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Sawan 2024: सावन महीने में रोजाना पूजा के समय करें इस मंगलकारी स्तोत्र का पाठ, पूरी होगी मनचाही मुराद

धार्मिक मत है कि सावन सोमवार व्रत करने से विवाहित स्त्रियों को अखंड सुहाग का वरदान प्राप्त होता है। वहीं अविवाहित जातकों की शीघ्र शादी के योग बनते हैं। इस व्रत की महिमा का गुणगान (Sawan Month Importance) शिव पुराण में वर्णित है। कालांतर से सावन महीने में देवों के देव महादेव और जगती की देवी मां पार्वती की विशेष पूजा की जाती है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Tue, 23 Jul 2024 07:43 PM (IST)
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Sawan 2024: सावन महीने का धार्मिक महत्व

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Sawan 2024: देवों के देव महादेव को सावन का महीना अति प्रिय है। इस महीने में प्रत्येक दिन भगवान शिव और मां पार्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है। साथ ही सावन सोमवार और मंगलवार पर मंगला गौरी व्रत रखा जाता है। धार्मिक मत है कि सावन महीने में भगवान शिव की पूजा करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साथ ही अविवाहित जातक की शीघ्र शादी के योग बनते हैं। अगर आप भी जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख एवं संकट से निजात पाना चाहते हैं, तो सावन महीने में रोजाना पूजा के समय इस मंगलकारी स्तोत्र का पाठ करें। इस स्तोत्र के पाठ से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। उनकी कृपा साधक पर बरसती है। साथ ही सभी बिगड़े काम बनने लगते हैं। 

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शिव रूद्र अष्टकम

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं।

विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम ।।

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं।

चिदाकाशमाकाशवासं भजेअहम ।।

निराकारमोंकारमूलं तुरीयं।

गिरा घ्य़ान गोतीतमीशं गिरीशम ।।

करालं महाकाल कालं कृपालं।

गुणागार संसारपारं नतोअहम ।।

तुश्हाराद्रि संकाश गौरं गभीरं।

मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम ।।

स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा।

लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ।।

चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं।

प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम ।।

मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं।

प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ।।

प्रचण्डं प्रकृश्ह्टं प्रगल्भं परेशं।

अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम ।।

त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं भजे।

अहं भवानीपतिं भावगम्यम ।।

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी।

सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।।

चिदानन्द संदोह मोहापहारी।

प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ।।

न यावत.ह उमानाथ पादारविन्दं।

भजन्तीह लोके परे वा नराणाम ।।

न तावत.ह सुखं शान्ति सन्तापनाशं।

प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम ।।

न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतो।

अहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम ।।

जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं।

प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ।।

रुद्राश्ह्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोश्हये ।

ये पठन्ति नरा भक्त्या तेश्हां शम्भुः प्रसीदति ।।

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं।

विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम ।।

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं।

चिदाकाशमाकाशवासं भजेअहम ।।

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।