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Surya Arghya: सूर्य देव को अर्घ्य देते समय इन मंत्र का करें जाप, सुख-समृद्धि की होगी प्राप्ति

रविवार का दिन भगवान सूर्य देव की पूजा-अर्चना के लिए शुभ माना जाता है। मान्यता के अनुसार रविवार के दिन सुबह स्नान करने के बाद विधिपूर्वक भगवान सूर्य देव पूजा अर्घ्य देने से साधक को बीमारियों से छुटकारा मिलता है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। मान्यता के अनुसार सूर्य देव को अर्घ्य देते समय विशेष मंत्रों का जाप न करने से पूजा का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है।

By Kaushik SharmaEdited By: Kaushik SharmaUpdated: Sat, 03 Feb 2024 05:09 PM (IST)
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Surya Arghya: सूर्य देव को अर्घ्य देते समय इन मंत्र का करें जाप, सुख-समृद्धि की होगी प्राप्ति

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Surya Arghya: हर दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित है। इसी क्रम में रविवार का दिन भगवान सूर्य देव की पूजा-अर्चना के लिए बेहद शुभ माना जाता है। मान्यता के अनुसार, रविवार के दिन सुबह स्नान करने के बाद विधिपूर्वक भगवान सूर्य देव पूजा और अर्घ्य देने से साधक को बीमारियों से छुटकारा मिलता है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। मान्यता के अनुसार, सूर्य देव को अर्घ्य देते समय विशेष मंत्रों का जाप न करने से पूजा का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है। इसलिए अर्घ्य देते समय सूर्य देव के मंत्रों का जाप अवश्य करना चाहिए। सूर्य अर्घ्य मंत्र इस प्रकार है-

सूर्य पूजा से मिलते हैं लाभ

  • सूर्य देव की पूजा-अर्चना करने से इंसान को कष्टों से निजात मिलती है।
  • जीवन में खुशियों का आगमन होता है।
  • इसके अलावा सुख-समृद्धि और बल, बुद्धि की प्राप्ति होती है।
  • जीवन में सफलता हासिल होती है।
  • बुरे विचारों का नाश होता है।

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सूर्य अर्घ्य मंत्र

ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः

ॐ सूर्याय नम:

ॐ घृणि सूर्याय नम:

सूर्य प्रार्थना मंत्र

सूर्य भगवान की प्रार्थना करते हुए इस मंत्र का जाप करें।

ग्रहाणामादिरादित्यो लोक लक्षण कारक:।

विषम स्थान संभूतां पीड़ां दहतु मे रवि।।

सूर्याष्टकम

आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर।

दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते

सप्ताश्वरथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम् ।

श्वेतपद्मधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्

लोहितं रथमारूढं सर्वलोकपितामहम् ।

महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्

त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरम् ।

महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्

बृंहितं तेजःपुञ्जं च वायुमाकाशमेव च ।

प्रभुं च सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्

बन्धुकपुष्पसङ्काशं हारकुण्डलभूषितम् ।

एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्

तं सूर्यं जगत्कर्तारं महातेजः प्रदीपनम् ।

महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्

तं सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानविज्ञानमोक्षदम् ।

महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्

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