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Saraswati Avahan 2023: नवरात्रि के सातवें दिन पूजा के समय करें इस स्तोत्र का पाठ, पूरी होगी मनचाही मुराद

पंचांग के अनुसार 21 अक्टूबर को रात 09 बजकर 53 मिनट तक सप्तमी है। इसके पश्चात अष्टमी है। इस दिन साधक श्रद्धा भाव से मां सरस्वती की पूजा-उपासना करते हैं। तंत्र मंत्र सीखने वाले साधक निशाकाल में मां काली की विशेष पूजा-अनुष्ठान करते हैं। अगर आप भी मां की कृपा के भागी होना चाहते हैं तो शारदीय नवरात्रि के सातवें दिन पूजा के समय सरस्वती अष्ठक का पाठ अवश्य करें।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Tue, 17 Oct 2023 12:06 PM (IST)
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Saraswati Avahan 2023: शारदीय नवरात्रि के सातवें दिन पूजा के समय करें इस स्तोत्र का पाठ

धर्म डेस्क, नई दिल्ली | Saraswati Avahan 2023: शारदीय नवरात्रि के सातवें दिन जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा के सातवें स्वरूप मां काली की पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही उनके निमित्त व्रत रखा जाता है। मां काली की पूजा निशा काल में होती है। वहीं, नवरात्रि के सातवें दिन मां सरस्वती की भी पूजा की जाती है। इस वर्ष 21 अक्टूबर को शारदीय नवरात्रि की सप्तमी है। शारदीय नवरात्रि 15 अक्टूबर से 23 अक्टूबर तक है। पंचांग के अनुसार, 21 अक्टूबर को रात 09 बजकर 53 मिनट तक सप्तमी है। इसके पश्चात अष्टमी है। इस दिन साधक श्रद्धा भाव से मां सरस्वती की पूजा-उपासना करते हैं। तंत्र मंत्र सीखने वाले साधक भी निशाकाल में मां काली की विशेष पूजा-अनुष्ठान करते हैं। अगर आप भी मां की कृपा के भागी होना चाहते हैं, तो शारदीय नवरात्रि के सातवें दिन पूजा के समय सरस्वती अष्ठक का पाठ अवश्य करें। इस स्तोत्र के पाठ से मनचाही मुराद पूरी होती है। 

सरस्वती अष्टक

अम्ब, थ्वदेय पद पङ्कज पांसु लेस,

संबन्द बन्दुरथरा रसना थ्वधीयम् ।

संभयुधधिपदमप्य अम्रुथथि रम्यं,

निम्भयथे किमुथ भोउम पदानि थस्य ॥

मथ, स्थ्वधेय करुनंरुथ पूर्ण दृष्टि,

अथक्वचिद्विधि वसन मनुजे न चेतः स्यतः ।

का थस्य घोर अपि धभ्यवाःअरनिध्र,

भीथ्यधिकेषु समा भवमुपेयिवल्सु ॥

वनि रेम गिरि सुथेथि च रूप भेदि,

क्षोणी जुषां विविध मङ्गल माध धासि ।

ननीयसीं थ्व विभुथिमहो विवेक्थुं,

क्षीनिभवथ्यकृथकोपि वच प्रपञ्च ॥

सर्वग्नाथ गिरि सुथ कमिथिर विपक्ष,

गर्वचिधकुसलथदिविशद गुरोस्च ।

चर्वार्थ सबध घटना पतुथ कवीनां,

सर्वं थ्वधीय करुणा कनिक विवर्थ ॥

मूक कविर्जद इह प्रथि भवधग्र्यो,

भीकुन्द दुर्भलमधिर धरणी विज्हेथ ।

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निष्किञ्चनो निधिपधिर भवथि थ्वधीय,

मेकं कदक्षमवलंभ्य जगथ्सविथ्री ॥

वर्णथ्मिके, हिम सुधाकर संख कुण्ड,

वर्नभि राम थानु वल्लरी विस्व वन्ध्ये ।

कर्णाथ दीर्घ करुनर्ध्र कदक्ष पथि,

पूर्ण अखिलर्थमिम मासु विदथ्स्व देवी ॥

कालं कियन्थमयि थेय चररविन्ध,

मलंभ्य हन्थ विलपामि विलोलचेथ ।

बलं कुरुश्व कृथा कृथ्यमिमं शुभिअक,

मूलं निधाय करुअर्ध्र मपन्गमस्मिन ॥

आनन्द हेथु मयि थेय करुणां विहाय,

नूनं न किन्चिदखिलेसि विलोकयामि ।

धूनं दयर्हमगथिं करुनंरुथद्रै,

रेनं शिशुं शिशिरयषु कदक्षपत्है ॥

इमं पदेध्य प्रयथस्थावोध्घ,

मनन्य चेथ जगथं जनन्य ।

स विध्वधरधिथ पद पीते,

लभेथ सर्वं पुर्षर्थसर्थं

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