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Shiv Stuti: भगवान शिव की पूजा के समय जरूर करें ये स्तुति, हर मनोकामना होगी पूरी

शास्त्रों में निहित है कि भगवान शिव महज जल फल फूल बेलपत्र आदि चीजें अर्पित करने से प्रसन्न हो जाते हैं। अतः साधक हर सोमवार के दिन भगवान शिव की विशेष पूजा-उपासना करते हैं। इस समय साधक भगवन शिव का जलाभिषेक करते हैं। साथ ही सोमवार के दिन व्रत भी रखते हैं। इस व्रत के पुण्य प्रताप से साधक के सकल मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 28 Apr 2024 08:38 PM (IST)
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Shiv Stuti: भगवान शिव की पूजा के समय जरूर करें ये स्तुति, हर मनोकामना होगी पूरी
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Shiv Stuti: भगवान शिव की लीला अपरंपार है। अपने भक्तों पर विशेष कृपा-दृष्टि बरसाते हैं। उनकी कृपा से भक्त के सभी बिगड़े काम बन जाते हैं। साथ ही भौतिक जीवन में सभी प्रकार के सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में निहित है कि भगवान शिव महज जल, फल, फूल, बेलपत्र आदि चीजें अर्पित करने से प्रसन्न हो जाते हैं। अतः साधक हर सोमवार के दिन भगवान शिव की विशेष पूजा-उपासना करते हैं। साथ ही सोमवार के दिन व्रत भी रखते हैं। इस व्रत के पुण्य प्रताप से साधक के सकल मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। अगर आप भी मनचाहा वर पाना चाहते हैं, तो सोमवार के दिन विधि-विधान से महादेव की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय ये स्तुति जरूर करें।

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शिव स्तुति मंत्र (Shiv Stuti Mantra)

पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम।

जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम।

महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।

विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।

गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्।

भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।

शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्।

त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप: प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।

परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्।

यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।

न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।

न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीड।

अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।

तुरीयं तम:पारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम।

नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।

नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्।

प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शंभो महेश त्रिनेत्।

शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्य:।

शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।

काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि।

त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।

त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन।

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