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Suryashtakam: रविवार के दिन पूजा के समय करें इस स्तोत्र का पाठ, पूरी होगी मनचाही मुराद

Suryashtakam धर्म शास्त्रों में निहित है कि भानु सप्तमी तिथि पर सूर्य देव का प्रादुर्भाव हुआ है। सूर्य एक राशि में 30 दिनों तक गोचर करते हैं। इसके पश्चात सूर्य देव राशि बदलते हैं। राशि बदलने की तिथि को संक्रांति कहा जाता है। संक्रांति तिथि पर गंगा स्नान कर विधि विधान से सूर्य देव की पूजा करने से साधक को करियर और कारोबार में मनमुताबिक सफलता मिलती है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sat, 15 Jul 2023 04:55 PM (IST)
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Suryashtakam: रविवार के दिन पूजा के समय करें इस स्तोत्र का पाठ, पूरी होगी मनचाही मुराद
नई दिल्ली, आध्यात्म डेस्क | Suryashtakam: सनातन धर्म में रविवार के दिन भगवान भास्कर की पूजा-उपासना की जाती है। साथ ही मनचाही नौकरी पाने के लिए साधक सूर्य देव के निमित्त उपवास भी रखते हैं। धर्म शास्त्रों में निहित है कि भानु सप्तमी तिथि पर सूर्य देव का प्रादुर्भाव हुआ है। सूर्य एक राशि में 30 दिनों तक गोचर करते हैं। इसके पश्चात, सूर्य देव राशि बदलते हैं। राशि बदलने की तिथि को संक्रांति कहा जाता है। इस वर्ष रविवार 16 जुलाई को कर्क संक्रांति है। संक्रांति तिथि पर गंगा स्नान कर विधि विधान से सूर्य देव की पूजा करने से साधक को करियर और कारोबार में मनमुताबिक सफलता मिलती है। अगर आप भी सूर्य देव का आशीर्वाद पाना चाहते हैं, तो रविवार के दिन पूजा के समय सूर्याष्टकम् का पाठ अवश्य करें। आइए, सूर्य अष्टोत्तर शतनामावली का पाठ करें-

सूर्याष्टकम्

प्रभाते यस्मिन्नभ्युदितसमये कर्मसु नृणां,

प्रवर्तेद्वै चेतो गतिरपि च शीतापहरणम् ।

गतो मैत्र्यं पृथ्वीसुरकुलपतेर्यश्च तमहं,

नमामि श्रीसूर्यं तिमिरहरणं शान्तशरणम् ॥

त्रिनेत्रोऽप्यञ्जल्या सुरमुकुटसंवृष्टचरणे,

बलिं नीत्वा नित्यं स्तुतिमुदितकालास्तसमये ।

निधानं यस्यायं कुरुत इति धाम्नामधिपति,

नमामि श्रीसूर्यं तिमिरहरणं शान्तशरणम् ॥

मृगाङ्के मूर्तित्वं ह्यमरगण भर्ताकृत इति,

नृणां वर्त्मात्मात्मोक्षिणितविदुषां यश्च यजताम् ।

क्रतुर्लोकानां यो लयभरभवेषुप्रभुरयं,

नमामि श्रीसूर्यं तिमिरहरणं शान्तशरणम् ॥

दिशः खं कालो भूरुदधिरचलं चाक्षुषमिदं,

विभागो येनायं निखिलमहसा दीपयति तान् ।

स्वयं शुद्धं संविन्निरतिशयमानन्दमजरं,

नमामि श्रीसूर्यं तिमिरहरणं शान्तशरणम् ॥

वृषात्पञ्चस्वेत्यौढयति दिनमानन्दगमनस्-

तथा वृद्धिं रात्रैः प्रकटयति कीटाज्जवगतिः ।

तुले मेषे यातो रचयति समानं दिननिशं,

नमामि श्रीसूर्यं तिमिरहरणं शान्तशरणम् ॥

वहन्ते यं ह्यश्वा अरुणविनि युक्ताः प्रमुदितास्-,

त्रयीरूपं साक्षाद्दधति च रथं मुक्तिसदनम् ।

नजीवानां यं वै विषयति मनो वागवसरो,

नमामि श्रीसूर्यं तिमिरहरणं शान्तशरणम् ॥

तथा ब्रह्मा नित्यं मुनिजनयुता यस्य पुरतश्-,

चलन्ते नृत्यन्तोऽयुतमुत रसेनानुगुणितं ।

निबध्नन्ती नागा रथमपि च नागायुतबला ,

नमामि श्रीसूर्यं तिमिरहरणं शान्तशरणम् ॥

प्रभाते ब्रह्माणं शिवतनुभृतं मध्यदिवसे,

तथा सायं विष्णुं जगति हितकारी सुखकरम् ।

सदा तेजोराशिं त्रिविवमथ पापौघशमनं,

नमामि श्रीसूर्यं तिमिरहरणं शान्तशरणम् ॥

मतं शास्त्राणां यत्तदनु रघुनाथेन रचितं,

शुभं चुंराग्रामे तिमिरहरसूर्याष्टकमिदम् ।

त्रिसन्ध्यायां नित्यं पठति मनुजोऽनन्यगतिमांश्-,

चतुर्वर्गप्राप्तौ प्रभवति सदा तस्य विजयम् ॥

नन्देन्द्वङ्क्क्षितावब्दे मार्गमासे शुभे दले ।

सूर्याष्टकमिदं प्रोक्तं दशम्यां रविवासरे ॥

सूर्य अष्टोत्तर शतनामावली

सूर्योsर्यमा भगस्त्वष्टा पूषार्क: सविता रवि: ।

गभस्तिमानज: कालो मृत्युर्धाता प्रभाकर: ।।

पृथिव्यापश्च तेजश्च खं वयुश्च परायणम ।

सोमो बृहस्पति: शुक्रो बुधोsड़्गारक एव च ।।

इन्द्रो विश्वस्वान दीप्तांशु: शुचि: शौरि: शनैश्चर: ।

ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च स्कन्दो वरुणो यम: ।।

वैद्युतो जाठरश्चाग्निरैन्धनस्तेजसां पति: ।

धर्मध्वजो वेदकर्ता वेदाड़्गो वेदवाहन: ।।

कृतं तत्र द्वापरश्च कलि: सर्वमलाश्रय: ।

कला काष्ठा मुहूर्ताश्च क्षपा यामस्तया क्षण: ।।

संवत्सरकरोsश्वत्थ: कालचक्रो विभावसु: ।

पुरुष: शाश्वतो योगी व्यक्ताव्यक्त: सनातन: ।।

कालाध्यक्ष: प्रजाध्यक्षो विश्वकर्मा तमोनुद: ।

वरुण सागरोsशुश्च जीमूतो जीवनोsरिहा ।।

भूताश्रयो भूतपति: सर्वलोकनमस्कृत: ।

स्रष्टा संवर्तको वह्रि सर्वलोकनमस्कृत: ।।

अनन्त कपिलो भानु: कामद: सर्वतो मुख: ।

जयो विशालो वरद: सर्वधातुनिषेचिता ।।

मन: सुपर्णो भूतादि: शीघ्रग: प्राणधारक: ।

धन्वन्तरिर्धूमकेतुरादिदेवोsअदिते: सुत: ।।

द्वादशात्मारविन्दाक्ष: पिता माता पितामह: ।

स्वर्गद्वारं प्रजाद्वारं मोक्षद्वारं त्रिविष्टपम ।।

देहकर्ता प्रशान्तात्मा विश्वात्मा विश्वतोमुख: ।

चराचरात्मा सूक्ष्मात्मा मैत्रेय करुणान्वित: ।।

एतद वै कीर्तनीयस्य सूर्यस्यामिततेजस: ।

नामाष्टकशतकं चेदं प्रोक्तमेतत स्वयंभुवा ।।

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