Sawan 2024: सावन सोमवार पर पूजा के समय करें शिवरक्षा स्तोत्र का पाठ, बन जाएंगे सारे बिगड़े काम
ज्योतिष शास्त्र में सावन (Sawan 2024) महीने में विशेष उपाय करने का विधान है। इन उपायों को करने से आर्थिक तंगी समेत सभी प्रकार की परेशानियों का अंत होता है। साथ ही जीवन में खुशियों का आगमन होता है। अगर आप भी आर्थिक तंगी से निजात पाना चाहते हैं तो सावन महीने में रोजाना गंगाजल में काले तिल मिलाकर भगवान शिव का अभिषेक करें।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 04 Aug 2024 03:33 PM (IST)
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Sawan Somwar 2024: सावन का महीना देवों के देव महादेव को अति प्रिय है। इस महीने देवों के देव महादेव संग मां पार्वती की पूजा की जाती है। वहीं, सावन सोमवार पर व्रत रखा जाता है। इस व्रत के पुण्य-प्रताप से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही जीवन में खुशियों का आगमन होता है। अतः साधक सावन सोमवार पर विधि-विधान से महादेव की पूजा करते हैं। अगर आप भी भगवान शिव की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो सावन सोमवार पर पूजा के समय इस स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।
श्रीशिवरक्षास्तोत्रम्
अस्य श्रीशिवरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य याज्ञवल्क्य ऋषिः॥श्री सदाशिवो देवता॥ अनुष्टुप् छन्दः॥श्रीसदाशिवप्रीत्यर्थं शिवरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः॥॥ स्तोत्र पाठ ॥चरितं देवदेवस्य महादेवस्य पावनम्।अपारं परमोदारं चतुर्वर्गस्य साधनम्॥गौरीविनायकोपेतं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रकम्।
शिवं ध्यात्वा दशभुजं शिवरक्षां पठेन्नरः॥गंगाधरः शिरः पातु भालं अर्धेन्दुशेखरः।नयने मदनध्वंसी कर्णो सर्पविभूषण॥घ्राणं पातु पुरारातिः मुखं पातु जगत्पतिः।जिह्वां वागीश्वरः पातु कंधरां शितिकंधरः॥श्रीकण्ठः पातु मे कण्ठं स्कन्धौ विश्वधुरन्धरः।भुजौ भूभारसंहर्ता करौ पातु पिनाकधृक्॥हृदयं शंकरः पातु जठरं गिरिजापतिः।नाभिं मृत्युञ्जयः पातु कटी व्याघ्राजिनाम्बरः॥
सक्थिनी पातु दीनार्तशरणागतवत्सलः।उरू महेश्वरः पातु जानुनी जगदीश्वरः॥जङ्घे पातु जगत्कर्ता गुल्फौ पातु गणाधिपः।चरणौ करुणासिंधुः सर्वाङ्गानि सदाशिवः॥एतां शिवबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत्।स भुक्त्वा सकलान्कामान् शिवसायुज्यमाप्नुयात्॥ग्रहभूतपिशाचाद्यास्त्रैलोक्ये विचरन्ति ये।दूरादाशु पलायन्ते शिवनामाभिरक्षणात्॥अभयङ्करनामेदं कवचं पार्वतीपतेः।
भक्त्या बिभर्ति यः कण्ठे तस्य वश्यं जगत्त्रयम्॥इमां नारायणः स्वप्ने शिवरक्षां यथाऽऽदिशत्।प्रातरुत्थाय योगीन्द्रो याज्ञवल्क्यः तथाऽलिखत॥