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Shardiya Navratri Day 7: इस दैत्य के वध के लिए मां दुर्गा ने लिया देवी कालरात्रि का रूप, यहां पढ़िए कथा

Maa Kalratri Katha इस साल शारदीय नवरात्र की शुरुआत 15 अक्टूबर रविवार के दिन से हो चुकी है। ऐसे में नवरात्रि के सातवें दिन माता कालिका की पूजा का विधान है। मां काली ने अपने भक्तों की भय और अकाल मृत्यु से रक्षा करती हैं। आइए नवरात्र के सातवें दिन जानते हैं मां दुर्गा के रौद्ध रूप अर्थात मां कालरात्रि की कथा।

By Suman SainiEdited By: Suman SainiUpdated: Sat, 21 Oct 2023 08:17 AM (IST)
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Maa Kalratri Katha जानिए देवी कालरात्रि की कथा।
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Shardiya Navratri 2023: नवरात्र का सातवां दिन मां कालरात्रि की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित है। यह मां दुर्गा का रौद्ध रूप भी है जिसका वर्ण काला है इसलिए इन्हें मां काली या कालिका के नाम से भी जाना जाता है। माता का यह रूप अत्यंत भयंकर है, परंतु भक्तों के लिए अत्यंत शुभ फलदायी है। माना जाता है कि मां काली की पूजा करने से व्यक्ति का सभी प्रकार का भय खत्म होता है।

इसलिए की जाती है मां काली की पूजा 

माना जाता है कि माता कालरात्रि की आराधना से साधक को सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त हो सकती हैं। तंत्र मंत्र के साधकों में मां कालरात्रि की पूजा विशेष रूप से प्रचलित है। यही कारण है कि मां कालरात्रि की पूजा मध्य रात्रि में करने का विधान है। साथ ही यह भी माना गया है कि मां काली की पूजा से अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है। क्योंकि मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं इसलिए हिंदू धर्म में उन्हें वीरता और साहस का प्रतीक माना जाता है।

पढ़िए मां कालरात्रि की कथा (Maa Kalratri Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज नाम के राक्षसों ने तीनों लोकों में आतंक मचा रखा था। इन राक्षसों को हाहाकर से परेशान होकर सभी देवतागण शिवजी के पास गए और उनसे इस समस्या से बचने का कोई उपाय मांगने लगे। तब भगवान शिव ने माता पार्वती से इन राक्षसों का वध करने के लिए कहा। तब माता पार्वती ने दुर्गा का रूप धारण कर शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया।

लेकिन जब रक्तबीज के वध की बारी आई तो उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों की संख्या में रक्तबीज दैत्य उत्पन्न हो गए। क्योंकि रक्तबीज को यह वरदान मिला था कि यदि उनके रक्त की बूंद धरती पर गिरती है तो उसके जैसा एक और दानव उत्पन्न हो जाएगा। ऐसे में दुर्गा ने अपने तेज से देवी कालरात्रि को उत्पन्न किया। इसके बाद मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज का वध किया और मां कालरात्रि ने उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुख में भर लिया। इस तरह रक्तबीज का अंत हुआ।

मां कालरात्रि पूजा मंत्र  (Maa Kalratri Puja Mantra)

मां कालरात्रि की पूजा के दिन लाल चंदन की माला से इस मंत्र का जाप करना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति की सभी मुरादें पूरी होती हैं। साथ ही जीवन में आ रहे कष्टों से भी मुक्ति मिलती है -

ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तु ते।।

डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'