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Shardiya Navratri 2023: आज अष्टमी तिथि पर करें दुर्गा आपदुद्धाराष्टकम् स्तोत्र का पाठ, पूरी होगी मनचाही मुराद

तंत्र-मंत्र सीखने वाले साधक अष्टमी तिथि पर कठिन भक्ति कर मां दुर्गा को प्रसन्न करते हैं। कठिन भक्ति से प्रसन्न होकर मां दुर्गा साधक को मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। धार्मिक मत है कि मां दुर्गा की पूजा करने से सुख समृद्धि और आय में वृद्धि होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त दुख और संताप दूर हो जाते हैं।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 22 Oct 2023 12:23 PM (IST)
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Shardiya Navratri 2023 Day 8: आज अष्टमी तिथि पर करें दुर्गा आपदुद्धाराष्टकम् स्तोत्र का पाठ, पूरी होगी मनचाही मुराद

धर्म डेस्क, नई दिल्ली | Shardiya Navratri 2023 Day 8: सनातन धर्म में शारदीय नवरात्र की अष्टमी तिथि का विशेष महत्व है। इस दिन जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा की पूजा-उपासना की जाती है। तंत्र-मंत्र सीखने वाले साधक अष्टमी तिथि पर कठिन भक्ति कर मां दुर्गा को प्रसन्न करते हैं। कठिन भक्ति से प्रसन्न होकर मां दुर्गा साधक को मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। धार्मिक मत है कि मां दुर्गा की पूजा करने से सुख, समृद्धि और आय में वृद्धि होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त दुख और संताप दूर हो जाते हैं। अतः अष्टमी तिथि पर भक्त श्रद्धा भाव से मां दुर्गा की पूजा-उपासना करते हैं। अगर आप भी मनोवांछित फल पाना चाहते हैं, तो अष्टमी तिथि पर पूजा के समय दुर्गा आपदुद्धाराष्टकम् एवं दुर्गाष्टकम् स्तोत्र का पाठ करें।

दुर्गा आपदुद्धाराष्टकम्

नमस्ते शरण्ये शिवे सानुकम्पे

नमस्ते जगद्व्यापिके विश्वरूपे।

नमस्ते जगद्वन्द्यपादारविन्दे

नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे।।

नमस्ते जगच्चिन्त्यमानस्वरूपे

नमस्ते महायोगिविज्ञानरूपे।

नमस्ते नमस्ते सदानन्द रूपे

नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे।।

अनाथस्य दीनस्य तृष्णातुरस्य

भयार्तस्य भीतस्य बद्धस्य जन्तोः।।

त्वमेका गतिर्देवि निस्तारकर्त्री

नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे।।

अरण्ये रणे दारुणे शुत्रुमध्ये

जले सङ्कटे राजग्रेहे प्रवाते।

त्वमेका गतिर्देवि निस्तार हेतुर्नमस्ते

जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे।।

अपारे महदुस्तरेऽत्यन्तघोरे विपत्

सागरे मज्जतां देहभाजाम्।

त्वमेका गतिर्देवि निस्तारनौका

नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे ।।

नमश्चण्डिके चण्डोर्दण्डलीलासमुत्खण्डिता खण्डलाशेषशत्रोः।

त्वमेका गतिर्विघ्नसन्दोहहर्त्री

नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे।।

त्वमेका सदाराधिता सत्यवादिन्यनेकाखिला क्रोधना क्रोधनिष्ठा ।

इडा पिङ्गला त्वं सुषुम्ना च नाडी

नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे ।।

नमो देवि दुर्गे शिवे भीमनादे

सरस्वत्यरुन्धत्यमोघस्वरूपे।।

विभूतिः सतां कालरात्रिस्वरूपे

नमस्ते जगत्तारिणि त्राहि दुर्गे ।।

शरणमसि सुराणां सिद्धविद्याधराणां

मुनिदनुजवराणां व्याधिभिः पीडितानाम् ।।

नृपतिगृहगतानां दस्युभिस्त्रासितानां

त्वमसि शरणमेका देवि दुर्गे प्रसीद।।

इति सिद्धेश्वरतन्त्रे हरगौरीसंवादे आपदुद्धाराष्टकस्तोत्रं सम्पूर्णम्।

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दुर्गाष्टकम्

दुर्गे परेशि शुभदेशि परात्परेशि,

वन्द्ये महेशदयिते करूणार्णवेशि ।

स्तुत्ये स्वधे सकलतापहरे सुरेशि,

कृष्णस्तुते कुरु कृपां ललितेऽखिलेशि ॥

दिव्ये नुते श्रुतिशतैर्विमले भवेशि,

कन्दर्पदाराशतसुन्दरि माधवेशि ।

मेधे गिरीशतनये नियते शिवेशि,

कृष्णस्तुते कुरु कृपां ललितेऽखिलेशि ॥

रासेश्वरि प्रणततापहरे कुलेशि,

धर्मप्रिये भयहरे वरदाग्रगेशि ।

वाग्देवते विधिनुते कमलासनेशि,

कृष्णस्तुतेकुरु कृपां ललितेऽखिलेशि ॥

पूज्ये महावृषभवाहिनि मंगलेशि,

पद्मे दिगम्बरि महेश्वरि काननेशि ।

रम्येधरे सकलदेवनुते गयेशि,

कृष्णस्तुते कुरु कृपां ललितेऽखिलेशि ॥

श्रद्धे सुराऽसुरनुते सकले जलेशि,

गंगे गिरीशदयिते गणनायकेशि।

दक्षे स्मशाननिलये सुरनायकेशि,

कृष्णस्तुते कुरु कृपां ललितेऽखिलेशि ॥

तारे कृपार्द्रनयने मधुकैटभेशि,

विद्येश्वरेश्वरि यमे निखलाक्षरेशि ।

ऊर्जे चतुःस्तनि सनातनि मुक्तकेशि,

कृष्णस्तुते कुरु कृपां ललितऽखिलेशि ॥

मोक्षेऽस्थिरे त्रिपुरसुन्दरिपाटलेशि,

माहेश्वरि त्रिनयने प्रबले मखेशि ।

तृष्णे तरंगिणि बले गतिदे ध्रुवेशि,

कृष्णस्तुते कुरु कृपां ललितेऽखिलेशि ॥

विश्वम्भरे सकलदे विदिते जयेशि,

विन्ध्यस्थिते शशिमुखि क्षणदे दयेशि ।

मातः सरोजनयने रसिके स्मरेशि,

कृष्णस्तुते कुरु कृपां ललितेऽखिलेशि ॥

दुर्गाष्टकं पठति यः प्रयतः प्रभाते,

सर्वार्थदं हरिहरादिनुतां वरेण्यां ।

दुर्गां सुपूज्य महितां विविधोपचारैः,

प्राप्नोति वांछितफलं न चिरान्मनुष्यः ॥

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