Vaibhav Lakshmi Vrat: वैभव लक्ष्मी व्रत पर करें माता लक्ष्मी चालीसा का पाठ मिलेगा सर्वाधिक लाभ
Vaibhav Lakshmi Vrat Vidhi धन की देवी लक्ष्मी की आराधना के लिए वैभव लक्ष्मी व्रत से उत्तम कुछ नहीं माना गया है। माता को प्रसन्न करने के लिए 11 या 21 शुक्रवार के व्रत का संकल्प लिया जाता है। ऐसे में वैभव लक्ष्मी व्रत के विधि-विधान व नियम यहां जानें।
नई दिल्ली, Vaibhav Lakshmi Vrat Vidhi: माता लक्ष्मी के आशीर्वाद से जीवन में कभी आर्थिक समस्याएं उतपन्न नहीं होती है। उन्हें प्रसन्न करने के लिए वैभव लक्ष्मी व्रत सबसे उत्तम माना गया है। इस व्रत को माता लक्ष्मी के भक्तों के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है। मान्यता है कि जिस घर में वैभव लक्ष्मी की पूजा विधि-विधान से होती है, उस घर में सुख-संपत्ति का वास होता है। वहीं इस दिन माता लक्ष्मी की उपासना करने से और माता लक्ष्मी की चालीसा का पाठ करने से भक्तों को बहुत लाभ मिलता है।
माता लक्ष्मी चालीसा
।।दोहा।।
मातु लामी करि कृपा करी हृदय में वास।
मनोकामना सिद्ध करि पुरवहु मेरी आस।।
।।सोरठा।।
यही मोर अरदास, हाथ जोड विनती करूं।
सब विधि करहु सुवास,जय जननि जगदंबिका।।
।।चौपाई।।
सिन्धु सुता मैं सुमिरौ तोही, ज्ञान बुद्धि विद्या दो मोही।।
तुम समान नहिं कोइ उपकारी, सब विधि पुरवहु आस हमारी।।
जै जै जै जननी जगदम्बा, सबकी तुम ही हो अवलंबा।।
तुम ही हो घट-घट की बासी, विनती यही हमारी खासी।।
जग जननी जै सिन्धु कुमारी, दोनन क्री तुम हो हितकारी।।
विनवों नित्य तुमहिं महारानी, कृपा करहु जग जननि भवानी।।
केहि विधि अस्तुति करों तुम्हारी, सुधि लीजै अपराध बिसारी।।
कृपा दृष्टि चितबहु मम ओरी, जग जननी विनती सुन मोरी।।
ज्ञान बुद्धि जय सुख को दाता, संकट हरहु हमारे माता।।
क्षीर सिंधु जब विष्णु मथायो, चौदह रत्न सिंधु में पायो।।
सब रत्नन में तुम सुख-राप्ती, सेवा कीन्ह बनीं हरि-दासी।।
जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा, रूप बदल तहं सेवा कीन्हा।।
स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा, लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा।।
तब तुम प्रगट जनकपुर माहीं, सेवा कौन्ह हदय षुलकाहीं।।
अपनायो तोहि अंतर्यामी विश्व विदित त्रिभुवन के स्वामी।।
तुम सम प्रबल शक्ति नहि आनी, कहं लगि महिमा कहौं बखानी।।
मन क्रम वचन करैं सेवकाई, मन इच्छित वांछित फल पाई।।
तजि छल कपट आंर चतुराई, पूजहिं विविध भांति मन लाईं।।
और हाल मैं कहाँ बुझाई, जो यह पाठ करै मन लाईं।।
ताकों कबहुं कष्ट ना होई, मन वांछित फल पावै सोईं।।
त्राहि-त्राहि ज़य दुख निचारिणि, त्रिविध-ताप भव-बंधन हारिणि।।
जो यह पढे और पढावै, ध्यान लगाकर सुनै सुनावै।।
ताको कोउ न रोग सतावै, पुत्रादिक धन संपति पावै।।
पुत्रहीन अरु संपतिहीना, अंध बधिर कौडी अति दीना।।
विप्र जुलाइ के पाठ करावे, शंका मन महं कबहुं न लावै।।
पाउ करावै दिन चालीसा, ता पर कृपा करें’ जगदीशा।।
सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै, कमी नहीं काहू की आवै।।
प्रतिदिन पाठ करै जो पूजा, ता सम धन्य और नहिं दूजा।।
प्रतिदिन पाठ करैं मनमाहों, ता सम कोउ जग में कहुं नाहीं।।
बहु विधि क्या मैं करौं बडाई, लेइ परीक्षा ध्यान लगाई।।
करि विश्वास करै व्रत नेमा, होइ सिद्ध उपजै उर प्रेमा।।
जै जै जै लश्मी महारानी, सब में व्यापित तुम गुणखानी।।
तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं, तुम सम कोउ दयालु कहुं नाहीं।।
मोहिं अनाथ क्री सुधि अब लीजै, संकट काटि भक्ति मोहिं दीजै।।
भूल-चूक करि क्षमा हमारी, दर्शन दीजै दशा निहारी।।
बिनु दर्शन व्याकुल अति भारी, तुमहिं अछत दुख पावत भारी।।
ना मोहि ज्ञान बुद्धि है तन में, सब जानत हौं अपने मन में।।
रूप चतुर्मुज करिके धारण, कष्ट मोर अब करहु निवारण।।
केहि प्रकार मैं करौं बडाई, ज्ञान बुद्धि मोहिं नहिं अधिकाई।।
।।दोहा।।
त्राहि-त्राहि दु:ख हारिणी, हरहु बेगि सब त्रास।
जयति जयति जय लश्मी, करो शत्रु का नाश।।
रामदास धरि ध्यान नित, विनय करत कर जोर।
मातु लश्मी दास पर, करहु दया की कौर।।
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