Navratri 2024 Day 4: चौथे दिन पर इस तरह करें मां कुष्मांडा को प्रसन्न, कृपा बरसाएंगी माता रानी
नवरात्र (Navratri 2024) के नौ दिन नवदुर्गा की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित होते हैं। इस दौरान नवदुर्गा के प्रत्येक रूप की पूजा-अर्चना से भक्तों के कष्ट दूर हो सकते हैं। ऐसे में नवरात्र के चौथे दिन पर देवी कुष्मांडा की पूजा-अर्चना करने से आपको विशेष लाभ की प्राप्ति हो सकती है। चलिए पढ़ते हैं मां कुष्मांडा की कृपा प्राप्ति के लिए मंत्र।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। नवरात्र के चौथे दिन यानी रविवार, मां कुष्मांडा की पूजा-अर्चना का विधान है। ऐसे में रविवार, 06 अक्टूबर के दिन देवी के इस स्वरूप की आराधना से आप जीवन में विशेष लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इसी के साथ नवरात्र के प्रत्येक दिन सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम् का पाठ करके भी आपको माता रानी की कृपा मिल सकती है।
मां कुष्मांडा के मंत्र
- देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
- नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
- बीज मंत्र - कुष्मांडा: ऐं ह्री देव्यै नम:
- पूजा मंत्र - ऊं कुष्माण्डायै नम:
- ध्यान मंत्र - वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्। सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥
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॥ दुर्गा सप्तशती: सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम् ॥
शिव उवाच:
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम् ।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत ॥1॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् ।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ॥2॥
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् ।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ॥3॥
गोपनीयं प्रयत्नेनस्वयोनिरिव पार्वति ।
मारणं मोहनं वश्यंस्तम्भनोच्चाटनादिकम् ।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत्कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥4॥
॥ अथ मन्त्रः ॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लींचामुण्डायै विच्चे ॥
ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालयज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वलहं सं लं क्षं फट् स्वाहा ॥
॥ इति मन्त्रः ॥
नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि ।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ॥1॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि ।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे ॥2॥
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका ।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते ॥3॥
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी ।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि ॥4॥
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी ।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु ॥5॥
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी ।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ॥6॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं ।
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ॥7॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे ॥8॥
इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रंमन्त्रजागर्तिहेतवे ।
अभक्ते नैव दातव्यंगोपितं रक्ष पार्वति ॥
यस्तु कुञ्जिकाया देविहीनां सप्तशतीं पठेत् ।
न तस्य जायतेसिद्धिररण्ये रोदनं यथा ॥
॥ इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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