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Shiv Chalisa: शिव चालीसा का पाठ करते समय रखें इन बातों का ध्यान

Shiv Chalisa lyrics in hindi भगवान शिव की उपासना का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रत्येक दिन शिव जी की उपासना करने से साधक को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है और जीवन में आने वाली कई परेशानियां दूर हो जाती है। महर्षि वेद व्यास जी द्वारा रचित शिव पुराण को शिव चालीसा का वर्णन किया गया है जिसका पाठ करने से विशेष लाभ मिलता है।

By Shantanoo MishraEdited By: Shantanoo MishraUpdated: Sat, 12 Aug 2023 06:45 AM (IST)
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Shiv Chalisa Lyrics: इस विधि से करें भगवान शिव को समर्पित शिव चालीसा का पाठ।

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क । Shiv Chalisa Lyrics: महर्षि वेद व्यास जी द्वारा रचित शिव पुराण में भगवान शिव की उपासना के महत्व को विस्तार से बताया गया है। साथ ही इसमें शिव चालीसा का भी वर्णन किया है। मान्यता है कि शिव चालीसा का पाठ करने से साधक को विशेष लाभ मिलता है और जीवन में आ रही कई प्रकार की समस्याएं दूर हो जाती हैं। बता दें कि साधक को शिव चालीसा का पाठ विधि अनुसार किया जाना चाहिए और कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए। मान्यता अनुसार, शिव चालीसा का पाठ करने से भगवान शिव साधक से प्रसन्न होते हैं। आइए जानते हैं, शिव चालीसा की पूजा विधि और कुछ महत्वपूर्ण बातें।

शिव चालीसा पाठ विधि

  • शिव चालीसा का पाठ करते समय साधक इस बात का ध्यान रखें कि साधक अ मुख पूर्व दिशा में हो। साथ ही शिव चालीसा का पाठ 3, 5, 11 या फिर 40 बार करें।

  • शिव चालीसा का पाठ करते समय शुद्धता का विशेष ध्यान रखें और शांत मन से भगवान शिव का ध्यान करते हुए चालीसा का पाठ करें।

  • शिव चालीसा का पाठ करने से पहले महादेव को सफेद चंदन, चावल, धूप-दीप इत्यादि अर्पित करें और शुद्ध मिश्री के रूप में प्रसाद का भोग लगाएं।

  • शिव चालीसा

    ।।दोहा।।

    श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।

    कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान।।

    ।।चौपाई।।

    जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत संतन प्रतिपाला।।

    भाल चंद्रमा सोहत नीके। कानन कुंडल नागफनी के।।

    अंग गौर शिर गंग बहाये। मुंडमाल तन छार लगाये।।

    वस्त्र खाल बाघंबर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे।।

    मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी।।

    कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी।।

    नंदि गणेश सोहै तहं कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे।।

    कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ।।

    देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा।।

    किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी।।

    तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महं मारि गिरायउ।।

    आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा।।

    त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई।।

    किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी।।

    दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं।।

    वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई।।

    प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला।।

    कीन्ह दया तहं करी सहाई। नीलकंठ तब नाम कहाई।।

    पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा।।

    सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी।।

    एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई।।

    कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर।।

    जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी।।

    दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै।।

    त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो।।

    लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो।।

    मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई।।

    स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी।।

    धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं।।

    अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी।।

    शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन।।

    योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं।।

    नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय।।

    जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शंभु सहाई।।

    ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी।।

    पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई।।

    पंडित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ।।

    त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा।।

    धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे।।

    जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे।।

    कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी।।

    ।।दोहा।।

    नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।

    तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश।।

    मगसर छठि हेमंत ॠतु, संवत चौसठ जान।

    अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण।।

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