर करें चमत्कारी स्तोत्र का पाठ, मिलेगा मनचाहा जीवनसाथी

ज्योतिषियों की मानें तो कुंडली में गुरु और शुक्र मजबूत रहने से शीघ्र विवाह के योग बनते हैं। हालांकि कुंडली में अन्य ग्रहों का विचार भी किया जाता है। देवों के देव महादेव संग मां पार्वती (Lord Shiv Puja Vidhi) की पूजा करने से अविवाहित जातकों की शीघ्र शादी के योग बनते हैं। इसके साथ ही जीवनसाथी भी मनमुताबिक मिलता है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 29 Sep 2024 08:21 PM (IST)
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Masik Shivratri 2024: भगवान शिव को कैसे प्रसन्न करें ?
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, सोमवार 30 सितंबर को मासिक शिवरात्रि है। यह दिन भगवान शिव को समर्पित होता है। इस दिन भगवान शिव संग मां पार्वती की भक्ति भाव से पूजा की जाती है। इसके साथ ही शीघ्र विवाह और मनचाहा जीवनसाथी के लिए मासिक शिवरात्रि का व्रत रखा जाता है। इस व्रत को करने से शीघ्र विवाह के योग बनते हैं। वहीं, विवाहित महिलाओं को सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। ज्योतिष शास्त्र में मासिक शिवरात्रि पर विशेष उपाय करने का भी विधान है। इन उपायों को करने से मनचाही मुराद पूरी होती है। अगर आपकी शादी में बाधा आ रही है और आप शीघ्र विवाह के इच्छुक हैं, तो मासिक शिवरात्रि के दिन विधि-विधान से भगवान शिव की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय अथार्गलास्तोत्रम् का पाठ अवश्य करें। इस स्तोत्र के पाठ से शीघ्र विवाह के योग बनते हैं।

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अथार्गलास्तोत्रम्

जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥

जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।

जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते॥

मधुकैटभविद्राविविधातृवरदे नमः।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

महिषासुरनिर्णाशि भक्तानां सुखदे नमः।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनि।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

शुम्भस्यैव निशुम्भस्य धूम्राक्षस्य च मर्दिनि।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

वन्दिताङ्घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्यदायिनि।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

अचिन्त्यरुपचरिते सर्वशत्रुविनाशिनि।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

स्तुवद्भ्यो भक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधिनाशिनि।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

चण्डिके सततं ये त्वामर्चयन्तीह भक्तितः।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमुच्चकैः।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

सुरासुरशिरोरत्ननिघृष्टचरणेऽम्बिके।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तं जनं कुरु।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

प्रचण्डदैत्यदर्पघ्ने चण्डिके प्रणताय मे।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

चतुर्भुजे चतुर्वक्त्रसंस्तुते परमेश्वरि।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

कृष्णेन संस्तुते देवि शश्वद्भक्त्या सदाम्बिके।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

हिमाचलसुतानाथसंस्तुते परमेश्वरि।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

इन्द्राणीपतिसद्भावपूजिते परमेश्वरि।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

देवि प्रचण्डदोर्दण्डदैत्यदर्पविनाशिनि।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

देवि भक्तजनोद्दामदत्तानन्दोदयेऽम्बिके।

रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।

तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥

इदं स्तोत्रं पठित्वा तु महास्तोत्रं पठेन्नरः।

स तु सप्तशतीसंख्यावरमाप्नोति सम्पदाम्॥

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