Santoshi Mata Vrat Katha: सच्चे दिल से करेंगे मां संतोषी को याद तो रहेगी कृपा, पढ़ें माता की व्रत कथा
Santoshi Mata Vrat Katha आज मा संतोषी का दिन है। कहा जाता है कि मां संतोषी से सच्चे दिल से जो मांगा जाए वो पूरा हो जाता है।
By Shilpa SrivastavaEdited By: Updated: Fri, 17 Jul 2020 09:12 AM (IST)
Santoshi Mata Vrat Katha: आज मा संतोषी का दिन है। कहा जाता है कि मां संतोषी से सच्चे दिल से जो मांगा जाए वो पूरा हो जाता है। इस दिन माता का व्रत रखा जाता है। अगर इस दिन सच्चे मन से मां की व्रत कथा की जाए तो मां अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं तो चलिए पढ़ते हैं संतोषी मां की व्रत कथा।
एक बुढ़िया थी जिसका एक पुत्र भी था। बुढ़िया ने पुत्र का विवाह किया और उसके बाद बहू से घर के सारे काम करवाती थी। लेकिन उसे खाना खाने के लिए ठीक से नहीं दिया करती थी। यह सब उसके बेटे को पता था लेकिन वो अपनी मां को कुछ कह नहीं पाता था। दिनभर बुढ़िया की बहू घर का काम करती रहती थी। इसी में उसका सारा दिन गुजर जाता था। लड़के ने इस पर काफी विचार किया और एक दिन अपनी मां से कहा-'मां, मैं परदेस जा रहा हूं।' बेटे की बात सुनकर उसे बेहद अच्छा लगा और उसने बेटे को जाने की आज्ञा दे दी। इसके बाद उसने अपनी पत्नी से कहा कि मैं परदेस जा रहा हूं। मुझे इपनी कोई निशानी दे दो। इस पर उसकी पत्नी ने कहा कि उसके पास देने योग्य कोई भी निशानी नहीं है। यह कहकर वो रोने लगी और अपने पति के पैरों में गिर गई। पत्नी के हाथ गोबर में सने हुए थे तो उसके पति के जूतों पर उसके हाथों की छाप पड़ गई।
बुढ़िया का पुत्र परदेस चला गया। उसके जाने के बाद बुढ़िया ने अपनी बहु पर बहुत अत्याचार किए। बहू बहुत दु:खी रहने लगी और वो एक दिन मंदिर चली गई। वहां उसने कुछ स्त्रियों को देखा। वो सभी पूजा कर रही थीं। यहां से उसे संतोषी मां के व्रत का पता चला। उन्होंने बताया कि इससे सभी कष्टों का अंत हो जाता है। स्त्रियों ने उसे बताया कि शुक्रवार के दिन नहा-धोकर एक लोटे में साफ जल लेना। साथ ही गुड़-चने का प्रसाद लेना। संतोषी माता को सच्चे मन से याद कर उनका पूजन करना। ध्यान रहे कि इस दौरान खटाई बिल्कुल नहीं खानी होती है। साथ ही किसी को देनी भी नहीं होती है। साथ ही एक समय भोजना ग्रहण करना होता है।
संतोषी मां के व्रत को विधान से करना होता है। मां की व्रत कथा सुननी होती है। उसने मां के व्रत करने शुरू कर दिए। माता की कृपा ऐसी हुई कि उसे कुछ दिनों के बाद से ही पति का पत्र मिलने शुरू हो गए। कुछ समय बाद पैसा भी आ गया। कुछ दिनों बाद पैसा भी आ गया। वो बहुत प्रसन्न हुई। उसने फिर से व्रत किया। वो मंदिर गई और बाकी कि स्त्रियों को बताया कि संतोषी मां की कृपा से हमें पति का पत्र और रुपए मिल गए। अन्य स्त्रियों ने भई प्रेरित होकर व्रत करना शुरू किया। बहू ने कहा कि जब उसका पति घर आ जाएगा तब वो उद्यापन करेगी।
एक रात संतोषी मां उसके पति के सपने में आई। उन्होंने उससे पूछा की वो घर क्यों नहीं जाता है। तब उसने बताया कि सेठ का सारा सामान अभी नहीं बिका है और पैसा भी नहीं आया है। इस सपने के बारे में उसने अपने सेठ को बताया। साथ ही घर जाने की इजाजत भी मांगी। लेकिन सेठ ने उसे घर जाने की इजाजत नहीं दी। लेकिन मां की कृपा ऐसी हुई कि कई व्यापारी आए और सामान खरीदकर ले गए। इसके बाद सेठ ने उसे घर जाने की इजाजत दे दी।
बुढ़िया का बेटा घर लौट आया। वहां आकर उसने अपनी मां और पत्नी को बहुत सारे रुपये दिए। उसकी पत्नी ने उसे कहा कि अब वो आ गया है तो उसे संतोषी मां के व्रत का उद्यापन करना है। उसने सभी को न्यौता दिया और उद्यापन की तैयारी करने लगी। लेकिन उसके घर के बराबर में रहने वाली एक स्त्री उसका सुख देखकर ईर्ष्या करने लगी। उसने अपने बच्चों को सिखा कर भेजा कि खाने से समय खटाई मांगना।उद्यापन के समय जब बच्चे खाना खा रहे थे तब उन्होंने खटाई की मांग की। लेकिन बहू ने पैसे देकर किसी तरह से बहला दिया। बच्चों ने उन पैसों की खटाई खरीदकर खाई। इससे माता का कोप महिला पर बरसा। राजा के दूत उसके पति को पकड़कर ले जाने लगे। उसे किसी ने बताया कि जिन बच्चों को उसने पैसे दिए थे उन्होंने उस पैसे की खटाई खरीदकर खाई थी। इसके चलते बहू ने दोबारा व्रत के उद्यापन करने का संकल्प लिया।
जैसे ही उसने संकल्प लिया और मंदिर से निकली तो रास्त में उसे उसका पति आता नजर आया। उसके पति ने कहा है कि उसने जो भी पैसा कमाया है राजा ने उसका कर मांगा था। इसके बाद अगले शुक्रवार को बहू ने मां के व्रत का उद्यापन किया। इससे मां प्रसन्न हो गईं। इसके बाद बहू को एक प्यारा-सा बेटा हुआ और वो खुशी-खुशी रहने लगे।