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Shardiya navratri में मां दुर्गा की कृपा इस तरह करें प्राप्त, सभी कार्यों में मिलेगी सफलता

देशभर में शारदीय नवरात्र के दौरान खास रौनक देखने को मिलती है। पंचांग के अनुसार शारदीय नवरात्र की शुरुआत 03 अक्टूबर (Shardiya navratri 2024 Date) से होगी। वहीं इस उत्सव का समापन 11 अक्टूबर को होगा। इस दौरान मां दुर्गा की कृपा प्राप्त करने के लिए कई तरह के उपाय किए जाते हैं जिससे जातक का जीवन खुशहाल होता है।

By Kaushik Sharma Edited By: Kaushik Sharma Updated: Sun, 29 Sep 2024 05:11 PM (IST)
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Shardiya navratri 2024: मां दुर्गा को इस तरह प्रसन्न करें

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में शारदीय नवरात्र की अवधि को शुभ माना जाता है। इस उत्सव के दौरान जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा के नौ रूपों की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही जीवन के दुखों को दूर करने के लिए व्रत भी किया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और जातक के जीवन में अपार खुशियों का आगमन होता है। ऐसे में आप शारदीय नवरात्र (Shardiya navratri 2024 Puja) में रोजाना दुर्गा स्तुति का पाठ करें। इसका पाठ करने घर में सुख, समृद्धि और खुशहाली आती है और सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।

दुर्गा स्तुति

दुर्गे विश्वमपि प्रसीद परमे सृष्ट्यादिकार्यत्रये

ब्रम्हाद्याः पुरुषास्त्रयो निजगुणैस्त्वत्स्वेच्छया कल्पिताः ।

नो ते कोऽपि च कल्पकोऽत्र भुवने विद्येत मातर्यतः

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 कः शक्तः परिवर्णितुं तव गुणॉंल्लोके भवेद्दुर्गमान् ॥

त्वामाराध्य हरिर्निहत्य समरे दैत्यान् रणे दुर्जयान्

त्रैलोक्यं परिपाति शम्भुरपि ते धृत्वा पदं वक्षसि ।

त्रैलोक्यक्षयकारकं समपिबद्यत्कालकूटं विषं

किं ते वा चरितं वयं त्रिजगतां ब्रूमः परित्र्यम्बिके ॥

या पुंसः परमस्य देहिन इह स्वीयैर्गुणैर्मायया

देहाख्यापि चिदात्मिकापि च परिस्पन्दादिशक्तिः परा ।

त्वन्मायापरिमोहितास्तनुभृतो यामेव देहास्थिता

भेदज्ञानवशाद्वदन्ति पुरुषं तस्यै नमस्तेऽम्बिके ॥

स्त्रीपुंस्त्वप्रमुखैरुपाधिनिचयैर्हीनं परं ब्रह्म यत्

त्वत्तो या प्रथमं बभूव जगतां सृष्टौ सिसृक्षा स्वयम् ।

सा शक्तिः परमाऽपि यच्च समभून्मूर्तिद्वयं शक्तित-

स्त्वन्मायामयमेव तेन हि परं ब्रह्मापि शक्त्यात्मकम् ॥

तोयोत्थं करकादिकं जलमयं दृष्ट्वा यथा निश्चय-

स्तोयत्वेन भवेद्ग्रहोऽप्यभिमतां तथ्यं तथैव ध्रुवम् ।

ब्रह्मोत्थं सकलं विलोक्य मनसा शक्त्यात्मकं ब्रह्म त-

च्छक्तित्वेन विनिश्चितः पुरुषधीः पारं परा ब्रह्मणि ॥

षट्चक्रेषु लसन्ति ये तनुमतां ब्रह्मादयः षट्शिवा-

स्ते प्रेता भवदाश्रयाच्च परमेशत्वं समायान्ति हि ।

तस्मादीश्वरता शिवे नहि शिवे त्वय्येव विश्वाम्बिके

त्वं देवि त्रिदशैकवन्दितपदे दुर्गे प्रसीदस्व नः ॥

॥ इति श्रीमहाभागवते महापुराणे वेदैः कृता दुर्गास्तुतिः सम्पूर्णा ॥

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अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।