Shiv Krit Durga Stotra: नवरात्र में रोजाना करें शिव कृत दुर्गा स्तोत्र का पाठ, घर में कभी नहीं होगी धन संपदा की कमी
Shiv Krit Durga Stotra नवरात्र के दौरान शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा के नौ रूपों की विधिवत पूजा की जाती है। इन नौ दिनों में मां को विभिन्न तरह से पूजा करते हैं। इस दौरान आप चाहे तो शिव कृत दुर्गा स्तोत्र का भी पाठ कर सकते हैं।
By Shivani SinghEdited By: Updated: Tue, 27 Sep 2022 12:35 PM (IST)
नई दिल्ली, Shiv Krit Durga Stotra: आश्विन मास की प्रतिपदा तिथि के साथ शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो चुकी है। नौ दिनों तक पड़ने वाले नवरात्र में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधिवत पूजा की जाती है। इन दिनों में मां का आशीर्वाद पाने के लिए विभिन्न तरह के पाठ, चालीसा, मंत्रों का जाप किया जाता है। आप चाहे तो नवरात्र के दिनों में शिव कृत दुर्गा स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं। शास्त्रों के अनुसार इस स्तोत्र का पाठ करने से सुख-समृद्धि के साथ घर में खुशहाली का वास होगा। जानिए संपूर्ण शिव कृत दुर्गा स्तोत्र।
भगवान शिव ने क्यों किया था इस दुर्गा स्तोत्र का पाठ?
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, श्रीकृष्ण ने नन्द जी को इस स्तोत्र के बारे में बताया था। उन्होंने कहा कि त्रिपुरासुर का वध करते समय महादेव को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। ऐसे में भगवान विष्णु ने शत्रु के चंगुल में फंसे शिवजी को देखकर ब्राह्मा जी को इस स्तोत्र के बारे में बताया था। इसके बाद ब्रह्मा जी युद्ध के मैदान में मौजूद भगवान शिव को इस स्तोत्र और इसकी महिमा के बारे में बताया। तब भगवान शिव जी ने इस स्तोत्र का पाठ किया।
भगवान शिव से खुद को शुद्ध करते हाथों में कुश लेकर आचमन किया। इसके बाद भगवान विष्णु का ध्यान करके दुर्गा मां का स्मरण करने लगें। इसी कारण इसे शिव कृत दुर्गास्तोत्र कहा जाता है।
शिव कृत दुर्गा स्तोत्र का पाठ करने के फायदे
माना जाता है कि शिव कृत दुर्गास्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति का दिमाग शांत रहता है। उसे परम शांति मिलने के साथ हर कष्ट से छुटकारा मिल जाता है। मां दुर्गा की कृपा से हर काम में सफलता प्राप्त होती है। इसके साथ ही शत्रु के ऊपर विजय होते हैं।
शिव कृत दुर्गा स्तोत्र
रक्ष रक्ष महादेवि दुर्गे दुर्गतिनाशिनि ।मां भक्तमनुरक्तं च शत्रुग्रस्तं कृपामयि ॥विष्णुमाये महाभागे नारायणि सनातनि।ब्रह्मस्वरूपे परमे नित्यानन्दस्वरूपिणि ॥त्वं च ब्रह्मादिदेवानामम्बिके जगदम्बिके ।त्वं साकारे च गुणतो निराकारे च निर्गुणात् ॥मायया पुरुषस्त्वं च मायया प्रकृतिः स्वयम् ।तयोः परं ब्रह्म परं त्वं विभर्षि सनातनि ॥
वेदानां जननी त्वं च सावित्री च परात्परा ।वैकुण्ठे च महालक्ष्मीः सर्वसम्पत्स्वरूपिणी ॥मर्त्यलक्ष्मीश्च क्षीरोदे कामिनी शेषशायिनः ।स्वर्गेषु स्वर्गलक्ष्मीस्त्वं राजलक्ष्मीश्च भूतले ॥नागादिलक्ष्मीः पाताले गृहेषु गृहदेवता ।सर्वशस्यस्वरूपा त्वं सर्वैश्वर्यविधायिनी ॥रागाधिष्ठातृदेवी त्वं ब्रह्मणश्च सरस्वती ।प्राणानामधिदेवी त्वं कृष्णस्य परमात्मनः ॥
गोलोके च स्वयं राधा श्रीकृष्णस्यैव वक्षसि ।गोलोकाधिष्ठिता देवी वृन्दावनवने वने ॥श्रीरासमण्डले रम्या वृन्दावनविनोदिनी ।शतशृङ्गाधिदेवी त्वं नाम्ना चित्रावलीति च ॥दक्षकन्या कुत्र कल्पे कुत्र कल्पे च शैलजा ।देवमातादितिस्त्वं च सर्वाधारा वसुन्धरा ॥त्वमेव गङ्गा तुलसी त्वं च स्वाहा स्वधा सती ।त्वदंशांशांशकलया सर्वदेवादियोषितः ॥स्त्रीरूपं चापिपुरुषं देवि त्वं च नपुंसकम् ।
वृक्षाणां वृक्षरूपा त्वं सृष्टा चाङ्कररूपिणी ॥वह्नौ च दाहिकाशक्तिर्जले शैत्यस्वरूपिणी ।सूर्ये तेज: स्वरूपा च प्रभारूपा च संततम् ॥गन्धरूपा च भूमौ च आकाशे शब्दरूपिणी ।शोभास्वरूपा चन्द्रे च पद्मसङ्गे च निश्चितम् ॥सृष्टौ सृष्टिस्वरूपा च पालने परिपालिका ।महामारी च संहारे जले च जलरूपिणी ॥क्षुत्त्वं दया तवं निद्रा त्वं तृष्णा त्वं बुद्धिरूपिणी ।
तुष्टिस्त्वं चापि पुष्टिस्त्वं श्रद्धा त्वं च क्षमा स्वयम् ॥शान्तिस्त्वं च स्वयं भ्रान्तिः कान्तिस्त्वं कीर्तिरेवच ।लज्जा त्वं च तथा माया भुक्ति मुक्तिस्वरूपिणी ॥सर्वशक्तिस्वरूपा त्वं सर्वसम्पत्प्रदायिनी ।वेदेऽनिर्वचनीया त्वं त्वां न जानाति कश्चन ॥सहस्रवक्त्रस्त्वां स्तोतुं न च शक्तः सुरेश्वरि ।वेदा न शक्ताः को विद्वान न च शक्ता सरस्वती ॥
स्वयं विधाता शक्तो न न च विष्णु सनातनः ।किं स्तौमि पञ्चवक्त्रेण रणत्रस्तो महेश्वरि ॥॥ कृपां कुरु महामाये मम शत्रुक्षयं कुरु ॥Pic Credit- unsplashडिसक्लेमर'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'