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Tula Sankranti 2023: 18 अक्टूबर को मनाई जाएगी तुला संक्रांति, जानिए कथा और पूजा विधि

Tula Sankranti 2023 पंचांग के अनुसार इस वर्ष 18 अक्टूबर को तुला संक्रांति मनाई जाएगी। इस दिन को दान तपस्या और श्राद्ध अनुष्ठानों आदि करने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार संक्रांति के दिन पवित्र नदी में स्नान करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है। साथ ही इस दिन दान आदि का भी विशेष महत्व है।

By Suman SainiEdited By: Suman SainiUpdated: Tue, 17 Oct 2023 09:47 AM (IST)
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Tula Sankranti katha and Puja Vidhi तुला संक्रांति के अवसर पर जानिए तुला संक्रांति की पूजा विधि।

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Tula Sankranti 2023: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार तुला संक्रांति का विशेष महत्व है। जब सूर्य देव तुला राशि में प्रवेश करते हैं तो इसे 'तुला संक्रांति' कहा जाता है। उड़ीसा और कर्नाटक में तुला संक्रांति का विशेष महत्व है। इस दिन को 'तुला संक्रमण' के नाम से भी जाना जाता है।

साथ ही इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने और जरूरतंदों को अपनी क्षमता अनुसार दान करना भी बहुत शुभ माना जाता है। ऐसे में आइए पढ़ते हैं तुला संक्रांति की कथा और पूजा विधि। 

तुला संक्रांति शुभ मुहूर्त (Tula Sankranti Subh Muhurta)

आश्विन माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि यानी 18 अक्टूबर को मनाई जाएगी है। इसी दिन देर रात 01 बजकर 29 मिनट पर सूर्य देव कन्या राशि से निकलकर तुला राशि में प्रवेश करेंगे। साथ ही इस दिन पुण्य काल प्रातः काल सुबह 06 बजकर 23 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 06 मिनट तक रहेगा और महा पुण्य काल सुबह 06 बजकर 23 मिनट से लेकर 08 बजकर 18 मिनट तक रहेगा। इस दौरान स्नान-दान किया जा सकेगा।

तुला संक्रांति कथा (Tula Sankranti Katha)

स्कंद पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, अगस्त्य मुनि की पत्नी का नाम कावेरी था। वे अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करते थे। लेकिन एक दिन अगस्त्य मुनि अपने कार्यो में इतना व्यस्त हो गए कि वे अपनी पत्नी कावेरी से मिलना ही भूल जाते हैं। उनकी इस लापरवाही के चलते, कावेरी अगस्त्य मुनि के स्नान क्षेत्र में गिर जाती है और कावेरी नदी के रूप में भूमि पर उद्धृत होती हैं। तभी से इस दिन को कावेरी संक्रमण या फिर तुला संक्रांति के रूप में मनाया जाता है।

तुला संक्रांति पूजा विधि (Tula Sankranti Puja Vidhi)

तुला संक्रांति तिथि पर सुबह जल्दी उठकर दैनिक कार्यों से निवृत होने के बाद पवित्र नदी में स्नान करें। यदि ऐसा करना संभव न हो तो घर पर ही पानी में गंगाजल मिलकार भी स्नान कर सकते हैं। इसके बाद आचमन कर पीले रंग का नवीन वस्त्र धारण करें। अब जल में लाल रंग के फूल और काले तिल मिलाकर सूर्य देव को अर्घ्य दें। अर्घ्य देने के दौरान इस मंत्र का जाप करें-

एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते।

अनुकम्पय मां देवी गृहाणार्घ्यं दिवाकर।।

इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा विधि-विधान पूर्वक पूजा करें। अंत में आरती कर भगवान से सुख, शांति और समृद्धि की कामना करें। इसके बाद अपनी क्षमतानुसार जरूरतमंदों को दान करें।

डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'