Shardiya Navratri 2023: आज पूजा के समय जरूर पढ़ें ये व्रत कथा, खुशियों से भर जाएगी झोली
Shardiya Navratri 2023 शास्त्रों में निहित है कि माता पार्वती की पूजा करने से साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। उनकी कृपा से साधक को मृत्यु लोक में स्वर्ग समान सुखों की प्राप्ति होती है। तंत्र-मंत्र सीखने वाले साधक कठिन भक्ति कर मां को प्रसन्न करते हैं। स्कंदमाता अपने भक्तों के सभी दुख हर लेती हैं और उन्हें सुख शांति और समृद्धि प्रदान करती हैं।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Thu, 19 Oct 2023 12:07 PM (IST)
धर्म डेस्क, नई दिल्ली | Shardiya Navratri 2023: आज शारदीय नवरात्र की पंचमी तिथि है। नवरात्र के पांचवें दिन साधक श्रद्धा भाव से व्रत रख स्कंदमाता की पूजा करते हैं। शिव पुराण में स्कंदमाता की महिमा का वर्णन विस्तार से है। शास्त्रों में निहित है कि माता पार्वती की पूजा करने से साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। उनकी कृपा से साधक को मृत्यु लोक में स्वर्ग समान सुखों की प्राप्ति होती है। तंत्र-मंत्र सीखने वाले साधक कठिन भक्ति कर मां को प्रसन्न करते हैं। स्कंदमाता अपने भक्तों के सभी दुख हर लेती हैं और उन्हें सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करती हैं। अगर आप भी स्कंदमाता का आशीर्वाद पाना चाहते हैं, तो नवरात्र के पांचवें दिन विधि विधान से स्कंदमाता की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय व्रत कथा जरूर पढ़ें।
व्रत कथा
सनातन शास्त्रों में निहित है कि चिर काल में तारकासुर नामक एक राक्षस था। वह ब्रह्मा जी का परम भक्त था। एक बार तारकासुर के मन में अमर होने का विचार आया। उस समय तारकासुर ने ब्रह्मा जी की कठिन तपस्या करने की ठानी। कालांतर में तारकासुर ने ब्रह्मा जी की कठिन तपस्या की। लंबे समय तक तपस्या करने से ब्रह्मा जी प्रसन्न हो उठे। हालांकि, उन्हें पूर्व से ज्ञात था कि तारकासुर अमर होना चाहता है। जब तारकासुर तपस्या में लीन था।उस समय ब्रह्मा जी प्रकट होकर तारकासुर से बोले- आंख खोलो, तारकासुर! मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हुआ हूं। मांगो, तुम क्या मांगना चाहते हो! ब्रह्मा जी को अपने सन्मुख देख तारकासुर प्रसन्न हो गया। उसने तत्क्षण ब्रह्मा जी को प्रणाम किया। इसके पश्चात, तारकासुर ने ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान मांगा। यह सुन ब्रह्मा जी कुछ पल के लिए मौन हो गए। तब तारकासुर ने कहा-प्रभु! क्या हुआ ? आप मौन क्यों हैं ?
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ब्रह्मा जी बोले- तारकासुर, तुम्हें ज्ञात है कि जन्म लेने वाले की मृत्यु निश्चित है। अतः मैं तुम्हें अमर होने का वरदान नहीं दे सकता। तुम कोई और वर मांग लो। उस समय तारकासुर गंभीर होकर सोचता रहा। तभी उसके मन में विचार आया कि महादेव तो योगी हैं।
सती के वियोग में अब पुनर्विवाह तो नहीं करेंगे। इसके लिए उनके पुत्र के हाथों से मृत्यु का वरदान मांग लेता हूं। यह वर भी अमर होने के समतुल्य वरदान है। उस समय तारकासुर ने ब्रह्मा जी भगवान शिव के पुत्र हाथों मरने का वरदान मांगा। आसान शब्दों में कहें तो भगवान शिव के पुत्र के अलावा कोई उसका वध न कर सके। ब्रह्मा जी तथास्तु कहकर अंतर्ध्यान हो गए।इसके पश्चात, तारकासुर का आतंक तीनों लोकों में फैल गया। स्वर्ग के सभी देवता चिंतित हो उठे। उस समय सभी देवता ब्रह्मा जी के पास गए और तारकासुर से मुक्ति दिलाने की याचना की। तब ब्रह्मा जी ने भगवान शिव के शरण में जाने की सलाह दी। देवताओं के अनुरोध पर भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया। कालांतर में देवताओं के सेनापति स्कंद का अवतार हुआ। अतः माता पार्वती को स्कंदमाता कहा जाता है। भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया।
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