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Shri Rudrashtakam Stotram: गुरु प्रदोष व्रत पर जरूर करें श्री रुद्राष्टकम स्तोत्रम् का पाठ

Shri Rudrashtakam Stotram हिन्दू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। इस विशेष दिन पर भगवान शिव की उपासना का विधान है। गुरु प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव को समर्पित श्री रुद्राष्टकम स्तोत्रम् का पाठ करने से भक्तों को विशेष लाभ मिलता है।

By Shantanoo MishraEdited By: Shantanoo MishraUpdated: Tue, 17 Jan 2023 11:36 AM (IST)
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Shri Rudrashtakam Stotram: गुरु प्रदोष व्रत के दिन जरूर करें श्री रुद्राष्टकम स्तोत्रम् का पाठ।
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Shri Rudrashtakam Stotram, Guru Pradosh Vrat 2023: प्रत्येक मास की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत विधि-विधान से रखा जाता है। मान्यता है कि इस विशेष दिन पर भगवान शिव की उपासना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। गुरुवार के दिन प्रदोष व्रत पड़ने के कारण इस व्रत को गुरु प्रदोष व्रत नाम से जाना जाएगा। माघ मास में पहला प्रदोष व्रत 19 जनवरी 2023 गुरुवार के दिन रखा जाएगा। इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से कष्ट, विवाद, दाम्पत्य जीवन में समस्याएं और ग्रह दोष से मुक्ति मिल जाती है। इस विशेष दिन पर भगवान शिव की विधिवत पूजा के साथ-साथ भक्तों को श्री रुद्राष्टकम स्तोत्रम् का पाठ अवश्य करना चाहिए। वेदों में इस विशेष स्तोत्र को बहुत ही चमत्कारी बताया गया है। साथ ही यह भी बताय गया है कि नितदिन पूजा के समय इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को बहुत लाभ मिलता है। आइए पढ़ते हैं श्री रुद्राष्टकम स्तोत्रम्।

श्री रुद्राष्टकम स्तोत्रम् (Shri Rudrashtakam Stotram Lyrics)

नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम् ।

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ।।

निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।

करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम् ।।

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् ।

स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा ।।

चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।

मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ।।

प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम् ।

त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम् ।।

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।

चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ।।

न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।

न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ।।

न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् ।

जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ।।

रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये

ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति।।

इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ।।

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