Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

Vaman Jayanti 2023: संध्या आरती के समय आज करें इस स्तोत्र का पाठ, दूर होंगे दुख और संताप

Vaman Jayanti 2023 इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु के वामन स्वरूप की विधि विधान से पूजा-उपासना की जाती है। साथ ही सुख समृद्धि और यश प्राप्ति हेतु उनके निमित्त व्रत रखा जाता है। धार्मिक मत है कि भगवान विष्णु के वामन स्वरूप की पूजा करने से जातक को अमोघ फल की प्राप्ति होती है। साथ ही सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Tue, 26 Sep 2023 01:00 PM (IST)
Hero Image
Vaman Jayanti 2023: संध्या आरती के समय आज करें इस स्तोत्र का पाठ, दूर होंगे दुख और संताप

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क । Vaman Jayanti 2023: हर वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन वामन जयंती मनाई जाती है। तदनुसार, इस वर्ष 26 सितंबर को वामन जयंती है। इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु के वामन स्वरूप की विधि विधान से पूजा-उपासना की जाती है। साथ ही सुख, समृद्धि और यश प्राप्ति हेतु उनके निमित्त व्रत रखा जाता है। धार्मिक मत है कि भगवान विष्णु के वामन स्वरूप की पूजा करने से जातक को अमोघ फल की प्राप्ति होती है। साथ ही सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं। अतः साधक श्रद्धा भाव से वामन जयंती पर जगत के पालनहार की पूजा करते हैं। अगर आप भी भगवान विष्णु की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो वामन जयंती के दिन पूजा के समय पद्मपुराण में निहित वामन स्तोत्र का पाठ करें। इस स्तोत्र के पाठ से जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के दुख और संकट दूर हो जाते हैं। आइए, वामन स्तोत्र का पाठ करें-

यह भी पढ़ें- Pitru Paksha 2023: पूर्वजों के प्रति दायित्वबोध कराता है पितृपक्ष

वामन स्तोत्र

नमस्ते देवदेवेश सर्वव्यापिञ्जनार्दन ।

सत्त्वादिगुणभेदेन लोकव्य़ापारकारणे ॥

नमस्ते बहुरूपाय अरूपाय नमो नमः ।

सर्वैकाद्भुतरूपाय निर्गुणाय गुणात्मने ॥

नमस्ते लोकनाथाय परमज्ञानरूपिणे ।

सद्भक्तजनवात्सल्यशीलिने मङ्गलात्मने ॥

यस्यावताररूपाणि ह्यर्चयन्ति मुनीश्वराः ।

तमादिपुरुषं देवं नमामीष्टार्थसिद्धये ॥

यं न जानन्ति श्रुतयो यं न जायन्ति सूरयः ।

तं नमामि जगद्धेतुं मायिनं तममायिनम् ॥

यस्य़ावलोकनं चित्रं मायोपद्रववारणं ।

जगद्रूपं जगत्पालं तं वन्दे पद्मजाधवम् ॥

यो देवस्त्यक्तसङ्गानां शान्तानां करुणार्णवः ।

करोति ह्यात्मना सङ्गं तं वन्दे सङ्गवर्जितम् ॥

यत्पादाब्जजलक्लिन्नसेवारञ्जितमस्तकाः ।

अवापुः परमां सिद्धिं तं वन्दे सर्ववन्दितम् ॥

यज्ञेश्वरं यज्ञभुजं यज्ञकर्मसुनिष्ठितं ।

नमामि यज्ञफलदं यज्ञकर्मप्रभोदकम् ॥

अजामिलोऽपि पापात्मा यन्नामोच्चारणादनु ।

प्राप्तवान्परमं धाम तं वन्दे लोकसाक्षिणम् ॥

ब्रह्माद्या अपि ये देवा यन्मायापाशयन्त्रिताः ।

न जानन्ति परं भावं तं वन्दे सर्वनायकम् ॥

हृत्पद्मनिलयोऽज्ञानां दूरस्थ इव भाति यः ।

प्रमाणातीतसद्भावं तं वन्दे ज्ञानसाक्षिणम् ॥

यन्मुखाद्ब्राह्मणो जातो बाहुभ्य़ः क्षत्रियोऽजनि ।

तथैव ऊरुतो वैश्याः पद्भ्यां शूद्रो अजायत ॥

मनसश्चन्द्रमा जातो जातः सूर्यश्च चक्षुषः ।

मुखादिन्द्रश्चाऽग्निश्च प्राणाद्वायुरजायत ॥

त्वमिन्द्रः पवनः सोमस्त्वमीशानस्त्वमन्तकः ।

त्वमग्निर्निरृतिश्चैव वरुणस्त्वं दिवाकरः ॥

देवाश्च स्थावराश्चैव पिशाचाश्चैव राक्षसाः ।

गिरयः सिद्धगन्धर्वा नद्यो भूमिश्च सागराः ॥

त्वमेव जगतामीशो यन्नामास्ति परात्परः ।

त्वद्रूपमखिलं तस्मात्पुत्रान्मे पाहि श्रीहरे ॥

इति स्तुत्वा देवधात्री देवं नत्वा पुनः पुनः ।

उवाच प्राञ्जलिर्भूत्वा हर्षाश्रुक्षालितस्तनी ॥

अनुग्राह्यास्मि देवेश हरे सर्वादिकारण ।

अकण्टकश्रियं देहि मत्सुतानां दिवौकसाम् ॥

अन्तर्यामिन् जगद्रूप सर्वभूत परेश्वर ।

तवाज्ञातं किमस्तीह किं मां मोहयसि प्रभो ॥

तथापि तव वक्ष्यामि यन्मे मनसि वर्तते ।

वृथापुत्रास्मि देवेश रक्षोभिः परिपीडिता ॥

एतन्न हन्तुमिच्छामि मत्सुता दितिजा यतः ।

तानहत्वा श्रियं देहि मत्सुतानामुवाच सा ॥

इत्युक्तो देवदेवस्तु पुनः प्रीतिमुपागतः ।

उवाच हर्षयन्साध्वीं कृपयाऽभि परिप्लुतः ॥

भगवानुवाच 

प्रीतोऽस्मि देवि भद्रं ते भविष्यामि सुतस्तव ।

यतः सपत्नीतनयेष्वपि वात्सल्यशालिनी ॥

त्वया च मे कृतं स्तोत्रं पठन्ति भुवि मानवाः ।

तेषां पुत्रो धनं सम्पन्न हीयन्ते कदाचन ॥

अन्ते मत्पदमाप्नोति यद्विष्णोः परमं शुभं ।

डिसक्लेमर: इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।