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शिवजी के प्रतिनिधि हैं वृक्ष

शिव जी ने जिस प्रकार विष को गले में उतार लिया था, उसी प्रकार वृक्ष विषैली गैसों को पीकर हमें जीवन-वायु देते हैं। वृक्ष ही शिव के प्रतिनिधि हैं.. महादेव शिव को नीलकंठ इसलिए कहा जाता है, क्योंकि पौराणिक कथाओं के अनुसार, उन्होंने देव-दानवों द्वारा अमृत के लिए किए गए समुद्र

By Preeti jhaEdited By: Updated: Thu, 30 Jul 2015 03:39 PM (IST)
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शिव जी ने जिस प्रकार विष को गले में उतार लिया था, उसी प्रकार वृक्ष विषैली गैसों को पीकर हमें जीवन-वायु देते हैं। वृक्ष ही शिव के प्रतिनिधि हैं..

महादेव शिव को नीलकंठ इसलिए कहा जाता है, क्योंकि पौराणिक कथाओं के अनुसार, उन्होंने देव-दानवों द्वारा अमृत के लिए किए गए समुद्र मंथन में निकले 14 रत्नों में सबसे अधिक विनाशकारी विष को पी लिया था और जहर के प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया। देखा जाए, तो भगवान शंकर प्रकृति के देव हैं। स्वयं हिमालय पर प्रकृति के बीच रहते हैं और संपूर्ण प्रकृति एवं मानवता की रक्षा के लिए उन्होंने विष पी लिया। यह परोपकार की अनूठी पराकाष्ठा है। आध्यात्मिक व भौतिक संसार को संचालित करने के लिए आवश्यक प्रकृति के साथ आत्मीय संबंध स्थापित करने तथा उसे बचाने में सब कुछ न्योछावर करने वाले शिवजी को इसीलिए भोले शंकर कहा जाता है ।

वर्तमान में नीलकंठ महादेव का कोई प्रतिनिधि है, तो वे हमारी धरती के वृक्ष हैं। जो प्रदूषण रूपी विष को पीकर दुनिया को प्राणवायु देकर जन-कल्याण कर रहे हैं। नीलकंठ महादेव के सारे गुण पेड़ में विद्यमान हैं। भोले शंकर की तरह कार्बन डाईऑक्साइड के विष को पीकर सृष्टि को संचालित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। ये हमें शिवजी के आदर्र्शो पर चलने की प्रेरणा भी देते हैं।

नीलकंठ शिव की सच्ची आराधना उनके प्रतिबिंब के रूप में साक्षात दिखाई देने वाले देववृक्षों के रोपण और उनकी परवरिश करने में ही निहित है। पूरी प्रकृति का संचालन शिव-शक्ति द्वारा ही होता है। उनके प्रतिनिधि के रूप में यह तरु-संपदा ही हमारी आस्था और श्रद्धा का केंद्र बननी चाहिए। वृक्षों में ही हमें आध्यात्मिक, धार्मिक, औषधीय, पर्यावरणीय और सामाजिक मूल्य मिलते हैं। यह भी सच है कि परोपकार का भाव पैदा करने का सबसे अच्छा उपाय यही है कि हम अधिक से अधिक पेड़ लगाएं और पर्यावरण को स्वच्छ करें। प्रदूषण के विष से समूची मानवता को बचाने का यह उपाय ही हमारे लिए शिवत्व कहलाएगा।