Shani Stotra: संध्या आरती के समय करें इस स्तोत्र का पाठ, शनि दोष से मिलेगी मुक्ति
धार्मिक मत है कि शनिदेव के शरणागत रहने वाले साधकों को मृत्यु लोक में सभी प्रकार के सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही मृत्यु उपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके लिए शनिदेव को मोक्ष प्रदाता भी कहा जाता है। शनिदेव अपने भक्तों पर विशेष कृपा बरसाते हैं। उनकी कृपा से रंक भी राजा बन जाता है। वहीं बुरे कर्म करने वाले लोगों को शनिदेव दंड देते हैं।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Shani Stotra: शनिवार के दिन न्याय के देवता शनिदेव की विधि-विधान से पूजा की जाती है। साथ ही शनि दोष से निजात पाने के लिए विशेष उपाय किए जाते हैं। धार्मिक मत है कि शनिदेव के शरणागत रहने वाले साधकों को मृत्यु लोक में सभी प्रकार के सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही मृत्यु उपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके लिए शनिदेव को मोक्ष प्रदाता भी कहा जाता है। शनिदेव अपने भक्तों पर विशेष कृपा बरसाते हैं। उनकी कृपा से रंक भी राजा बन जाता है। वहीं, बुरे कर्म करने वाले लोगों को शनिदेव दंड देते हैं। उनकी कुदृष्टि पड़ने पर व्यक्ति को संसार में ही नरक का दुख भोगना पड़ता है। अतः ज्योतिष शनिदेव की सेवा-भक्ति करने की सलाह देते हैं। अगर आप भी शनिदेव की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो शनिवार के दिन विधि-विधान से शनिदेव की पूजा करें। साथ ही संध्या आरती के समय इस मंगलकारी स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।
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नित्यं स्मृतो यो हरते च पीडां तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥
सुरासुराः किंपुरुषोरगेन्द्रा गन्धर्वविद्याधरपन्नगाश्च।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥
नरा नरेन्द्राः पशवो मृगेन्द्रा वन्याश्च ये कीटपतंगभृङ्गाः।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥
देशाश्च दुर्गाणि वनानि यत्र सेनानिवेशाः पुरपत्तनानि।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥
तिलैर्यवैर्माषगुडान्नदानैर्लोहेन नीलाम्बरदानतो वा।
प्रीणाति मन्त्रैर्निजवासरे च तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥
प्रयागकूले यमुनातटे च सरस्वतीपुण्यजले गुहायाम्।
यो योगिनां ध्यानगतोऽपि सूक्ष्मस्तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥
अन्यप्रदेशात्स्वगृहं प्रविष्टस्तदीयवारे स नरः सुखी स्यात्।
गृहाद् गतो यो न पुनः प्रयाति तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥
स्रष्टा स्वयंभूर्भुवनत्रयस्य त्राता हरीशो हरते पिनाकी।
एकस्त्रिधा ऋग्यजुःसाममूर्तिस्तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥
शन्यष्टकं यः प्रयतः प्रभाते नित्यं सुपुत्रैः पशुबान्धवैश्च।
पठेत्तु सौख्यं भुवि भोगयुक्तः प्राप्नोति निर्वाणपदं तदन्ते॥
कोणस्थः पिङ्गलो बभ्रुः कृष्णो रौद्रोऽन्तको यमः।
सौरिः शनैश्चरो मन्दः पिप्पलादेन संस्तुतः॥
एतानि दश नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्।
शनैश्चरकृता पीडा न कदाचिद्भविष्यति॥
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