Sharad Purnima 2023: शरद पूर्णिमा पर जरूर पढ़ें यह व्रत कथा, बनी रहेगी लक्ष्मी मां की कृपा
Sharad Purnima vrat 2023 हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस दिन माता लक्ष्मी की विधिवत पूजा और व्रत किया जाता है। इस वर्ष शरद पूर्णिमा की शुरुआत 28 अक्टूबर से हो रही है। इस दिन दीपावली की तरह ही मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस पूजा और व्रत को करने से मां लक्ष्मी का आशीर्वाद हमेशा साधक पर बना रहता है।
By Suman SainiEdited By: Suman SainiUpdated: Fri, 27 Oct 2023 12:43 PM (IST)
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Sharad Purnima vrat katha: आश्विन महीने में पड़ने वाली पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन की पूजा को कई स्थानों पर कोजागर पूजा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन स्त्रियां अपनी संतान की खुशहाली के लिए व्रत करती हैं। इसलिए इसकी कथा भी संतान प्राप्ति और उसकी रक्षा से जुड़ी हुई है। व्रत के दिन इस कथा का पाठ करना जरूरी माना जाता है। ऐसे में आइए जानें क्या है शरद पूर्णिमा की कथा।
शरद पूर्णिमा व्रत कथा (Sharad Purnima vrat katha)
पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में एक साहूकार की दो पुत्रियां थी। दोनों ही पूर्णिमा का व्रत रखती थीं। बड़ी पुत्री व्रत पूरा करती थी, लेकिन छोटी पुत्री व्रत को बीच में ही अधूरा छोड़ देती थी। जिसके कारण छोटी पुत्री को संतान प्राप्ति में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। उसकी संतान जन्म लेते ही मृत्यु को प्राप्त हो जाती थी। जब छोटी पुत्री ने पंडितों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि ऐसा तुम्हारे व्रत अधूरा छोड़ने के कारण हो रहा है। वहीं, इसका उपाय पूछने पर उन्होंने बताया कि यदि तुम पूर्णिमा व्रत को पूरे विधि-विधान के साथ करोगी तो निश्चित ही तुम्हें संतान की प्राप्ति होगी।
पंडितों की सलाह पर उसने पूरे विधान के साथ पूर्णिमा का पूरा किया। जिसके परिणामस्वरूप उसके यहां बेटा हुआ। लेकिन कुछ समय बाद वह भी मर गया। इसके बाद उसने बच्चे की देह को एक पाटे (पीढ़ा) पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढक दिया। फिर वह अपनी बड़ी बहन को बुलाकर लाई और उसे उस उसी पाटे पर बिठाने लगी। बड़ी बहन जब उस पर बैठने लगी जो उसका लहंगा बच्चे का छू गया और वह जीवित होकर रोने लगा। यह देखकर उनकी बड़ी बहन ने कहा कि तू मुझे कलंक लगाना चाहती थी, मेरे बैठने से यह मर जाता। इस पर छोटी बहन ने उत्तर दिया कि यह बच्चा तो पहले से ही मृत था, बल्कि तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया। इसके बाद दोनों बहनों ने सभी नगर वासियों को शरद पूर्णिमा व्रत की महिमा और विधि बताई।
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