Shattila Ekadashi 2021 Vrat Katha: आज षटतिला एकादशी को जरूर सुनें यह कथा, मिलेगा व्रत का पूर्ण फल
Shattila Ekadashi 2021 Vrat Katha हिन्दी पंचांग के अनुसार माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को षटतिला एकादशी कहते हैं। इस वर्ष षटतिला एकादशी आज 07 फरवरी दिन रविवार को है। जागरण अध्यात्म में जानते हैं षटतिला एकादशी की व्रत कथा के बारे में।
By Kartikey TiwariEdited By: Updated: Sun, 07 Feb 2021 09:10 AM (IST)
Shattila Ekadashi 2021 Vrat Katha: हिन्दी पंचांग के अनुसार, माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को षटतिला एकादशी कहते हैं। इस वर्ष षटतिला एकादशी आज 07 फरवरी दिन रविवार को है। इस दिन लोग एकादशी का व्रत रखते हुए भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा करते हैं। पूजा में विशेष तौर पर काले तिल का प्रयोग किया जाता है। षटतिला एकादशी का व्रत करने से धन-धान्य और समृद्धि मिलती है और मोक्ष भी प्राप्त होता है। जो लोग षटतिला एकादशी का व्रत रखते हैं उनको षटतिला एकादशी की व्रत कथा का पाठ भी जरूर करना चाहिए अन्यथा व्रत का पूर्ण लाभ प्राप्त नहीं होता है। जागरण अध्यात्म में जानते हैं षटतिला एकादशी की व्रत कथा के बारे में।
षटतिला एकादशी की व्रत कथाबहुत समय पहले की बात है। एक नगर में एक ब्राह्मणी निवास करती थी। वह भगवान श्रीहरि विष्णु की भक्त थी। वह भगवान विष्णु के सभी व्रतों को नियम से करती थी। ऐसे ही एक बार उसने 1 महीने तक व्रत और उपवास रखा। इसकी वजह से शरीर दुर्बल हो गया, लेकिन तन शुद्ध हो गया। अपने भक्त को देखकर भगवान ने सोचा कि तन शुद्धि से इसे बैकुंठ तो प्राप्त हो जाएगा, लेकिन उसका मन तृप्त नहीं होगा। उसने एक गलती की थी कि व्रत के समय कभी भी किसी को कोई दान नहीं दिया था। इस वजह से उसे विष्णुलोक में तृप्ति नहीं मिलेगी। तब भगवान स्वयं उससे दान लेने के लिए उसके घर पर गए।
वे उस ब्राह्मणी के घर भिक्षा लेने गए, तो उसने भगवान विष्णु को दान में मिट्टा का एक पिंड दे दिया। श्रीहरि वहां से चले आए। कुछ समय बाद ब्राह्मणी का निधन हो गया और वह विष्णुलोक पहुंच गई। उसे वहां पर रहने के लिए एक कुटिया मिली, जिसमें कुछ भी नहीं था सिवाय एक आम के पेड़ के। उसने पूछा कि इतना व्रत करने का क्या लाभ? उसे यहां पर खाली कुटिया और आम का पेड़ मिला। तब श्रीहरि ने कहा कि तुमने मनुष्य जीवन में कभी भी अन्न या धन का दान नहीं दिया। यह उसी का परिणाम है। यह सुनकर उसे पश्चाताप होने लगा, उसने प्रभु से इसका उपाय पूछा।
तब भगवान विष्णु ने कहा कि जब देव कन्याएं तुमसे मिलने आएं, तो तुम उनसे षटतिला एकादशी व्रत करने की विधि पूछना। जब तक वे इसके बारे में बता न दें, तब तक तुम कुटिया का द्वार मत खोलना। भगवान विष्णु के बताए अनुसार ही उस ब्राह्मणी ने किया। देव कन्याओं से विधि जानने के बाद उसने भी षटतिला एकादशी व्रत किया। उस व्रत के प्रभाव से उसकी कुटिया सभी आवश्यक वस्तुओं, धन-धान्य आदि से भर गई। वह भी रुपवती हो गई।
भगवान विष्णु ने नारद जी को षटतिला एकादशी व्रत की महिमा इस प्रकार सुनाई। षटतिला एकादशी के दिन तिल का दान करने से सौभाग्य बढ़ता है और दरिद्रता दूर होती है।