Santoshi maa Chalisa: शुक्रवार को करें संतोषी माता चालीसा का पाठ और आरती, सभी संकटों से मिलेगी मुक्ति
Santoshi maa Chalisa शुक्रवार के दिन विधि विधान से मां संतोषी की पूजा-उपासना करने से घर में सुख समृद्धि और खुशहाली आती है। साथ ही इच्छित फल की प्राप्ति होती है। अतः साधक शुक्रवार के दिन मां संतोषी की पूजा-अर्चना करते हैं। विवाहित स्त्रियां मां संतोषी के निमित्त व्रत उपवास भी रखती हैं। इस व्रत के कई कठोर नियम हैं। इन नियमों का पालन करना अनिवार्य है।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Thu, 20 Jul 2023 04:00 PM (IST)
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Santoshi Maa Chalisa: शुक्रवार का दिन धन की देवी मां लक्ष्मी और मां संतोषी को समर्पित होता है। इस दिन विधि विधान से मां संतोषी की पूजा-उपासना करने से घर में सुख, समृद्धि और खुशहाली आती है। साथ ही इच्छित फल की प्राप्ति होती है। अतः साधक शुक्रवार के दिन मां संतोषी की पूजा-अर्चना करते हैं। विवाहित स्त्रियां मां संतोषी के निमित्त व्रत उपवास भी रखती हैं। इस व्रत के कई कठोर नियम हैं। इन नियमों का पालन करना अनिवार्य है। अनदेखी करने से व्रत सफल नहीं माना जाता है। साथ ही मां संतोषी अप्रसन्न हो जाती हैं। अतः ज्योतिष या प्रकांड पंडित से सलाह लेकर ही शुक्रवार का व्रत करें। अगर आप भी मां संतोषी की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो शुक्रवार को मां संतोषी चालीसा का पाठ और आरती करें। मां संतोषी चालीसा का पाठ करने से जीवन में व्याप्त सभी दुख और संकट दूर हो जाते हैं। आइए, मां संतोषी चालीसा का पाठ करें-
मां संतोषी चालीसा
दोहाबन्दौं सन्तोषी चरण रिद्धि-सिद्धि दातार ।
ध्यान धरत ही होत नर दुःख सागर से पार ॥भक्तन को सन्तोष दे सन्तोषी तव नाम ।
कृपा करहु जगदम्ब अब आया तेरे धाम ॥चौपाईजय सन्तोषी मात अनूपम । शान्ति दायिनी रूप मनोरम ॥सुन्दर वरण चतुर्भुज रूपा । वेश मनोहर ललित अनुपा ॥श्वेताम्बर रूप मनहारी । माँ तुम्हारी छवि जग से न्यारी ॥
दिव्य स्वरूपा आयत लोचन । दर्शन से हो संकट मोचन ॥ जय गणेश की सुता भवानी । रिद्धि- सिद्धि की पुत्री ज्ञानी ॥अगम अगोचर तुम्हरी माया । सब पर करो कृपा की छाया ॥नाम अनेक तुम्हारे माता । अखिल विश्व है तुमको ध्याता ॥तुमने रूप अनेकों धारे । को कहि सके चरित्र तुम्हारे ॥धाम अनेक कहाँ तक कहिये । सुमिरन तब करके सुख लहिये ॥विन्ध्याचल में विन्ध्यवासिनी । कोटेश्वर सरस्वती सुहासिनी ॥
कलकत्ते में तू ही काली । दुष्ट नाशिनी महाकराली ॥सम्बल पुर बहुचरा कहाती । भक्तजनों का दुःख मिटाती ॥ज्वाला जी में ज्वाला देवी । पूजत नित्य भक्त जन सेवी ॥नगर बम्बई की महारानी । महा लक्ष्मी तुम कल्याणी ॥मदुरा में मीनाक्षी तुम हो । सुख दुख सबकी साक्षी तुम हो ॥राजनगर में तुम जगदम्बे । बनी भद्रकाली तुम अम्बे ॥पावागढ़ में दुर्गा माता । अखिल विश्व तेरा यश गाता ॥
काशी पुराधीश्वरी माता । अन्नपूर्णा नाम सुहाता ॥सर्वानन्द करो कल्याणी । तुम्हीं शारदा अमृत वाणी ॥तुम्हरी महिमा जल में थल में । दुःख दारिद्र सब मेटो पल में ॥ जेते ऋषि और मुनीशा । नारद देव और देवेशा ।इस जगती के नर और नारी । ध्यान धरत हैं मात तुम्हारी ॥जापर कृपा तुम्हारी होती । वह पाता भक्ति का मोती ॥दुःख दारिद्र संकट मिट जाता । ध्यान तुम्हारा जो जन ध्याता ॥
जो जन तुम्हरी महिमा गावै । ध्यान तुम्हारा कर सुख पावै ॥जो मन राखे शुद्ध भावना । ताकी पूरण करो कामना ॥कुमति निवारि सुमति की दात्री । जयति जयति माता जगधात्री ॥शुक्रवार का दिवस सुहावन । जो व्रत करे तुम्हारा पावन ॥ गुड़ छोले का भोग लगावै । कथा तुम्हारी सुने सुनावै ॥विधिवत पूजा करे तुम्हारी । फिर प्रसाद पावे शुभकारी ॥शक्ति-सामरथ हो जो धनको । दान-दक्षिणा दे विप्रन को ॥
वे जगती के नर औ नारी । मनवांछित फल पावें भारी ॥ जो जन शरण तुम्हारी जावे । सो निश्चय भव से तर जावे ॥तुम्हरो ध्यान कुमारी ध्यावे ।निश्चय मनवांछित वर पावै ॥सधवा पूजा करे तुम्हारी । अमर सुहागिन हो वह नारी ॥विधवा धर के ध्यान तुम्हारा । भवसागर से उतरे पारा ॥ जयति जयति जय संकट हरणी । विघ्न विनाशन मंगल करनी ॥हम पर संकट है अति भारी । वेगि खबर लो मात हमारी ॥
निशिदिन ध्यान तुम्हारो ध्याता । देह भक्ति वर हम को माता ॥यह चालीसा जो नित गावे । सो भवसागर से तर जावे ॥दोहासंतोषी माँ के सदा बंदहूँ पग निश वास ।पूर्ण मनोरथ हो सकल मात हरौ भव त्रास ॥संतोषी माता आरतीजय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता ।अपने सेवक जन को सुख संपति दाता ॥सुंदर चीर सुनहरी, मां धारण कीन्हों ।
हीरा पन्ना दमके, तन श्रृंगार लीन्हों ॥गेरू लाल छटा छवि, बदन कमल सोहे । मंदर हंसत करूणामयी, त्रिभुवन मन मोहे ।। स्वर्ण सिंहासन बैठी, चंवर ढुरे प्यारे ।धूप, दीप,नैवैद्य,मधुमेवा, भोग धरें न्यारे ॥गुड़ अरु चना परमप्रिय, तामें संतोष कियो।संतोषी कहलाई, भक्तन वैभव दियो ॥शुक्रवार प्रिय मानत, आज दिवस सोही ।भक्त मण्डली छाई, कथा सुनत मोही ॥
मंदिर जगमग ज्योति, मंगल ध्वनि छाई ।विनय करें हम बालक, चरनन सिर नाई ॥भक्ति भावमय पूजा, अंगीकृत कीजै । जो मन बसे हमारे, इच्छा फल दीजै ॥दुखी,दरिद्री ,रोगी , संकटमुक्त किए ।बहु धनधान्य भरे घर, सुख सौभाग्य दिए ॥ध्यान धर्यो जिस जन ने, मनवांछित फल पायो ।पूजा कथा श्रवण कर, घर आनंद आयो ॥शरण गहे की लज्जा, राखियो जगदंबे । संकट तू ही निवारे, दयामयी अंबे ॥
संतोषी मां की आरती, जो कोई नर गावे । ॠद्धिसिद्धि सुख संपत्ति, जी भरकर पावे ॥ डिसक्लेमर-'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'