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Chandrashekhar Stotra: करना चाहते हैं महादेव को प्रसन्न, तो सोमवार के दिन करें ‘चंद्रशेखर स्‍तोत्र’ का पाठ

Chandrashekhar Stotra धार्मिक मान्यता है कि शिवजी की पूजा उपासना करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साथ ही जीवन में व्याप्त सभी संकट समाप्त हो जाते हैं। ज्योतिषियों की मानें तो शिवजी की पूजा करने से शीघ्र शादी के योग बनते हैं।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 23 Apr 2023 10:48 AM (IST)
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Chandrashekhar Stotra: करना चाहते हैं देवों के देव महादेव को प्रसन्न, तो सोमवार के दिन करें ‘चंद्रशेखर स्‍तोत्र’ का पाठ

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Chandrashekhar Stotra: सोमवार का दिन देवों के देव महादेव को समर्पित होता है। इस दिन त्रिलोकीनाथ, भूतनाथ, महाकाल संग माता पार्वती संग चंद्र देव की पूजा उपासना की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि शिवजी की पूजा उपासना करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साथ ही जीवन में व्याप्त सभी संकट दूर हो जाते हैं। ज्योतिषों की मानें तो चन्द्रमा मन के कारक हैं। चन्द्रमा के कमजोर रहने से मन अशांत रहता है। आसान शब्दों में कहें तो मानसिक तनाव रहता है। किसी भी काम में मन नहीं लगता है। साथ ही माता जी की सेहत भी ठीक नहीं रहती है। इसके लिए चंद्र का मजबूत रहना जरूरी है। अगर आप भी मानसिक पीड़ा से गुजर रहे हैं, तो सोमवार के दिन शिवजी की पूजा करते समय ‘चंद्रशेखर स्‍तोत्र’ का पाठ जरूर करें। इस पाठ को करने से देवों के देव महादेव प्रसन्न होते हैं। साथ ही कुंडली में चंद्रमा भी मजबूत होता है। शिवजी की प्रसन्न होने से जातक को मनचाहा वर मिलता है। वहीं, चंद्रमा के मजबूत होने से अविवाहितों को मन मुताबिक जीवनसाथी मिलता है। आइए जानते हैं-

शिव चन्द्रशेखर अष्टक स्तोत्र

चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर पाहि माम ।

चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर रक्ष माम ॥१॥

रत्नसानुशरासनं रजताद्रिशृङ्गनिकेतनं

सिञ्जिनीकृतपन्नगेश्वरमच्युताननसायकम ।

क्षिप्रदग्धपुरत्रयं त्रिदिवालयैरभिवन्दितं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥२॥

पञ्चपादपपुष्पगन्धपदांबुजद्वयशोभितं

भाललोचनजातपावकदग्धमन्मथविग्रहम ।

भस्मदिग्धकलेबरं भव नाशनं भवमव्ययं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥३॥

मत्तवारणमुख्यचर्मकॄतोत्तरीयमनोहरं

पङ्कजासनपद्मलोचनपूजितांघ्रिसरोरुहम ।

देवसिन्धुतरङ्गसीकर सिक्तशुभ्रजटाधरं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥४॥

यक्षराजसखं भगाक्षहरं भुजङ्गविभूषणं

शैलराजसुतापरिष्कृतचारुवामकलेबरम ।

क्ष्वेडनीलगलं परश्वधधारिणं मृगधारिणं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥५॥

कुण्डलीकृतकुण्डलेश्वर कुण्डलं वृषवाहनं

नारदादिमुनीश्वरस्तुतवैभवं भुवनेश्वरम ।

अन्धकान्तकमाश्रितामरपादपं शमनान्तकं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥६॥

भेषजं भवरोगिणामखिलापदामपहारिणं

दक्षयज्ञविनाशनं त्रिगुणात्मकं त्रिविलोचनम ।

भुक्तिमुक्तिफलप्रदं सकलाघसंघनिबर्हणं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥७॥

भक्तवत्सलमर्चितं निधिक्षयं हरिदंबरं

सर्वभूतपतिं परात्परमप्रमेयमनुत्तमम ।

सोमवारिदभूहुताशनसोमपानिलखाकृतिं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥८॥

विश्वसृष्टिविधायिनं पुनरेव पालनतत्परं

संहरन्तमपि प्रपञ्चमशेषलोकनिवासिनम ।

कीडयन्तमहर्निशं गणनाथयूथसमन्वितं

चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥९॥

मृत्युभीतमृकण्डुसूनुकृतस्तवं शिवसन्निधौ

यत्र कुत्र च यः पठेन्न हि तस्य मृत्युभयं भवेत ।

पूर्णमायुररोगतामखिलार्थसंपदमादरात

चन्द्रशेखर एव तस्य ददाति मुक्तिमयत्नतः ॥१०॥

॥ इति श्रीचन्द्रशेखराष्टकस्तोत्रं संपूर्णम ॥

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