Move to Jagran APP

Kuber Chalisa: शुक्रवार को पूजा के समय करें इस चालीसा का पाठ, अन्न-धन से भर जाएंगे भंडार

सनातन शास्त्रों में निहित है कि कुबेर देव को धन के देवता का वरदान देवों के देव महादेव से प्राप्त हुआ है। इसके लिए शुक्रवार के दिन धन के देवता कुबेर की पूजा की जाती है। कुबेर देव की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में सुखों का आगमन होता है। साथ ही धन की समस्या दूर हो जाती है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Fri, 21 Jun 2024 08:00 AM (IST)
Hero Image
Kuber Chalisa: कुबेर चालीसा पढ़ने के लाभ
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Kuber Chalisa: सनातन धर्म में शुक्रवार का दिन धन की देवी मां लक्ष्मी को समर्पित होता है। इस दिन मां लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है। साथ ही मनोकामना पूर्ति के लिए लक्ष्मी वैभव व्रत रखा जाता है। इस दिन धन के देवता कुबेर देव की भी उपासना की जाती है। कुबेर देव की पूजा और उपासना करने से जीवन में व्याप्त आर्थिक समस्या दूर हो जाती है। साथ ही घर में सुख, समृद्धि एवं खुशहाली आती है। अतः साधक श्रद्धा भाव से शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी और कुबेर देव की पूजा करते हैं। अगर आप भी आर्थिक तंगी से निजात पाना चाहते हैं, तो शुक्रवार के दिन स्नान-ध्यान के बाद विधि विधान से मां लक्ष्मी की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय कुबेर चालीसा का पाठ अवश्य करें।

यह भी पढ़ें: इन 3 मंदिरों में लगती है यम देवता की कचहरी, इनमें एक है हजार साल पुराना


कुबेर चालीसा

दोहा

जैसे अटल हिमालय और जैसे अडिग सुमेर।

ऐसे ही स्वर्ग द्वार पै, अविचल खड़े कुबेर॥

विघ्न हरण मंगल करण, सुनो शरणागत की टेर।

भक्त हेतु वितरण करो, धन माया के ढ़ेर॥

॥ चौपाई ॥

जै जै जै श्री कुबेर भण्डारी ।

धन माया के तुम अधिकारी॥

तप तेज पुंज निर्भय भय हारी ।

पवन वेग सम सम तनु बलधारी॥

स्वर्ग द्वार की करें पहरे दारी ।

सेवक इंद्र देव के आज्ञाकारी॥

यक्ष यक्षणी की है सेना भारी ।

सेनापति बने युद्ध में धनुधारी॥

महा योद्धा बन शस्त्र धारैं।

युद्ध करैं शत्रु को मारैं॥

सदा विजयी कभी ना हारैं ।

भगत जनों के संकट टारैं॥

प्रपितामह हैं स्वयं विधाता ।

पुलिस्ता वंश के जन्म विख्याता॥

विश्रवा पिता इडविडा जी माता ।

विभीषण भगत आपके भ्राता॥

शिव चरणों में जब ध्यान लगाया ।

घोर तपस्या करी तन को सुखाया॥

शिव वरदान मिले देवत्य पाया ।

अमृत पान करी अमर हुई काया॥

धर्म ध्वजा सदा लिए हाथ में ।

देवी देवता सब फिरैं साथ में ।

पीताम्बर वस्त्र पहने गात में ॥

बल शक्ति पूरी यक्ष जात में॥

स्वर्ण सिंहासन आप विराजैं ।

त्रिशूल गदा हाथ में साजैं॥

शंख मृदंग नगारे बाजैं ।

गंधर्व राग मधुर स्वर गाजैं॥

चौंसठ योगनी मंगल गावैं ।

ऋद्धि सिद्धि नित भोग लगावैं॥

दास दासनी सिर छत्र फिरावैं ।

यक्ष यक्षणी मिल चंवर ढूलावैं॥

ऋषियों में जैसे परशुराम बली हैं ।

देवन्ह में जैसे हनुमान बली हैं॥

पुरुषोंमें जैसे भीम बली हैं ।

यक्षों में ऐसे ही कुबेर बली हैं॥

भगतों में जैसे प्रहलाद बड़े हैं ।

पक्षियों में जैसे गरुड़ बड़े हैं॥

नागों में जैसे शेष बड़े हैं ।

वैसे ही भगत कुबेर बड़े हैं॥

कांधे धनुष हाथ में भाला ।

गले फूलों की पहनी माला॥

स्वर्ण मुकुट अरु देह विशाला।

दूर दूर तक होए उजाला॥

कुबेर देव को जो मन में धारे ।

सदा विजय हो कभी न हारे ।।

बिगड़े काम बन जाएं सारे ।

अन्न धन के रहें भरे भण्डारे॥

कुबेर गरीब को आप उभारैं ।

कुबेर कर्ज को शीघ्र उतारैं॥

कुबेर भगत के संकट टारैं ।

कुबेर शत्रु को क्षण में मारैं॥

शीघ्र धनी जो होना चाहे ।

क्युं नहीं यक्ष कुबेर मनाएं॥

यह पाठ जो पढ़े पढ़ाएं ।

दिन दुगना व्यापार बढ़ाएं॥

भूत प्रेत को कुबेर भगावैं ।

अड़े काम को कुबेर बनावैं॥

रोग शोक को कुबेर नशावैं ।

कलंक कोढ़ को कुबेर हटावैं॥

कुबेर चढ़े को और चढ़ादे ।

कुबेर गिरे को पुन: उठा दे॥

कुबेर भाग्य को तुरंत जगा दे ।

कुबेर भूले को राह बता दे॥

प्यासे की प्यास कुबेर बुझा दे ।

भूखे की भूख कुबेर मिटा दे॥

रोगी का रोग कुबेर घटा दे ।

दुखिया का दुख कुबेर छुटा दे॥

बांझ की गोद कुबेर भरा दे ।

कारोबार को कुबेर बढ़ा दे॥

कारागार से कुबेर छुड़ा दे ।

चोर ठगों से कुबेर बचा दे॥

कोर्ट केस में कुबेर जितावै ।

जो कुबेर को मन में ध्यावै॥

चुनाव में जीत कुबेर करावैं ।

मंत्री पद पर कुबेर बिठावैं॥

पाठ करे जो नित मन लाई ।

उसकी कला हो सदा सवाई॥

जिसपे प्रसन्न कुबेर की माई ।

उसका जीवन चले सुखदाई॥

जो कुबेर का पाठ करावै ।

उसका बेड़ा पार लगावै ॥

उजड़े घर को पुन: बसावै।

शत्रु को भी मित्र बनावै॥

सहस्त्र पुस्तक जो दान कराई।

सब सुख भोद पदार्थ पाई ।

प्राण त्याग कर स्वर्ग में जाई ।

मानस परिवार कुबेर कीर्ति गाई॥

॥ दोहा ॥

शिव भक्तों में अग्रणी, श्री यक्षराज कुबेर ।

हृदय में ज्ञान प्रकाश भर, कर दो दूर अंधेर ॥

कर दो दूर अंधेर अब, जरा करो ना देर ।

शरण पड़ा हूं आपकी, दया की दृष्टि फेर ।

यह भी पढ़ें: कब और कैसे हुई धन की देवी की उत्पत्ति? जानें इससे जुड़ी कथा एवं महत्व

अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।