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Sawan Somwar 2023: आज पूजा के समय करें शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ, प्राप्त होगा भगवान शिव का आशीर्वाद

Sawan Somwar 2023 Upay धार्मिक मान्यता है कि भगवान शिव की पूजा करने से साधक का अमोघ फल की प्राप्ति होती है। हालांकि पूजा करते समय भक्तों से छोटी-मोटी गलतियां हो जाती हैं। अगर आप से सावन सोमवार पर पूजा के दौरान कोई गलती हुई है तो आज सावन के अंतिम सोमवार पर भगवान शिव से क्षमा याचना अवश्य करें।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 28 Aug 2023 07:00 AM (IST)
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Sawan Somwar 2023: आज पूजा के समय करें शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ

नई दिल्ली, आध्यात्म डेस्क | Sawan Somwar 2023 Upay: सावन का महीना भगवान शिव को अति प्रिय है। इस महीने में धूमधाम से भगवान शिव की पूजा-उपासना की जाती है। वहीं, सावन सोमवार पर विशेष पूजा की जाती है। इस दिन साधक व्रत उपवास भी रखते हैं। धार्मिक मान्यता है कि भगवान शिव की पूजा करने से साधक का अमोघ फल की प्राप्ति होती है। हालांकि, पूजा करते समय भक्तों से छोटी-मोटी गलतियां हो जाती हैं। अगर  सावन सोमवार पर पूजा के दौरान आप से भी कोई गलती हुई है, तो आज सावन के अंतिम सोमवार पर भगवान शिव से क्षमा याचना अवश्य करें। इसके लिए पूजा के समय शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करें। कहते हैं कि भगवान शिव बड़े ही दयालु और कृपालु हैं। उनकी कृपा साधक पर अवश्य ही बरसती है। आइए, शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र का पाठ करें-

शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र

आदौ कर्मप्रसंगात्कलयति कलुषं मातृकुक्षौ स्थितं मां,

विण्मूत्रामेध्यमध्ये कथयति नितरां जाठरो जातवेदाः ।

यद्यद्वै तत्र दुःखं व्यथयति नितरां शक्यते केन वक्तुं,

क्षंतव्यो मे‌ पराधः शिव शिव शिव भो श्री महादेव शंभो ॥

बाल्ये दुःखातिरेको मललुलितवपुः स्तन्यपाने पिपासा,

नो शक्तश्चेंद्रियेभ्यो भवगुणजनिताः जंतवो मां तुदंति ।

नानारोगादिदुःखाद्रुदनपरवशः शंकरं न स्मरामि,

क्षंतव्यो मे‌ पराधः शिव शिव शिव भो श्री महादेव शंभो ॥

प्रौढो‌ हं यौवनस्थो विषयविषधरैः पंचभिर्मर्मसंधौ,

दष्टो नष्टो‌विवेकः सुतधनयुवतिस्वादुसौख्ये निषण्णः ।

शैवीचिंताविहीनं मम हृदयमहो मानगर्वाधिरूढं,

क्षंतव्यो मे‌पराधः शिव शिव शिव भो श्री महादेव शंभो ॥

वार्धक्ये चेंद्रियाणां विगतगतिमतिश्चाधिदैवादितापैः,

पापै रोगैर्वियोगैस्त्वनवसितवपुः प्रौढहीनं च दीनम् ।

मिथ्यामोहाभिलाषैर्भ्रमति मम मनो धूर्जटेर्ध्यानशून्यं,

क्षंतव्यो मे‌पराधः शिव शिव शिव भो श्री महादेव शंभो ॥

नो शक्यं स्मार्तकर्म प्रतिपदगहनप्रत्यवायाकुलाख्यं,

श्रौते वार्ता कथं मे द्विजकुलविहिते ब्रह्ममार्गे‌ सुसारे ।

ज्ञातो धर्मो विचारैः श्रवणमननयोः किं निदिध्यासितव्यं,

क्षंतव्यो मे‌ पराधः शिव शिव शिव भो श्री महादेव शंभो ॥

स्नात्वा प्रत्यूषकाले स्नपनविधिविधौ नाहृतं गांगतोयं,

पूजार्थं वा कदाचिद्बहुतरगहनात्खंडबिल्वीदलानि ।

नानीता पद्ममाला सरसि विकसिता गंधधूपैः त्वदर्थं,

क्षंतव्यो मे‌पराधः शिव शिव शिव भो श्री महादेव शंभो ॥

दुग्धैर्मध्वाज्युतैर्दधिसितसहितैः स्नापितं नैव लिंगं,

नो लिप्तं चंदनाद्यैः कनकविरचितैः पूजितं न प्रसूनैः ।

धूपैः कर्पूरदीपैर्विविधरसयुतैर्नैव भक्ष्योपहारैः,

क्षंतव्यो मे‌पराधः शिव शिव शिव भो श्री महादेव शंभो ॥

ध्यात्वा चित्ते शिवाख्यं प्रचुरतरधनं नैव दत्तं द्विजेभ्यो,

हव्यं ते लक्षसंख्यैर्हुतवहवदने नार्पितं बीजमंत्रैः ।

नो तप्तं गांगातीरे व्रतजननियमैः रुद्रजाप्यैर्न वेदैः,

क्षंतव्यो मे‌पराधः शिव शिव शिव भो श्री महादेव शंभो ॥

स्थित्वा स्थाने सरोजे प्रणवमयमरुत्कुंभके (कुंडले)सूक्ष्ममार्गे,

शांते स्वांते प्रलीने प्रकटितविभवे ज्योतिरूपे‌पराख्ये ।

लिंगज्ञे ब्रह्मवाक्ये सकलतनुगतं शंकरं न स्मरामि,

क्षंतव्यो मे‌ पराधः शिव शिव शिव भो श्री महादेव शंभो ॥

नग्नो निःसंगशुद्धस्त्रिगुणविरहितो ध्वस्तमोहांधकारो,

नासाग्रे न्यस्तदृष्टिर्विदितभवगुणो नैव दृष्टः कदाचित् ।

उन्मन्या‌वस्थया त्वां विगतकलिमलं शंकरं न स्मरामि,

क्षंतव्यो मे‌पराधः शिव शिव शिव भो श्री महादेव शंभो ॥

चंद्रोद्भासितशेखरे स्मरहरे गंगाधरे शंकरे,

सर्पैर्भूषितकंठकर्णयुगले नेत्रोत्थवैश्वानरे ।

दंतित्वक्कृतसुंदरांबरधरे त्रैलोक्यसारे हरे,

मोक्षार्थं कुरु चित्तवृत्तिमचलामन्यैस्तु किं कर्मभिः ॥

किं वा‌नेन धनेन वाजिकरिभिः प्राप्तेन राज्येन किं,

किं वा पुत्रकलत्रमित्रपशुभिर्देहेन गेहेन किम् ।

ज्ञात्वैतत्क्षणभंगुरं सपदि रे त्याज्यं मनो दूरतः,

स्वात्मार्थं गुरुवाक्यतो भज मन श्रीपार्वतीवल्लभम् ॥

आयुर्नश्यति पश्यतां प्रतिदिनं याति क्षयं यौवनं,

प्रत्यायांति गताः पुनर्न दिवसाः कालो जगद्भक्षकः ।

लक्ष्मीस्तोयतरंगभंगचपला विद्युच्चलं जीवितं,

तस्मात्त्वां शरणागतं शरणद त्वं रक्ष रक्षाधुना ॥

वंदे देवमुमापतिं सुरगुरुं वंदे जगत्कारणं,

वंदे पन्नगभूषणं मृगधरं वंदे पशूनां पतिम् ।

वंदे सूर्यशशांकवह्निनयनं वंदे मुकुंदप्रियं,

वंदे भक्तजनाश्रयं च वरदं वंदे शिवं शंकरम् ॥

गात्रं भस्मसितं च हसितं हस्ते कपालं सितं,

खट्वांगं च सितं सितश्च वृषभः कर्णे सिते कुंडले।

गंगाफेनसिता जटा पशुपतेश्चंद्रः सितो मूर्धनि,

सो‌यं सर्वसितो ददातु विभवं पापक्षयं सर्वदा ॥

करचरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा,

श्रवणनयनजं वा मानसं वा‌पराधम् ।

विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्ष्मस्व,

शिव शिव करुणाब्धे श्री महादेव शंभो ॥

डिसक्लेमर: इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।a